Tantrokt guru Pujan
Dr Narayan Datt shrimali
तांत्रोक्त गुरु पूजन
डॉ नारायण दत्त श्रीमाली
@GurukuL
रावण के प्रति नख भर का भी सम्मान वैदिक संस्कृति के प्रति द्रोह है।
रावण प्रतीक है व्यभिचार का जिसने अपनी पुत्रवधू तक पर कुदृष्टि डाली, अपनी पत्नी मंदोदरी की बहन के हेमा साथ कुकर्म किया और उसके पति को मारकर उसे उठा लाया।
रावण प्रतीक है अपने सगे संबंधियों को त्रास देने का। उसने अपनी बहन सूर्पनखा के पति विद्युत जिह्वा की हत्या कर दी। उसने अपने भाई से लंका छीन ली, अपने पिता को त्रास दिया, अपने मामा को स्वार्थ में मरवा दिया। अपने कुल खानदान को अपनी महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ा दिया। अपने भाई को लात मार कर भगा दिया।
रावण प्रतीक है अघन्या गाय के हत्यारे का, ऋषियों ब्राह्मणों के सामूहिक नरसंहार का। वैदिक व्यवस्था का परम शत्रु था रावण। यज्ञ और धर्म के किसी भी स्वरूप को अमान्य घोषित करने वाला रावण वैदिक देवताओं के प्रति घोर असभ्य था।
रावण प्रतीक है कृतघ्नता का। उसने भगवान शिव से कृतघ्नता की। वह उतना ही शिवभक्त था जितना भस्मासुर। वस्तुतः उसने महादेव के सामने दीन-हीन होने का ढोंग किया। वह भगवान शिव से भी अहंकार करता था। ब्रह्मा से वर प्राप्त करने के बाद उनके प्रति भी वह कृतघ्न हो गया। अपने मित्रों से भी उसने कृतघ्नता की।
रावण प्रतीक है शक्ति और ज्ञान के दुरुपयोग का। कुसंस्कारित कुपात्र को विद्या मिलने पर वह क्या-कुछ करता है इसका जीता जागता उदाहरण रावण है।
रावण प्रतीक है क्षुद्र बुद्धि और मलिन मानस का, नारी जाति के प्रति घृणा का, सुर धेनु विप्र और मनुष्य के प्रति घृणा रखने वाला रावण प्रतीक है दम्भ, असभ्यता और विध्वंस का।
कुछ घृणित लोग रावण को महान बता रहे। यह ठीक वैसी ही बात है जैसे कुछ नीच लोग महिषासुर को महान बताते हैं। पहले समाज के रावणों और महिषासुरों का सजीव दहन मर्दन होता था पर बलिहारी इस लोकतंत्र की कि हर टुच्चा आदमी अपनी दो कौड़ी की जबान हिला कर कुछ भी बोल सकता है।
पहचानिए ऐसे दुष्टात्माओं को और दहन करिये उनका।
और हां ये ब्रह्महत्या वाला पाप फर्जी नरेटिव है। ब्रह्मा जिसके वध की इच्छा स्वयं रखते हों ऐसे गोघाती, सुर त्रासी, ब्राह्मण द्रोही रावण के वध पर ब्रह्म हत्या लगने की बात कोई घृणित व्यक्ति ही कह सकता है।
जय जय श्रीराम
@Gurukul
@Sanatan
@Hindu
आज के दिव्यतम दिवस पर ये उस महापुरुष की सिद्ध वाणी में भजन है जिसके बारे में भगवान श्री कृष्ण ने अपने एक भक्त को कहा था कि तुम्हे वृंदावन ब्रज आने की जरूरत नही, हनुमान प्रसाद पोद्दार का शरीर ही ब्रज भूमि है उसके शरीर मे राधा जी और मेरा नित्य रास होता रहता, उनका सान्निध्य ले लो।
गोरखपुर गीता प्रेस में पोद्दार जी की समाधि उसी स्थान पर भव्य स्वरूप में बनी है जहाँ देवर्षि नारद और अंगिरा ऋषि एक साथ सदेह प्रकट हुए थे, एक अंग्रेज की तरह अत्यंत सम्मोहनीय सुंदर भारतीय योगिनी इनके समाधि पर नित्य ज्योत जलाती है, इसी मार्ग पर स्थायी रूप से समर्पित है।
🌹जय श्री राधे 🌹
@Gurukul
अन्तःचेतना में एक से एक विभूतियाँ प्रसुप्त, अविज्ञात स्थिति में छिपी पड़ी हैं। इनके जागने पर मानवीय सत्ता देवोपम स्तर पर पहुँची हुई, जगमगाती हुई, दृष्टिगोचर होती है। आत्म सत्ता के पाँच कलेवरों के रूप में पंचकोश को बहुत अधिक महत्त्व दिया जाता है। पंचकोश का विवरण एवं उनकी शक्ति इस प्रकार हैं-
1.अन्नमय कोश– प्रत्यक्ष शरीर, जीवन शरीर। अन्नमयकोश ऐसे पदार्थों का बना है जो आँखों से देखा और हाथों से छुआ जा सकता है। अन्नमयकोश के दो भाग किये जा सकते हैं। एक प्रत्यक्ष अर्थात् स्थूल, दूसरा परोक्ष अर्थात सूक्ष्म, दोनों को मिलाकर ही एक पूर्ण काया बनती है। पंचकोश की ध्यान धारणा में जिस अन्नमयकोश का उल्लेख किया गया है, वह सूक्ष्म है, उसे जीवन शरीर कहना अधिक उपयुक्त होगा। अध्यात्म शास्त्र में इसी जीवन शरीर को प्रधान माना गया है और अन्नमयकोश के नाम से इसी की चर्चा की गई है। योगी लोगों का आहार- विहार बहुत बार ऐसा देखा जाता है जिसे शरीर शास्त्र की दृष्टि से हानिकारक कहा जा सकता है फिर भी वे निरोगी और दीर्घजीवी देखे जाते हैं, इसका कारण उनके जीवन शरीर का परिपुष्ट होना ही है। अन्नमय कोश की साधना जीवन शरीर को जाग्रत, परिपुष्ट, प्रखर एवं परिष्कृत रखने की विधि व्यवस्था है। जीवन-शरीर का मध्य केन्द्र नाभि है। जीवन शरीर को जीवित रखने वाली ऊष्मा और रक्त की गर्मी रोगों से लड़ती है, उत्साह स्फूर्ति प्रदान करती है, यही ओजस् है।
2.प्राणमय कोश– जीवनी शक्ति।
जीवित मनुष्य में आँका जाने वाला विद्युत् प्रवाह, तेजोवलय एवं शरीर के अन्दर एवं बाह्य क्षेत्र में फैली हुई जैव विद्युत् की परिधि को प्राणमय कोश कहते हैं। शारीरिक स्फूर्ति और मानसिक उत्साह की विशेषता प्राण विद्युत के स्तर और अनुपात पर निर्भर रहती है। चेहरे पर चमक, आँखों में तेज, मन में उमंग, स्वभाव में साहस एवं प्रवृत्तियों में पराक्रम इसी विद्युत् प्रवाह का उपयुक्त मात्रा में होना है। इसे ही प्रतिभा अथवा तेजस् कहते हैं। शरीर के इर्दगिर्द फैला हुआ विद्युत् प्रकाश तेजोवलय कहलाता है। यही प्राण विश्वप्राण के रूप में समस्त ब्रह्माण्ड में व्याप्त है। इसे पात्रता के अनुरूप जितना अभीष्ट है, प्राप्त कर सकते हैं।
3.मनोमय कोश– विचार बुद्धि, विवेकशीलता।
मनोमय कोश पूरी विचारसत्ता का क्षेत्र है। इसमें चेतन, अचेतन एवं उच्च चेतन की तीनों ही परतों का समावेश है। इसमें मन, बुद्धि और चित्त तीनों का संगम है। मन कल्पना करता है। बुद्धि विवेचना करती और निर्णय पर पहुँचाती है। चित्त में अभ्यास के आधार पर वे आदतें बनती हैं, जिन्हें संस्कार भी कहा जाता है। इन तीनों का मिला हुआ स्वरूप मनोमय कोश है। मनोमय कोश का प्रवेश द्वार आज्ञाचक्र है। आज्ञाचक्र जिसे तृतीय नेत्र अथवा दूरदर्शिता कह सकते हैं, इसका जागरण एवं उन्मूलन करना मनोमय कोश की ध्यान धारणा का उद्देश्य है। आज्ञाचक्र की संगति शरीर शास्त्री पिट्यूटरी एवं पीनियल ग्रन्थियों के साथ करते हैं।
4.विज्ञानमय कोश – भाव प्रवाह।
विज्ञानमय कोश चेतना की तरह है जिसे अतीन्द्रिय-क्षमता एवं भाव संवेदना के रूप में जाना जाता है। विज्ञानमय और आनन्दमय कोश का सम्बन्ध सूक्ष्म जगत् से ब्रह्मचेतना से है। सहानुभूति की संवेदना, सहृदयता और सज्जनता का सम्बन्ध हृदय से है। यही हृदय एवं भाव संस्थान अध्यात्म शास्त्र में विज्ञानमय कोश कहलाता है। परिष्कृत हृदय-चक्र में उत्पन्न चुम्बकत्व ही दैवी तत्त्वों को सूक्ष्म जगत् से आकर्षित करता और आत्मसत्ता में भर लेने की प्रक्रियाएँ सम्पन्न करता है। श्रद्धा जितनी परिपक्व होगी-दिव्य लोक से अनुपम वरदान खिंचते चले आएँगे। अतीन्द्रिय क्षमता, दिव्य दृष्टि, सूक्ष्म जगत् से अपने प्रभाव-पराक्रम पुरुषार्थ द्वारा अवतरित होता है।
5.आनन्दमय कोश– आनन्दमय कोश चेतना का वह स्तर है, जिनमें उसे अपने वास्तविक स्वरूप की अनुभूति होती रहती है। आत्मबोध के दो पक्ष हैं- पहला अपनी ब्राह्मी चेतना, बह्म सत्ता का भान होने से आत्मसत्ता में संव्याप्त परमात्मा का दर्शन होता है। दूसरा संसार के प्राणियों और पदार्थों के साथ अपने वास्तविक सम्बन्धों का तत्त्वज्ञान भी हो जाता है। इस कोश के परिष्कृत होने पर एक आनन्द भरी मस्ती छाई रहती है। ईश्वर इच्छा मानकर प्रखर कर्त्तव्य-परायण; किन्तु नितान्त वैरागी की तरह काम करते हैं। स्थितप्रज्ञ की स्थिति आ जाती है। आनन्दमय कोश के जागरण से व्यक्तित्व में ऐसे परिवर्तन आरम्भ होते हैं, जिसके सहारे क्रमिक गति से बढ़ते हुए धरती पर रहने वाले देवता के रूप में आदर्श जीवनयापन कर सकने का सौभाग्य मिलता है। स्थितप्रज्ञता इसी कोश से प्राप्त होती है।
वास्तव में इन पांच कोशों को दिव्य शक्तियों के खजाने कहा जाए तो गलत नहीं होगा। ध्यान धारणा के अभ्यास से इन कोषों को जाग्रत कर मानव से महामानव की श्रेणी में पहुंचा जा सकता है।
~श्रीराम शर्मा आचार्य
@Gurukul
आइये इस जन्माष्टमी पर आठ संकल्प लीजियेः
1. आप स्वयं श्री मद् भगवद्गीता का न सिर्फ प्रतिदिन पाठ करेंगें अपितु उसे जीवन में आत्मसात भी करेंगें।
2. अपने परिवार में विशेषतयः युवक और युवतियों को भगवद्गीता पढ़ने को प्रोत्साहित करेंगे।
3. उपहार में बनावटी/सजावटी फूलों के स्थान पर श्री मद् भगवद्गीता का आदान प्रदान शुरू करेंगे।
4. वर्तमान परिस्थिति में युद्ध और प्रेम दोनों ही आवश्यक है अतएव आप कृष्ण के संपूर्ण चरित्र को बिना किसी पूर्वाग्रह के पूर्णतयः स्वीकार करेंगे।
5. अपने बच्चों को कृष्ण सा सामर्थ्यवान बनायेंगे जिससे वो द्रौपदी रूपी अपनी बहन-बेटी की लाज की रक्षा करने में सक्षम होने के साथ ही आधुनिक दुर्योधन की जंघा तोड़ने और दुशासन की छाती का खून निकाल लेने में सक्षम हो।
6. कृष्ण सी स्पष्टता और शत्रुबोध लायेंगे जो किसी भी तरह के सेक्यूलिज्म से दूर रहे और सामने चाहे पितामह भीष्म सा आत्मीय हो या गुरू द्रोणाचार्य सा सम्मानित उसका भी वध करने/कराने में संकोच न करें।
7. कर्मफलसिद्धांत, राष्ट्रवाद, स्व व्यक्तित्व निर्माण, कूटनीति, राजनीति, धर्मनीति, युद्धनीति सबमें ही कृष्णवत् भाव के साथ स्पष्ट और दीर्घकालीन आस्था रखेंगे और अपनी आगामी पीढ़ी को भी जाग्रत करेंगे।
8. जिस प्रकार कृष्ण ने महाराज युधिष्ठिर से अश्वमेध करा संपूर्ण भारतवर्ष की एकता और अखंडता को सुनिश्चित किया था, एक भेदभाव मुक्त समाज निर्मित किया था ठीक उसी प्रकार एक संपूर्णता युक्त समाज वाले अखंड भारत के निर्माण में आप अपना कृष्णवत् सहयोग देंगें।
यदि आप इन आठ प्रतिज्ञाओं को लेकर संकल्पबद्ध हो जायेंगे तो विश्वास मानिये हर घर से एक कृष्ण निकलेगा और इस धरा को मुरली के संगीत के साथ ही सुदर्शन के सामर्थ्य से भगवामय कर देगा।
अशेष प्रेम और विश्वास के साथ आप सभी को जन्माष्टमी की कोटिशः शुभकामनायें।
"तुम उसे सांवरा, प्रेमी, नटखट, ग्वाला, माखनचोर, मुरारी ही समझते रहे,
और उसे देखो वो गीतामृत महोदधी महाभारत जीता कर आ गया...
~विठ्ठल
@Gurukul
श्री यन्त्र साधना
डॉ. नारायण दत्त श्रीमाली
Shri yantra Sadhna
dr Narayan Datt Shrimali
@Gurukul
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@Gurukul