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Mukesh Rajput
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Hare Krishna dear Devotees pls watch this beautiful lecture about Ekadashi ...
This video gives answer for all these questions
Ekadashi Rules
Ekadashi Dos and dont’s
Ekadashi food allowed
Ekadashi food ristricted
Ekadashi prohibited things
Normal ekadashi or Vaishnav ekadashi
Why two ekadashi
How to keep ekadashi
If we break ekadashi by mistake
Nirjala ekadashi
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
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It was the program complete coverage to awaken Hindus all over the world
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*Also request to you all vaishnav pls hear only first 15 Minute*
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“Unknowing the Unknowing Truth of Checking the Killing of Dabholkar, Kalburghi, Pansare and Lunkesh” - Dr. Amit Thadani, Author
“THE RATIONALIST MURDERS”
Diary of a ruined investigation"
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Leila of Gorang Mahabhu.
The main part of the sermons of Shril Nava Yogendra Swami Ji Maharaj
Date:-Apr 30, 2023, ISCON Udhampur.
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The Lord feels good when God is addressed through the devotees.
If you don’t have any love, then life sucks. If Krishna got love, then life is true.
Only seek the devotion of Shri Krishna from the devotees of Bhagwan. It is very important to sacrifice in life as this world is not our home.
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वांछा कल्पतृभ्यश्च कृपा सिन्धुभ्य एव च।
पतितानाम पावनेभ्यो वैष्णवेभ्यो नमो नमः।।
सभी वैष्णव भक्तवृंद को दण्डवत प्रणाम।🙏 🙏 🙏
परमेश्वर दास ( प्रदीप गुप्ता )
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एक बार संत सूरदास जी को एक सज्जन ने भजन के लिए आमंत्रित किया। भजनोपरांत सज्जन को उन्हें घर तक पहुंचाने का ध्यान ही नहीं रहा। सूरदास जी ने भी उसे तकलीफ नहीं देनी चाही और खुद ही लाठी लेकर गोविंद-गोविंद करते हुए अंधेरी रात में पैदल ही अपने घर की ओर निकल पड़े।
रास्ते में एक कुआं पड़ता था। वे लाठी से टटोलते-टटोलते, भगवान का नाम लेते हुए बढ़ रहे थे, कि उनके पांव और कुएं के बीच मात्र कुछ ही दूरी रह गई थी, और तभी उन्हें लगा कि किसी ने उनकी लाठी पकड़ ली है, उन्होंने पूछा- तुम कौन हो?
उत्तर मिला- बाबा! मैं एक बालक हूं। मैं भी आपका भजन सुन कर लौट रहा हूं। देखा कि आप गलत रास्ते जा रहे हैं, इसलिए मैं इधर आ गया। चलिए, आपको घर तक छोड़ दूं।
सूरदास जी ने पूछा- तुम्हारा नाम क्या है बेटा?
उत्तर मिला- बाबा! अभी तक मां ने मेरा नाम नहीं रखा है।
सूरदास जी ने पूछा- तब मैं तुम्हें किस नाम से पुकारूं?
उत्तर मिला- कोई भी नाम चलेगा बाबा।
सूरदास जी ने रास्ते में और भी कई सवाल पूछे और तब उन्हें लगा कि हो न हो, यह कन्हैया हैं। वे समझ गए कि आज गोपाल खुद मेरे पास आए हैं। क्यों नहीं मैं इनका हाथ पकड़ लूं। और यह सोचकर वे अपना हाथ उस लाठी पर भगवान श्री कृष्ण की ओर बढ़ाने लगे।
भगवान श्री कृष्ण उनकी यह चाल समझ गए।
सूरदास जी का हाथ धीरे-धीरे आगे बढ़ रहा था। जब केवल चार अंगुल अंतर रह गया, तब भगवान श्री कृष्ण लाठी को छोड़कर दूर चले गए। और जैसे ही उन्होंने लाठी छोड़ी, सूरदास जी विह्वल हो गए, उनकी आंखों से अश्रुधारा बह निकली, और वे बोले- मैं अंधा हूं, और ऐसे अंधे की लाठी छोड़कर चले जाना, कन्हैया तुम्हारी बहादुरी है क्या? और फिर उनके श्रीमुख से वेदना के यह स्वर निकल पड़े-
हाथ छुड़ाये जात हो,निर्बल जानि के मोय।
हृदय से जब जाओ,तो सबल जानूँगा तोय।।
सार- मुझे निर्बल जानकार मेरा हाथ छुड़ाकर जाते हो, पर मेरे हृदय से जाओ तो मैं तुम्हें सबल कहूं।
तब भगवान कृष्ण जी ने कहा- बाबा! अगर मैं ऐसे भक्तों के हृदय से चला जाऊं, तो फिर मैं कहां रहूं ।
यह सुनकर कृष्ण ने सूरदास का हाथ पकड़ उंसे उनके स्थान तक पहुँचाया।
🌹जय जय श्री राम 🌹
🌹दास अरुण 🌹
#friday
🎥 LIVE Started
"दाभोलकर, कलबुर्गी, पानसरे और लंकेश की हत्या की जांच के अनकहे सच का खुलासा" - डॉ. अमित थडानी, लेखक
"THE RATIONALIST MURDERS
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🙌🏼 आज हमारे प्राण सर्वस्व श्री श्रीराधारमण देव जू के 481 वें प्राकट्य महोत्सव की सभी को कोटि-कोटि बधाई !!
दक्षिण स्थित बेल्गुरी ग्राम में एक अनन्य वैष्णव श्रीवेंकट भट्ट जी के यहाँ श्री गोपाल भट्ट जी का जन्म 1556 वैक्रमीय माघ कृष्ण तृतीया को हुआ।जो बचपन से ही प्रतिभा शाली, सौम्य, सुशील थे।
दक्षिण यात्रा के समय प्रेमावातार श्रीराधाकृष्ण के अभिन्न स्वरुप कलि पावनावतार श्रीचैतन्य महाप्रभु जी ने इन्हीं श्रीवेंकट भट्ट जी के पास चातुर्मास्य किया था।
श्रीमन्महाप्रभु ने श्रीगोपाल भट्ट जी को स्वयं अष्टादशाक्षरीय गोपालमन्त्र की दीक्षा प्रदान की।और अविवाहित रहकर पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करने, माता पिता के जीवित रहते उनके समीप रहने, सम्पूर्ण सर्वशास्त्रों का विध्याध्य्न करने, उपरांत श्रीवृन्दावन आकर भजन, संकीर्तन, चिंतन और शास्त्र मर्म प्रकट करने वाले उत्कृष्ट ग्रंथों के प्रणय के साथ सर्व वैश्नावोप्योगी हरिभक्ति विलास वैष्णव स्मृति की सर्वशास्त्र प्रमाण युक्त रचना करने की एवं श्रीवृन्दावन में श्री राधागोविंद की निभ्रत लीलाओं तथा लीला स्थलियों को प्रकट करने की आज्ञा दी।
श्रीमन्महाप्रभु के आदेश प्रवाह में प्रवाहित होते हुए श्री गोस्वामी पाद श्रीधाम वृन्दावन पधारे तथा सुभद्र संत परिवेश में अन्यतम होकर भजन भाव रत विराजने लगे।
इनका स्वरूप अर्जित अभिराम तथा स्वभाव भाव दिव्यातिदिव्य ललाम था।इनके नृत्य, लय, ताल, मधुर स्वर, समन्वित पदावली, श्लोकवली एवं नामावली संकीर्तन के समय श्री धाम के समस्त समवेत भक्तगण समाहित-उन्मत और विभोर होकर अश्रुपात करते थे।
श्रीगोपालभट्ट जी में श्री महाप्रभु के नीलांचल जाकर दर्शन करने की उत्कृष्ट लालसा थी जो उत्तरोतर तीव्र विरह में परिणत होकर उन्हें अति विह्वल करती रहती।
श्रीगोपाल भट्ट पाद के भजन, शास्त्र सृजन तथा स्वरति रस निमग्न से अभिभूत होकर श्रीमहाप्रभु ने अपने धारण किये हुए दिव्य वस्त्र डोर, कोपीन, बहिर्वास, योगपट (पीठासन)तथा सन्देश पत्रिका अपने स्वकृपारूप वैष्णव जन के द्वारा श्री गोस्वामी जी के लिए वृन्दावन प्रेषित किये।
पत्रिका में उल्लेख था,"तुम्हे नीलांचल आने की अपेक्षा नहीं, मैं ही तुम्हारे पास वृन्दावन आ रहा हूँ"। सारे भक्त आर्तनाद कर उठे। श्रीभट्ट जी की अवस्था तो अवर्णननीय विरह की पराकाष्ठा में पहुँच गयी।
रात्रि भर कालिंदी कूल कुटीर में हा ! गौरहरि..हा! गौरहरि--कहकर रूदन करते रहे, तड़पते रहे।
श्री चैतन्य महाप्रभु का स्वप्नादेश प्राप्त कर देववन, बद्रिकाश्रम होते हुए परम स्थल गंडगी नदी से श्री दामोदर लक्षण युक्त विलक्षण शालिग्राम प्राप्त किया।
श्रीवृन्दावन आकर बड़े भाव-विरह से श्री दामोदर शिला की अर्चना -सेवा करने लगे।सर्वांग श्रृंगार कला निष्णात आचार्य पाद स्तम्भ से भगवान् श्री नृसिँह के प्राकटय लीला चरित्र से अत्यंत अभिभूत हो उठे तथा अहोरात्रि पर्यंत अश्रुपात करते रहे और संवत 1599 वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को प्रात:ब्रह्म महूर्त में दामोदर शिला की अर्चना हेतु जब पिटकोनमोचन किया ... तो श्री दामोदर शिला से भगवान श्रीराधारमण देव भट्ट प्रभु की अर्चना स्वीकार करने हेतु प्रकट हो गए।
अपने गुरुदेव श्री मन्महाप्रभु को श्री राधारमण देव के रूप में विग्रहवंत निहारकर श्री गोपाल भट्ट गोस्वामी पाद और श्री दामोदर दास गोस्वामी पाद आनंद के अपार पारावार में निमग्न हो गए।
श्री मन्महाप्रभु जी श्री जगन्नाथ विग्रह में अर्न्तध्यान होकर स्वयंभू श्रीराधारमण विग्रह में साक्षात् प्रकट हो गए।
कालिंदी कूल का यह पूजा स्थल ही डोल है।यहीं पर रासलीला के समय श्रीकृष्ण ने श्रीराधा का अनखशिख श्रृंगार किया।
अन्नंतर गोपीगण परितोष के हेतु स्वयं अर्न्तध्यान हो गए। *प्रिया जी ने "हा! रमण प्रेष्ठ क्वासि क्वासि महाभुज" विरह में यह उच्चारण किया और इसी आधार से श्री भट्ट जी ने श्री विग्रह का नाम 'श्रीराधारमण' रख दिया।*
श्रीगोपाल भट्ट गोस्वामी कलिकाल में भगवान् सनकादिकों के अवतार श्री प्रहलाद जी के समान ही है। जिनके प्राणानुराग से श्रीदामोदर शालिग्राम शिला से श्रीराधारमण देव का आलौकिक आविर्भाव हुआ।श्रीराधारमण देव के अनेक अलौकिक चमत्कार और प्रत्यक्ष श्रीराधागोविंद तथा श्री मन्महाप्रभु होने की अनुभूतियाँ और अनुग्रह की गाथाएं भक्तो को आनंदविभोर करती हैं।
🙌🏼 श्रीगोपालभट्ट प्राणधन श्रीराधारमण देव जू की जय
🙌🏼 श्रीराधारमण दासी परिकर 🙌🏼
*गौरांग महाप्रभु की लीला।*
*परम पूज्य श्रील नव योगेन्द्र स्वामी जी महाराज* के प्रवचन से मुख्य अंश 🙏
दिनांक:- *अप्रैल 30, 2023, इस्कॉन उधमपुर।*
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🔸जब भगवान को भक्तों के माध्यम से संबोधित करते हैं, तब भगवान को अच्छा लगता है।
🔸 _अगर कृष्ण प्रेम नहीं मिला, तो जीवन बेकार। अगर कृष्ण प्रेम मिल गया, तो जीवन साकार।_ जिसे भगवान से प्रेम हो गया, वो असली पंडित है।
🔸भगवान के भक्तों से केवल श्री कृष्ण की भक्ति मांगो। जीवन में त्याग होना बहुत आवश्यक है क्योंकि यह संसार हमारा घर नहीं है।
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