*🥀३१ अक्टूबर २०२३ मंगलवार🥀*
*!!कार्तिक कृष्णपक्ष तृतीया २०८० !!*
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*‼ऋषि चिंतन‼*
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*❗उपासना के अनेकों प्रकार हैं❗*
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👉 *"उपासना" का कोई एक ही प्रकार निश्चित नहीं है ।* यह बहुत प्रकार से हो सकती है। जैसे विधि-विधान पूर्वक कर्मकाण्ड करना, समस्त आडम्बरों सहित पूजा करना, वेदों, पुराणों तथा शास्त्रों का पारायण करना, भजन कीर्तन और प्रार्थना करना, योग, ध्यान और जप करना, संतों, ज्ञानियों तथा महात्माओं का सत्संग करना- इस प्रकार त्याग, तपस्या आदि न जाने उपासना के कितने प्रकार एवं स्वरूप हैं। *यदि कहना चाहें तो सारांश में यों भी कह सकते हैं कि वे सारी शारीरिक, मानसिक तथा वाचिक क्रियाएँ "उपासना" ही हैं जिनका विषय अध्यात्म अथवा परमात्मा है।* इसी प्रकार सत्कर्म समाज- सेवा, आत्म-सुधार, सृजन तथा अनुशासन, शिष्टाचार आदि सारे काम तथा भाव उपासना के अन्तर्गत आते हैं। *स्वार्थ के अतिरिक्त जितना भी पारमार्थिक प्रसंग है वह सब उपासना के अन्तर्गत ही आता है।* अब इनमें से कोई भी अपनी सुविधा, सामर्थ्य तथा स्थिति के अनुसार चुना जा सकता है।
👉 *हम सभी जानते हैं कि परमात्मा एक देशीय न होकर सर्वव्यापक है।* कोई भी स्थान उससे रिक्त नहीं है। *वह हर समय हर स्थान पर विद्यमान रहता है।* इसी प्रकार वह संसार की प्रत्येक वस्तु और क्रिया में वर्तमान है और सर्वदा रहेगा। संसार की गोचर- अगोचर कोई वस्तु, सूक्ष्म अथवा स्थूल, कोई भी व्यक्ति, कोई भी प्राणी ऐसा नहीं है जिसमें परमात्मा का निवास न हो। *इसी प्रकार मनुष्य की अथवा प्रकृति की कोई भी गोचर अथवा अगोचर क्रिया ऐसी नहीं है जिसमें उस सर्वव्यापक और उस प्रेरक परमात्मा की साक्षी न होती हो।* वही सब कहीं, सब बातों में, सब समय मौजूद रहता है। जिस प्रकार *उपासना-क्रियाओं में परमात्मा का भाव और तदनुरूप पवित्रता रक्खी जाती है, यदि उसी प्रकार मनुष्य अपने जीवन की प्रत्येक अन्य क्रिया में भी यही भाव एवं पवित्रता रक्खे और जिस प्रकार अपनी पूजन सामग्री परमात्मा को समर्पित करता है उसी प्रकार अपने सर्वस्व में भी समर्पण का भाव रक्खे तो उसकी अणु-अणु क्रिया ही उपासना के रूप में बदल जाये और वह हर समय परमात्मा का सामीप्य अनुभव करता रहे। उसका समग्र जीवन ही उपासना रूप हो जाये।* ऐसी दशा में वह जीवन-काल ही में जीवन मुक्त हो जाये। उसे अपना लक्ष्य पाने के लिये फिर न तो अलग से कोई क्रिया-कलाप करना पड़े और न जन्म-जन्मान्तर की प्रतीक्षा ही करनी होगी। *वह एक इस ही जीवन में परमात्मा को पाकर "मुक्ति," "मोक्ष" अथवा "निर्वाण" की स्थिति में पहुँच जाये।*
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*ईश्वर और उसकी अनुभूति पृष्ठ-१११*
*🪴पं.श्रीराम शर्मा आचार्य🪴*
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Is it the real old indrajal book ?
I mean Can we find all the real content which is in old indrajal book ?
मैं अपने गुरु की बात कर रहा हूं। जब भी कोई परम पूज्य सद्गुरु देव डॉक्टर नारायण दत्त श्रीमाली का गुरु दीक्षा लेता है तब गुरु मंत्र के साथ यह दोनों मंत्र मिलता है।
गुरु मंत्र ४ माला गायत्री मंत्र एक माला और चेतना मंत्र एक माला प्रतिदिन करना होता है।
Sir ye book to sanskrit mein hai , I cant understand could you please send me its hindi version
Читать полностью…भैया ऐसा कोई book मिलेगा जिसे पडने के बाद जो अपना धर्म बदल लिये है वो पुनः हिन्दू धर्म मे वापस आ जाये
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