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न वाच्य: परिवादोऽयं न श्रोतव्य: कथञ्चन।
कर्णावपि पिधातव्यौ प्रस्थेयं चान्यतो भवेत्।।
(महाभारत,शान्तिपर्व,१३२/१२)
दूसरे की निंदा कभी भी न तो करनी चाहिए और न ही सुननी चाहिए। या तो कान बंद कर लेना चाहिए या कहीं अन्यत्र चल देना चाहिये। /channel/harekrishnaaharerama
सत्यमेवेश्वरो लोके सत्यं पद्माश्रिता सदा।
सत्यमूलानि सर्वाणि सत्यान्नास्ति परं पदम्।।
Truth is God. The goddess of wealth always takes refuge in truth. Truth is the root of everything. It is supreme and there is nothing above it.
"सत्य से ही ईश्वर की प्राप्ति होती है, सत्य से ही धन-धान्य मिलता है, सत्य ही सभी सुखों का मूल है, सत्य से बढ़कर और कोई वस्तु नहीं है जिसका आश्रय लिया जाए।"
(वाल्मीकि रामायण 2.109.13) /channel/harekrishnaaharerama
शठे शाठ्यं समाचरेत्'
'दुष्ट के साथ दुष्टता का ही व्यवहार करना चाहिए'|
विदुर नीति /channel/harekrishnaaharerama
हरे कृष्ण महामंत्र का जप प्रत्येक दिन करे
सुबह स्नान आदि करके एक लोटा जल सूर्य देव को अर्पित करे उसके बाद महादेव के परिरूप या शिवलिंग हो तो शिवलिंग पर जल अर्पित करे ☺️🕉️ मंगलवार को हनुमान चालीसा 7 बार
अपने फोन में सत्संग सुने जो आपको सही लगे ,और 1 सप्ताह तक mahamrityunjay जाप फोन में ही सुने उसके बाद धीरे धीरे खुद भी बोल बोल के जाप करते रहे l
कभी कभी सड़क रेलवे स्टेशन पर बैठे गरीब असहाय लोगों को देखे और उनकी मदद करे आप पाएंगें की आपके दर्दों डिप्रेशन इन सब चीज से भी बड़ा बड़ा दुख है संसार में
😊 खूब भजन कीर्तन सुने किरपा होगी प्रभु की l
हरे कृष्ण 🕉️👍🪕
This enchanting song of the Mahā Rāsa, which is pleasing to hear and auspicious among songs, was offered by the poet Kushagra at the feet of Krishna. /channel/harekrishnaaharerama
Читать полностью…कूजन्तं रामरामेति मधुरं मधुराक्षरम्।
आरुह्य कविताशाखां वन्दे वाल्मीकिकोकिलम्।।
श्रीरामरक्षास्तोत्रम् ३४
कविता रूपी डाली (शाखा) पर बैठकर, मधुर अक्षरों वाले ‘राम-राम’ इस मधुर नाम का कूजन (कलरव) करने वाली "वाल्मीकि" रुपी कोयल का हम वंदन करते हैं।। /channel/harekrishnaaharerama
Hare krishna hare krishna krishna krishna hare hare
hare rama hare rama ;rama rama hare hare 🙂❤️🙏
तत्रातिशुशुभे ताभिर्भगवान् देवकीसुत: ।
मध्ये मणीनां हैमानां महामरकतो यथा ॥ - भागवतम्
In the midst of the dancing gopis, Krishna appeared most brilliant, like an exquisite sapphire in the midst of golden ornaments /channel/harekrishnaaharerama
नाभिषेको न संस्कारः सिंहस्य क्रियते वने।
विक्रमार्जितसत्त्वस्य स्वयमेव मृगेन्द्रता॥
जंगल में शेर का राज्याभिषेक या संस्कार नहीं किया जाता है।वह अपनी शूरता के कारण सहज ही राजा बनता है। /channel/harekrishnaaharerama
"असहायः पुमानेकः कार्यान्तं नाधिगच्छति ।
तुषेणापि विनिर्मुक्तः तण्डुलो न प्ररोहति ॥"
"एक अकेला व्यक्ति बिना सहायता के कार्य को पूरा नहीं कर सकता । (जैसे कि ) छिलका निकाला हुआ चावल का दाना भी अंकुरित नहीं होता ।" /channel/harekrishnaaharerama
कैसे जलाते हैं आप दीपक ध्यान रखें, सही दिशा में होनी चाहिए दीपक की लौ 🧵
हिन्दू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पहले दीपक जलाए जाते हैं। सुबह-शाम होने वाली पूजा में भी दीपक जलाने की परंपरा है। वास्तुशास्त्र में दीपक जलाने व उसे रखने के संबंध में कई नियम बताए गए हैं। दीपक की लौ की दिशा किस ओर होनी चाहिए, इस संबंध में वास्तुशास्त्र में पर्याप्त जानकारी मिलती है। वास्तुशास्त्र में यह भी बताया गया है कि दीपक की लौ किस दिशा में होने पर उसका क्या फल मिलता है।
1. दीपक की लौ पूर्व दिशा की ओर रखने से आयु में वृद्धि होती है।
2. दीपक की लौ पश्चिम दिशा की ओर रखने से दु:ख बढ़ता है।
3. दीपक की लौ उत्तर दिशा की ओर रखने से धनलाभ होता है।
4. दीपक की लौ दक्षिण दिशा की ओर रखने से हानि होती है। यह हानि किसी व्यक्ति या धन के रूप में भी हो सकती है। किसी शुभ कार्य से पहले दीपक जलाते समय इस मंत्र का जप करने से शीघ्र ही सपलता मिलती है।
5. किसी शुभ कार्य से पहले दीपक जलाते समय इस मंत्र का जप करने से शीघ्र ही सफलता मिलती है-
दीपज्योति: परब्रह्म:
दीपज्योति: जनार्दन:
दीपोहरतिमे पापं संध्यादीपं* *नमोस्तुते..
शुभं करोतु कल्याणमारोग्यं सुखं सम्पदां
शत्रुवृद्धि विनाशं च दीपज्योति: नमोस्तुति... /channel/harekrishnaaharerama
"नोदन्वानर्थितामेति सदाम्भोभिः प्रपूर्यते ।
आत्मा तु पात्रतां नेयः पात्रमायान्ति सम्पदः॥"
"समुद्र कभी याचक नहीं बनता, (फिर भी नदियों के) जल से पूर्ण होता है । स्वयं को पात्र बनाना चाहिए । पात्र को ही सम्पत्तियाँ मिलतीं हैं ।" /channel/harekrishnaaharerama
The Song of the Full Moon Night of the Mahārāsa
महारासपूर्णिमागीतम्
शरदि शर्वरीशोदये प्रभो
त्वमसि भास्वरो रासमण्डले।
उडुपतिं विना तारकच्छटा
शतसहस्रशो नैव शोभते॥१
O Krishna, at moonrise in autumn, you alone are the resplendent one in the Rāsa-arena. For without the moon, the lustre of stars, though present in their hundreds of thousands, does not illuminate us.
करधृता यया पादकिङ्किणी
चरणयोर्यया कङ्कणं धृतम्।
विकृतवेष्टिता वेणुमोहिता
जयति गोपिका कृष्णवल्लभा॥२
Charmed by the music of the flute, the Gopi, who adorned her hands with anklets and feet with bracelets, while wearing her clothes inside out, excels as Krishna’s beloved.
सरसिजारुणे यस्य लोचने
मकरकुण्डले कर्णयोस्तथा।
मधुरिमा मुखे यस्य मोहनस्
तदधरामृतं को न वाञ्छति॥३
Who does not want the nectar flowing from the lips of the one whose eyes are radiant like a lotus, who wears crocodile-shaped ear-rings, and whose sweetness is enchanting?
तदपि मानिनी-गोपिका मुदा
करतलस्वनैर्नर्तयन्ति तम्।
अपि तु लीलया नृत्यति स्वतो
निभृतमर्म तद्वेत्ति को बुधः॥४
“But even then, the proud Gopis blissfully made him dance to the clapping of their hands. Or did he dance of his own accord?” - Who can know the secret of this matter?
अयि रहस्यकं सर्वमेव किं
जनकमातरौ तस्य निश्चिते।
प्रियतमस्तथापि व्रजेश्वरो
वदति विस्मिता गोपबालिका॥५
“Truly, everything is mysterious about this boy. Even the identity of his parents is not certain. But still the lord of Vraja is our beloved” - says an astonished cowherd.
कुमुदिनीचये रागिनीगणं
कुवलयाशये रागसङ्ग्रहम्।
चरणनूपुरे तालमालिकां
मुररिपोर्निशायां प्रपश्यतु॥६
In this night of Krishna, behold the Raginis in the hosts of night lotuses, the Ragas in the hearts of water-lilies, and the Talas in the beads of his anklets.
नभसि सर्वतो देवयोनिजैर्
धिगिति चिन्तितं वासवालयम्।
व्रजवधूरितः सा गरीयसी
यदुपतिर्जितो भक्तितो यया॥७
“Woe to this heaven!” thought the Devas as they surrounded the sky in all directions, “Higher than this is the Gopi of Vraja who won the scion of the Yadavas by her devotion.”
दिनकरोदये रासमण्डलं
पशुपतिस्स्वयं द्रष्टुमिच्छया।
विपिनमागतो गुर्जरीगला-
दृषभवाहनारूढभैरवः॥८
When the sun was about to rise, Shiva himself, desiring to see the Rāsa-arena, arrived at the forest. He sprung as Bhairava, riding Rishabha (the second note of the octave) from the song of a Gurjari (Raga Gurjari Todi).
व्रजकुले हि यो गोपिकार्चितो
भवतु सोऽधुना वस्तु चक्षुषोः।
विरहपीडिता व्याकुला हरिं
भरतभूरियं तं प्रतीक्षते॥९
May he, who was thus worshipped, by the milkmaids in Vraja, now become the object of my eyes. This land of Bharata, afflicted by the sorrow of separation, awaits his arrival.
तव मुखाम्बुजं संस्मराम्यहं
तव पदाम्बुजं चिन्तयाम्यहम्।
तव कराम्बुजस्यावलम्बनं
मम मनो मुदा याचते सखे॥१०
O friend, I remember your lotus-like face. I meditate upon your lotus-like feet. And my mind seeks the support of your lotus-like hands.
हृदि न ते दया हे दयानिधे
स्वपिषि वारिधौ योगनिद्रया।
अनवलम्बितं मोहसागरे
पतितमेव मां वा न वीक्षसे॥११
O abode of mercy! Either you do not have mercy in your heart, as you meditate in Vaikuntha; or, you do not see me sinking unsupported in this sea of delusion.
मनुजजीवनं निर्मितं त्वया
प्रणयबन्धनं साधितं त्वया।
विरहवेदना कारिता त्वया
जगदिदं हरे त्वां प्रतीक्षते॥१२
You created this human life, initiated this bond of affection, and caused the pangs of separation. And, O Krishna, now, this world awaits you.
गजपतेस्त्वया क्रन्दनं श्रुतं
द्रुपदनन्दिनीरोदनं श्रुतम्।
श्रुतमहो ध्रुवाभ्यर्थनं वने
कथमिह स्वरः श्रूयते न मे॥१३
You attended to the cries of the Gajendra. You heard the wailing of Draupadi. You answered the prayer of Dhruva in the forest. How then could you not hear my call?
नटति मोहनः कृष्णनागरो
नटति राधिका नागरी सदा।
नटति गोकुलं गोपलालितं
नटति पावनी रासयामिनी॥१४
Thus, Krishna dances, along with Radha and the entire Gokula, the beloved village of the cowherds. Dancing along is this night of Mahārāsa.
इति मनोहरं श्रीधरार्पितं
श्रवणसौख्यदं गीतमङ्गलम्।
कविकुशाग्रतो यन्निवेदितं
विजयते सदा रासकीर्तनम्॥१५ /channel/harekrishnaaharerama