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मेरी खामोशी में ही मेरी पहचान है
में भारत हु मेरी जान मेरी शान है

यू तो में नही लिखती और नही लखता केलिन
बस एकबार आंखे खोलो मेरी शान भी तो आपकी जान है


          ...... गुरू और माता भारत.…..

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श्रीमद देवीभागवत महापुराण संपूर्ण चाहिए

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Mute कर देंगे हम अगर बेकार का बहस हुआ तो।

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ये सब बहस करने से अच्छा होगा कुछ पुस्तक पढ़ लो।

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रामचरितमानस
गीता प्रेस गोरखपुर

Ramcharitmanas
Geeta press Gorakhpur


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नाथ संप्रदाय से संबंधित पीडीएफ फाइल भेजे

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Dainik Sadhna Vidhi - HD
Dr Narayan Datt shrimali

दैनिक साधना विधि - HD
डॉ नारायण दत्त श्रीमाली


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love you bhai. sanatan yehi karta aaya hai hamesha se. aur aage bhi yehi karega. dhanyewad bhai aapka 🙏

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jab ram ka naam liya gaya ho. aur abi koi jaroorat nahi bhai. naam mein kya rakha ha? raam raam ji

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चुनौती से ताकत पैदा होती है

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👉 हमारी अतृप्ति और असंतोष का कारण

आवश्यकताओं को मर्यादा से बढ़ा देने का नाम अतृप्ति और दुःख है उन्हें कम कर पूर्ति करने से सुख और सन्तोष प्राप्त होता है। मनुष्य एक ही प्रकार के सुख से तृप्त नहीं रहता। अतः असंतोष सदैव बना रहता है। वह असंतोष निंदनीय है जिसमें किसी वस्तु की प्राप्ति के लिए मनुष्य दिन रात हाय-हाय करता रहे और न पाने पर असंतुष्ट, अतृप्त, और दुःखी रहे।

तृष्णाएं एक के पश्चात् दूसरी बढ़ेगी। एक आवश्यकता की पूर्ति होगी, तो दो नई आवश्यकताएं आकर उपस्थित हो जायेंगी। अतः विवेकशील पुरुष को अपनी आवश्यकताओं पर कड़ा नियंत्रण रखना चाहिए। इस प्रकार आवश्यकताओं को मर्यादा के भीतर बाँधने के लिए एक विशेष शक्ति-मनोनिग्रह की जरूरत है।

एक विचारक का कथन है-“जो मनुष्य अधिकतम संतोष और सुख पाना चाहता है, उसको अपने मन और इन्द्रियों को वश में करना अत्यन्त आवश्यक है। यदि हम अपने आपको तृष्णा और वासना में बहायें, तो हमारे असंतोष की सीमा न रहेगी।”

अनेक प्रलोभन तेजी से हमें वश में कर लेते हैं, हम अपनी आमदनी को भूल कर उनके वशीभूत हो जाते हैं। बाद में रोते चिल्लाते हैं। जिह्वा के आनन्द, मनोरंजन आमोद प्रमोद के मजे हमें अपने वश में रखते हैं। हम सिनेमा का भड़कीला विज्ञापन देखते ही मन को हाथ से खो बैठते हैं और चाहे दिन भर भूखे रहें, अनाप-शनाप व्यय कर डालते हैं। इन सभी में हमें मनोनिग्रह की नितान्त आवश्यकता है। मन पर संयम रखिये। वासनाओं को नियंत्रण में बाँध लीजिये, पॉकेट में पैसा न रखिये। आप देखेंगे कि आप इन्द्रियों को वश में रख सकेंगे।

आर्थिक दृष्टि से मनोनिग्रह और संयम का मूल्य लाख रुपये से भी अधिक है। जो मनुष्य अपना स्वामी है और इन्द्रियों को इच्छानुसार चलाता है, वासना से नहीं हारता, वह सदैव सुखी रहता है।

प्रलोभन एक तेज आँधी के समान है जो मजबूत चरित्र को भी यदि वह सतर्क न रहे, गिराने की शक्ति रखती है। जो व्यक्ति सदैव जागरुक रहता है, वह ही संसार के नाना प्रलोभनों आकर्षणों, मिथ्या दंभ, दिखावा, टीपटाप से मुक्त रह सकता है। यदि एक बार आप प्रलोभन और वासना के शिकार हुए तो वर्षों उसका प्रायश्चित करने में लग जायेंगे।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य
📖 अखण्ड ज्योति जनवरी 1950 पृष्ठ 8

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निखिल मंत्र विज्ञान नवंबर 2023.pdf

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ओशो के अतिरिक्त दूसरा भाष्य न है

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आदि धर्म सनातन धर्म

Aadi Dharm Sanatan Dharm


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Ram Ram sare na 🙏🚩

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Google pr mll jayega

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Ise bolo tamiz se baat Kare 🤓🤣

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Bhai vo angrej ki aulad faltu me uchal raha to kya kare ab

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श्रीमद् भागवत गीता साधक संजीवनी
गीता प्रेस गोरखपुर

Shrimad Bhagwat Geeta sadhak Sanjivani


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ओम नमस्ते, किसी भाई के पास ब्रम्हचर्य के साधन पुस्तक की pdf है तो कृपया send kre

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🚩🚩🕉️🚩🚩। 🚩आदेश सिद्धों आदेश 🚩
नाथ परंपरा और नाथ साधक
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भारत की आध्यात्मिक परंपरा बहुत प्राचीन है। भारत में हर युग में चिंतन और साधनाओं के विभिन्न माध्यम निरंतर जीवंत रहे हैं। इन शुद्ध धाराओं ने समाज के जीवन और मानव आदर्शों का मार्ग प्रशस्त किया है।
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भारतीय चिंतन परंपरा में, नाथ सम्प्रदाय या नाथ पंथ का विशेष महत्व है। वास्तव में, नाथ पंथ सिद्धों की परंपरा का विकास और संशोधन है। संत साहित्य की पूर्व-पीठिका के रूप में, नाथ साहित्य का महत्व अवश्यक है और इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। नाथ सम्प्रदाय प्राचीन धार्मिक साधनाओं और संत साहित्य के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी के रूप में जाना जाता है।
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नाथ-सम्प्रदाय और नाथ-साहित्य की विस्तारित जांच से पहले, हम पहले 'नाथ' शब्द पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
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नाथ शब्द की निरुक्ति और निर्दिष्ट अर्थ के साथ शब्द 'ना+थ' के संयोग से बना है। 'रिग्वेद' के 'दशम मण्डल' के सूक्त 130 में, 'नाथ' शब्द का उपयोग ब्रह्मा या ज्ञान करने वाले के रूप में किया गया है। 'नाथ' शब्द का उपयोग 'अथर्ववेद' और 'तैत्तिरीय ब्राह्मण' में 'रक्षक' या 'शरणदाता' के लिए भी किया गया है। 'बोधिचर्यावतार' में बुद्ध के लिए भी इस शब्द का प्रयोग हुआ है। 'जैन' और 'वैष्णव' धर्मों में भी इस शब्द का उपयोग सबसे महत्वपूर्ण देवता के रूप में किया जाता है। 'परवर्ती काल' में, 'योग परक' 'पाशुपत' शैव मत का विकास नाथ सम्प्रदाय के रूप में हुआ और 'नाथ' शब्द का अर्थ भगवान शिव के रूप में प्रसिद्ध हुआ।
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'राजगुहा' ग्रंथ के अनुसार-
"नाकारोऽनादि रूपं धकार स्थाप्यते सदा। भुवनत्रयमेवेकः श्री गोरक्ष नमोऽस्तुते।।"
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इसका अर्थ है कि 'ना' शब्द अनादि रूप होता है और 'थ' शब्द का मतलब होता है कि वह सदा स्थित रहता है, इसलिए यह स्पष्ट करता है कि नाथ-मत एक अनादि धर्म है, जो तीनों भूओं की स्थिति का कारण होता है। 'शक्ति संगम-तंत्र' में भी उल्लिखित है कि 'नाथ' शब्द का अर्थ है जो मोक्षदान में कुशल है, वह ज्ञान देता है और 'थ' शब्द का अर्थ है कि वह अज्ञान को दूर करने की क्षमता रखता है। क्योंकि नाथ के शरण होने से नाथ-ब्रह्म का साक्षात्कार होता है और अज्ञान की माया दूर हो जाती है, इसलिए 'नाथ' शब्द का प्रयोग होता है।"
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सिद्धों की वाणियों में 'नाथ' शब्द का व्यापक उपयोग देखने को मिलता है। उन्होंने 'वही नाथ है जिसका मन स्थिर और चित्त विस्फुरित होता है' का अर्थ बताया है। सिद्ध कण्हपा ने साधक को 'वज्रधर नाथ' कहा है, जिससे सिद्ध होता है कि सिद्धों ने 'नाथ' शब्द को तथागत के रूप में ग्रहण किया है, और इसे केवल स्थिर-चित्त-सिद्धि प्राप्त योगी के समर्थन के रूप में उपयोग किया है।"
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निर्गुण संतों के काव्य में भी 'नाथ' शब्द का प्रयोग देखा जा सकता है, जैसे कि 'नाथ' का अर्थ होता है 'निरंजन और प्राणपिंड की रक्षा करने वाला'। कबीर ने 'नाथ' का उपयोग 'मायाजेता' के अर्थ में किया है। संस्कृत टीकाकार मुनिदत्त ने 'नाथ' का अर्थ 'सदगुरू' के रूप में बताया है।" 'गोरखवाणी' में भी 'नाथ' शब्द का प्रयोग हुआ है, जैसे कि 'नाथ कहे तुम आपा राखौ। नाथ कहे तुम सुनहु रे अवधु'। यहां 'नाथ' शब्द का उपयोग ब्रह्म या परमात्मा के अर्थ में किया गया है।"
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इस विवेचन से स्पष्ट होता है कि 'नाथ' शब्द का प्रयोग परमात्मा, ब्रह्म, मुक्ति के संदर्भ में किया जाता है, और नाथ-पंथ के अनुयायी साधकों को इस मान्यता के अनुसार अपने जीवन का आदर्श बनाने के लिए नाथ के रूप में स्वीकार किया जाता है।
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नाथ साधक, जो परमात्मा की अनुभूति करने के लिए योग मार्ग का अनुसरण करता है, उन्हें 'नाथ' कहा जाता है। वे इन्द्रियों को नियंत्रित करके परमात्मा के अनुभव में लीन होने के लिए साधना करते हैं।
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इस रूप में, 'नाथ' शब्द नाथ-पंथ के परम-तत्त्व और इसके साधकों को प्रतिनिधित करने के लिए प्रयुक्त होता है। नाथ सम्प्रदाय के नाथ के रूप में परमेश्वर शिव को ही परम-तत्त्व माना जाता है, और वे आदिनाथ के रूप में प्रतिष्ठित हैं।🚩🕉️🚩



🚩🕉️दाता 🕉️🚩श्री नाथ जी गुरुजी को आदेश आदेश आदेश🚩🕉️🚩🚩

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🕉🚩Jai shree Ram 🚩🙏
🕉🚩Jai shree Krishna🚩🙏
🕉🚩Jai MahaKal 🚩🙏

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Chlo thik hai


Aapki bat man leta hu

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Kailash mansarovar 😍😍😍

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Think Straight. Focus और Clarity बढ़ाओ मन को शांत करो.

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👉 आत्मचिंतन के क्षण Aatmchintan Ke Kshan 01 Nov 2023

🔷 अक्सर अनुकूलताओं में सुखी और प्रतिकूलताओं में दुःखी होना हमारा स्वभाव बन गया है। उन्नति के, लाभ के, फल-प्राप्ति के क्षणों में हमें बेहद खुशी होती है तो कुछ न मिलने पर, लाभ न होने पर दुःख भी कम नहीं होता। लेकिन इसका आधार तो स्वार्थ, प्रतिफल, लगाव अधिकार आदि की भावना है। इन्हें हटाकर देखा जाय तो सुख-दुःख का कोई अस्तित्व ही शेष न रहेगा। दोनों ही निःशेष हो जायेंगे।

🔶 सुख-दुःख का सम्बन्ध मनुष्य की भावात्मक स्थिति से मुख्य है। जैसा मनुष्य का भावना स्तर होगा उसी के रूप में सुख-दुःख की अनुभूति होगी। जिनमें उदार दिव्य सद्भावनाओं का समुद्र उमड़ता रहता है, वे हर समय प्रसन्न, सुखी, आनन्दित रहते हैं। स्वयं तथा संसार और इसके पदार्थों को प्रभु का मंगलमय उपवन समझने वाले महात्माओं को पद-पद पर सुख के सिवा कुछ और रहता ही नहीं। काँटों में भी वे फलों की तरह मुस्कुराते हुए सुखी रहते हैं। कठिनाइयों में भी उनका मुँह कभी नहीं कुम्हलाता।

🔷 संकीर्णमना हीन भावना वाले, रागद्वेष से प्रेरित स्वभाव वाले व्यक्तियों को यह संसार दुःखों का सागर मालूम पड़ेगा। ऐसे व्यक्ति कभी नहीं कहेंगे कि “हम सुखी हैं।” वे दुःख में ही जीते हैं और दुःख में ही मरते हैं। दुर्भावनायें ही दुःखों की जनक है। इसी तरह वे हैं जिनका पूरा ध्यान अपनेपन पर ही है। उनका भी दुःखी रहना स्वाभाविक है। केवल अपने को सुखी देखने वाले, अपना हित, अपना लाभ चाहने वाले, अपना ही एकमात्र ध्यान रखने वाले संकीर्णमना व्यक्तियों को सदैव मनचाहे परिणाम तो मिलते नहीं। अतः अधिकतर दुःख और रोना-धोना ही इस तरह के लोगों के पल्ले पड़ता है।

✍🏻 पं श्रीराम शर्मा आचार्य

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आदरणीय पाठकों
राधे - राधे ॥ आज का भगवद् चिन्तन ॥
01 - 11 - 2023
॥ शुभ करवा चौथ ॥

करवा चौथ (करक चतुर्थी) अर्थात भारतीय नारी के समर्पण, सहजता, त्याग, महानता एवं पति परायणा को व्यक्त करता एक पर्व। दिन भर स्वयं भूखा प्यासा रहकर रात्रि को जब मांगने का अवसर आया तो अपने पति देव के मंगलमय, सुखमय और दीर्घायु जीवन की ही याचना करना यह नारी का त्याग और समर्पण नही तो और क्या है ?

एक नारी के त्याग और परिवार के प्रति समर्पण को इसी बात से देखा जा सकता है कि उसे जब भी और जहाँ भी माँगने का अवसर मिला उसने कभी भी अपने लिए कुछ ना माँगकर अपने पति के लिए, अपनी संतति के लिए अथवा अपने पूरे परिवार के लिए ही कुछ याचना की है। वो भगवान से भी माँगेगी तो केवल अपने परिवार के लिए ही कोई माँग करेगी।

पुरूषों को भी इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि जो नारी आपके लिए इतना कष्ट सहती है उसे कष्ट ना दिया जाए। जो नारी आपके लिए समर्पित है उसको और संतप्त ना किया जाए। जो नारी प्राणों से बढ़कर आपका सम्मान करती है जीवन भर उसके सम्मान की रक्षा का प्रण आपको भी लेना है।


💫🪷श्री राधावल्लभो जयती🌺✨

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वो विज्ञान भैरव है
हमको विज्ञान भैरव तंत्र चाहिए था

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ओंमकार सिद्धि

Omkar Siddhi


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किसी योग्य गुरु से संपर्क करें। यदि आप चाहें तो निखिल परिवार [पूज्य परमहंस स्वामी निखिलेश्वरानंद ( डा नारायण दत्त श्रीमाली) ] के त्रिमूर्ति पुत्र (जोधपुर)से दीक्षा ले सकते हैं।

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