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Hello, S RK
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22/09/2024 09:33:42

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मुझे वस्ल से ज़्यादा है अज़ीज़ हिज्र तेरा.!

मेरा दिल ये चाहता है कि तू मुझसे रूठ जाए.!

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हमारी वफ़ादारी उन्हें समझ नहीं आएगी अभी

गुरूर में बैठे है अभी वो की उन्हें चाहने वाले बहुत है...

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ऐ जिंदगी ..🌸

दुनिया का सबसे छोटा मुल्क मेरा ' दिल ' है


जिसकी टोटल आबादी ' सिर्फ तुम ' हो ! ❤️‍🩹


#Jindgi..💓😌

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महसूस यह होता है कि यह दौर-ए- तबाही हैं,

शीशे की अदालत है और पत्थर की गवाही हैं।

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मेरी "बदतमीजियां" तो "जग" ज़ाहिर है,"लेकिन",

तुम्हारी "शराफत" के "निशां" क्यों नही "मिलते"..!

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कभी महसूस कीजिए तपिश लफ्ज़ों की जनाब..

लिखते नहीं हम दर्द फकत वाह, वाह, के वास्ते..

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तेरी मर्जी से ढल जाऊं हर बार ये मुमकिन नहीं,

मेरा भी खुद का वजूद है में कोई आइना नही.!

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ईज़ा-दही की दाद जो पाता रहा हूँ मैं
हर नाज़-आफ़रीं को सताता रहा हूँ मैं

ऐ ख़ुश-ख़िराम पाँव के छाले तो गिन ज़रा
तुझ को कहाँ कहाँ न फिराता रहा हूँ मैं

जॉन एलिया

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एक लम्हे में सिमट आया है सदियों का सफ़र


ज़िन्दगी तेज़ बहुत तेज़ चली हो जैसे

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माँ बाप और उस्ताद सब हैं ख़ुदा की रहमत
है रोक-टोक उन की हक़ में तुम्हारे ने'मत


अल्ताफ़ हुसैन हाली

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नया इक रिश्ता पैदा क्यूँ करें हम
बिछड़ना है तो झगड़ा क्यूँ करें हम

ख़मोशी से अदा हो रस्म-ए-दूरी
कोई हंगामा बरपा क्यूँ करें हम

हमारी ही तमन्ना क्यूँ करो तुम
तुम्हारी ही तमन्ना क्यूँ करें हम

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अब कोई इम्तिहान है ही नहीं,
दूर तक आसमान है ही नहीं.

बात मैं आसुओं से करता हूँ,
मेरे मुहँ में ज़ुबान है ही नहीं.

बस्तियों को बुझाने जाऊँगा ,
चाहे मेरा मकान है ही नहीं.

तुम हो पत्थर, तुम्हें लुढ़कना है,
और आगे ढलान है ही नहीं.

एक सूरज हूँ ऐसा मैं जिसको,
रौशनी का गुमान है ही नहीं.

उसके तलवे भी चाट लो चाहे,
वक़्त अब मेहरबान है ही नहीं.

मेरी ग़ज़लों के साथ चलते रहो,
इस सफ़र में थकान है ही नहीं.

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रोकना मेरी हसरत थी और जाना उसका शौक..


वो शौक पूरा कर गया...... मेरी हसरतेँ तोड़ कर.!

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बैठे बैठे कोई ख़याल आया
ज़िंदा रहने का फिर सवाल आया....

कौन दरियाओं का हिसाब रखे
नेकियाँ नेकियों में डाल आया....

ज़िंदगी किस तरह गुज़ारते है
ज़िंदगी भर न ये कमाल आया....

झूठ बोला है कोई आईना वर्ना पत्थर में कैसे बाल आया....

वो जो दो-गज़ ज़मीं थी मेरे नाम
आसमाँ की तरफ़ उछाल आया....

क्यूँ ये सैलाब सा है आँखों में
मुस्कुराए थे हम-ख़याल आया........

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अब के हम बिछड़े तो सयाद कभी ख्वाबो में मिले,,
जिस तरह सूखे हुए फूल किताबो में मिले!!

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उनके अन्दाज़-ऐ-जुदाई में सलीका था बहुत

मुझ से पहले भी किसी और से वो बिछड़ा होगा

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सवाल में नहीं रहे जवाब से निकल गए.....

वो जो अज़ीम लोग थे किताब से निकल गए.....

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छोटी सी उम्र में बड़े तजुर्बे करवा दिए

पेट की भूख ने बड़े हुनर सिखा दिए ❣

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कभी लफ़्ज़ों में कशिश कभी शायरी में नशा,

हुआ जो तेरा असर अब मुझे होश कहाँ...!!!

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सुनिये...
आबाद रहेंगे वीराने शादाब रहेंगी ज़ंजीरें
जब तक दीवाने ज़िंदा हैं फूलेंगी फलेंगी ज़ंजीरें

आज़ादी का दरवाज़ा भी ख़ुद ही खोलेंगी ज़ंजीरें
टुकड़े टुकड़े हो जाएँगी जब हद से बढ़ेंगी ज़ंजीरें

जब सब के लब सिल जाएँगे हाथों से क़लम छिन जाएँगे
बातिल से लोहा लेने का एलान करेंगी ज़ंजीरें

अंधों बहरों की नगरी में यूँ कौन तवज्जोह करता है
माहौल सुनेगा देखेगा जिस वक़्त बजेंगी ज़ंजीरें

जो ज़ंजीरों से बाहर हैं आज़ाद उन्हें भी मत समझो
जब हाथ कटेंगे ज़ालिम के उस वक़्त कटेंगी ज़ंजीरें

हफ़ीज़ मेरठी

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09/09/2024 14:32:19

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कभी शिद्दत से गर्मी, कभी बारिश की फुहारें ,

ये सितंबर का महीना , समझ से बाहर है ...

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🚣

मैं फिर निकालूंगा तेरी तलाश में 'ऐ जिंदगी '

दुआ करना इस बार किसी से ' इश्क ' ना हो !


#Jindgi..🦋❣️

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उसे किसी से मोहब्बत न थी मगर उस ने

गुलाब तोड़ के दुनिया को शक में डाल दिया 💔

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अपने अजदाद की पहचान लिए फिरते हैं
जिससे महरूम हैं वो शान लिए फिरते हैं

वक्त रहता नहीं एक सा है ये फितरत इसकी
इब्ने सुल्तान कई पान लिए फिरते हैं

जब अमल करना था मशगूल रहे बातों में
अब ये बिगड़े हुए औसान लिए फिरते हैं

अपने घर की तो नही फिक्र है कुछ लोगो को
ग़ैर की खिडकियों पर कान लिए फिरते हैं

किए तामीर महल लोगों ने मक्कारी से
और जो मुफ़लिस हैं वो ईमान लिए फिरते हैं

दिल नहीं जीने का आ जाएं किसी के तो काम
बस हथेली पे यूँ ही जान लिए फिरते हैं

अबके तो बच गया पर कोई भरोसा भी नहीं
मेरी तस्वीर कुछ हैवान लिए फिरते हैं

है यहां कोई ख़रीदार ख़याले दिल का
अपने अशआर की दुकान लिए फिरते हैं

हमने भी देखा था भाई कभी इन्सां बनके
जो था वो भी गया नुक़सान लिए फिरते हैं

तू समझता है कि शायर है तू "ज़ैग़म" लेकिन
तेरे जैसे कई दीवान लिए फिरते हैं

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तेरी किताब के हर्फ़े, समझ नहीं आते।
ऐ ज़िन्दगी तेरे फ़लसफ़े, समझ नहीं आते।।

कितने पन्नें हैं, किसको संभाल कर रखूँ।
और कौन से फाड़ दूँ सफ़हे, समझ नहीं आते।।

चौंकाया है ज़िन्दगी, यूँ हर मोड़ पर तुमने।
बाक़ी कितने हैं शगूफे, समझ नहीं आते।।

हम तो ग़म में भी, ठहाके लगाया करते थे।
अब आलम ये है, कि.. लतीफे समझ नहीं आते।।

तेरा शुकराना, जो हर नेमत से नवाज़ा मुझको।
पर जाने क्यों अब तेरे तोहफ़े, समझ नहीं आते।।

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मैं जानता हूँ कहाँ तक उड़ान है उनकी

ये मेरे ही हाथ से निकले हुए परिंदे हैं..!

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मैं सादगी से जीने वाला,तुम बेखौफ हो
आओ दोनों मिल के मर्यादा में रहे।💫

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कहीं से काश तुम आवाज़ देते ।
ग़मों को हम कोई तो साज़ देते ।

तमन्ना ये भी दिल में है, तुम्हे हम,
तुम्हारे नाम से आवाज़ देते ।

बिखरना तय है फिर भी मुस्कराना,
गुलों को और क्या अंदाज़ देते ।

बहुत तौहीन होती आँसुओं की,
सदाओं को अगर अल्फाज़ देते ।

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