Hare Krishna! Excerpts from the teachings of Srila Prabhupada and other Gaudiya Vaishnav Acharyas.
🦁 Mahavatar Narasimha – The Best of the Best 🔥
A film that’s not just watched… it’s felt.
Powerful visuals, divine storytelling, and a message that awakens the soul. 🕊️
This isn’t just a movie — it’s an experience of Lord Narasimha’s glory! 🙌
If you haven’t seen it yet, don’t miss it.
And if you have… you already know why it’s unforgettable. 💥
Jai Narasimhadev
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Have you seen this movie ?
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*इस चातुर्मास व्रत में क्या करें और क्या न करें*
*चातुर्मास में हमें क्या करना चाहिए?*
* सूर्योदय से पहले उठकर स्नान करें।
* प्रातः सूर्योदय से पहले जप करें।
* नियमित दिनों की तुलना में अधिक माला जपें।
* चार महीनों तक ब्रह्मचर्य का पालन करें।
* अपनी क्षमता के अनुसार मंदिर में दान दें।
* श्रीमद्भागवतम् की प्रार्थनाएँ पढ़ें - (गजेंद्र मोक्ष लीला, कुंती महारानी की प्रार्थनाएँ, गोपी गीत)
* कृष्ण ग्रंथ, भगवद्गीता और श्रीमद्भागवतम् से बाल लीला का पाठ और ध्यान करें।
* इन चार महीनों में पड़ने वाली आठ एकादशियों का कड़ाई से पालन करना चाहिए।
* तुलसी महारानी की पूजा करनी चाहिए और उनकी परिक्रमा करनी चाहिए।
* भगवान को तुलसी के पत्ते अर्पित करने चाहिए।
* व्यक्ति को वैष्णव सेवा में संलग्न होना चाहिए (उन्हें प्रसाद के लिए आमंत्रित करें, उनके साथ जप करें और उनके साथ अन्य आध्यात्मिक गतिविधियाँ करें)
* इस चातुर्मास्य में श्रील प्रभुपाद की कम से कम एक पुस्तक पढ़ने का लक्ष्य रखें।
* अर्थ सहित वैष्णव भजन पढ़ें।
* तीर्थ यात्रा अवश्य करें।
* इस कृष्णभावनामृत आंदोलन में सहायता और प्रचार हेतु ज़िम्मेदारी से सेवा करें।
* सोने से पहले प्रतिदिन कृष्ण की प्रार्थना करें और उन्हें धन्यवाद दें।
*चातुर्मास में हमें क्या नहीं करना चाहिए?*
* चार नियमों (मांसाहार निषेध, जुआ निषेध, नशा निषेध, अवैध यौन संबंध निषेध) का उल्लंघन नहीं करना चाहिए।
* दूसरों की आलोचना नहीं करनी चाहिए।
* बिस्तर पर नहीं सोना चाहिए, बल्कि उचित बिस्तर बिछाकर ज़मीन पर सो सकते हैं।
* अत्यधिक नींद से बचना चाहिए।
* चातुर्मास में कुछ शुभ कार्य वर्जित हैं, जैसे- विवाह समारोह, ज़मीन खरीदना आदि।
हरे कृष्ण
सोमवार, *कामिका एकादशी*
*पारणा:* मंगलवार सुबह
6:08 से 7:08 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात
6:22 से 7:08 राजकोट, जामनगर, द्वारका
*Whatsapp*
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युधिष्ठिर ने पूछा: गोविन्द! वासुदेव! आपको मेरा नमस्कार है! श्रावण (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार आषाढ़) के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है? कृपया उसका वर्णन कीजिये।
भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन्! सुनो। मैं तुम्हें एक पापनाशक उपाख्यान सुनाता हूँ, जिसे पूर्वकाल में ब्रह्माजी ने नारदजी के पूछने पर कहा था।
नारदजी ने प्रश्न किया: हे भगवन्! हे कमलासन! मैं आपसे यह सुनना चाहता हूँ कि श्रवण के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? उसके देवता कौन हैं तथा उससे कौन सा पुण्य होता है? प्रभो! यह सब बताइये।
ब्रह्माजी ने कहा: नारद! सुनो। मैं सम्पूर्ण लोकों के हित की इच्छा से तुम्हारे प्रश्न का उत्तर दे रहा हूँ। श्रावण मास में जो कृष्णपक्ष की एकादशी होती है, उसका नाम ‘कामिका’ है। उसके स्मरणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। उस दिन श्रीधर, हरि, विष्णु, माधव और मधुसूदन आदि नामों से भगवान का पूजन करना चाहिए।
भगवान श्रीकृष्ण के पूजन से जो फल मिलता है, वह गंगा, काशी, नैमिषारण्य तथा पुष्कर क्षेत्र में भी सुलभ नहीं है। सिंह राशि के बृहस्पति होने पर तथा व्यतीपात और दण्डयोग में गोदावरी स्नान से जिस फल की प्राप्ति होती है, वही फल भगवान श्रीकृष्ण के पूजन से भी मिलता है।
जो समुद्र और वनसहित समूची पृथ्वी का दान करता है तथा जो ‘कामिका एकादशी’ का व्रत करता है, वे दोनों समान फल के भागी माने गये हैं।
जो ब्यायी हुई गाय को अन्यान्य सामग्रियों सहित दान करता है, उस मनुष्य को जिस फल की प्राप्ति होती है, वही ‘कामिका एकादशी’ का व्रत करनेवाले को मिलता है। जो नरश्रेष्ठ श्रावण मास में भगवान श्रीधर का पूजन करता है, उसके द्वारा गन्धर्वों और नागों सहित सम्पूर्ण देवताओं की पूजा हो जाती है।
अत: पापभीरु मनुष्यों को यथाशक्ति पूरा प्रयत्न करके ‘कामिका एकादशी’ के दिन श्रीहरि का पूजन करना चाहिए। जो पापरुपी पंक से भरे हुए संसार समुद्र में डूब रहे हैं, उनका उद्धार करने के लिए ‘कामिका एकादशी’ का व्रत सबसे उत्तम है। अध्यात्म विधापरायण पुरुषों को जिस फल की प्राप्ति होती है, उससे बहुत अधिक फल ‘कामिका एकादशी’ व्रत का सेवन करनेवालों को मिलता है।
‘कामिका एकादशी’ का व्रत करनेवाला मनुष्य रात्रि में जागरण करके न तो कभी भयंकर यमदूत का दर्शन करता है और न कभी दुर्गति में ही पड़ता है।
लालमणि, मोती, वैदूर्य और मूँगे आदि से पूजित होकर भी भगवान विष्णु वैसे संतुष्ट नहीं होते, जैसे तुलसीदल से पूजित होने पर होते हैं। जिसने तुलसी की मंजरियों से श्रीकेशव का पूजन कर लिया है, उसके जन्मभर का पाप निश्चय ही नष्ट हो जाता है।
या दृष्टा निखिलाघसंघशमनी स्पृष्टा वपुष्पावनी
रोगाणामभिवन्दिता निरसनी सिक्तान्तकत्रासिनी।
प्रत्यासत्तिविधायिनी भगवत: कृष्णस्य संरोपिता
न्यस्ता तच्चरणे विमुक्तिफलदा तस्यै तुलस्यै नम:॥
‘जो दर्शन करने पर सारे पापसमुदाय का नाश कर देती है, स्पर्श करने पर शरीर को पवित्र बनाती है, प्रणाम करने पर रोगों का निवारण करती है, जल से सींचने पर यमराज को भी भय पहुँचाती है, आरोपित करने पर भगवान श्रीकृष्ण के समीप ले जाती है और भगवान के चरणों मे चढ़ाने पर मोक्षरुपी फल प्रदान करती है, उस तुलसी देवी को नमस्कार है।’
जो मनुष्य एकादशी को दिन रात दीपदान करता है, उसके पुण्य की संख्या चित्रगुप्त भी नहीं जानते। एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के सम्मुख जिसका दीपक जलता है, उसके पितर स्वर्गलोक में स्थित होकर अमृतपान से तृप्त होते हैं। घी या तिल के तेल से भगवान के सामने दीपक जलाकर मनुष्य देह त्याग के पश्चात् करोड़ो दीपकों से पूजित हो स्वर्गलोक में जाता है।’
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर! यह तुम्हारे सामने मैंने ‘कामिका एकादशी’ की महिमा का वर्णन किया है। ‘कामिका’ सब पातकों को हरनेवाली है, अत: मानवों को इसका व्रत अवश्य करना चाहिए। यह स्वर्गलोक तथा महान पुण्यफल प्रदान करनेवाली है। जो मनुष्य श्रद्धा के साथ इसका माहात्म्य श्रवण करता है, वह सब पापों से मुक्त हो श्रीविष्णुलोक में जाता है।
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The purpose of Ekādasī Vratā... ~Srila Prabhupada
Gaurangas group children class now at Gorwa vadodara :-
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*Harikatha Madhuri @ISKCON Varachha | SB 5.6.1 | Uddhava Dasa | Heavy Class*
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I knew that Kṛṣṇa is there ~Srila Prabhupada
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Читать полностью…हरे कृष्णा!🌸
कल, 27 जून 2025, हम सब मिलकर मनाएँगे *श्री जगन्नाथ रथ यात्रा का शुभ पर्व!*🛕🎉
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*Srila Bhaktivinoda Thakura Disappearance Day - Fasting till noon*
*
_नमो भक्तिविनोदय सच्चिदानन्दनामिने ।_
_गौरशक्ति स्वरूपाय रूपानुगवरायते ।।_
श्रील भक्ति विनोद ठाकुर हमारी वैष्णव परंपरा के बहुत महान आचार्य हुए हैं। इनका जन्म 2 सितंबर, 1838 में उलाग्राम (वीरनगर), नदिया में हुआ था।
यूं तो ये गृहस्थ थे, किंतु इनका जीवन अत्यंत संयमित एवं कठिन तपस्या से भरा हुआ था। ये जगन्नाथ पुरी के डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट थे (जो कि अंग्रेजों के राज्य में किसी भी भारतीय को दिए जाने वाला सर्वोच्च पद था)।
_अंग्रेजी सरकार इनके कार्य से इतनी खुश थी कि उन्होंने विशेष रूप से इनके घर तक रेलवे लाइन बिछाई थी जो केवल उनके निजी इस्तेमाल के लिए थी, जिस में बैठकर वे दफ्तर जाया करते थे।_
*उनका दैनिक कार्यक्रम इस प्रकार था ―*
7:30-8:00 PM – विश्राम
10:00 PM-4:00 AM – ग्रंथ लेखन
4:00-4:30 – विश्राम
4:30-7:00 – "हरे कृष्ण महामंत्र" जप
7:00-7:30 – पत्राचार
7:30 – अध्ययन
8:30 – अतिथियों का स्वागत या अध्ययन करते रहना
9:30-9:45 – विश्राम
9:45-10:00– स्नान, प्रसाद सेवन (आधा लिटर दूध, 2 रोटी, फल)
10:00-1:00 PM – कोर्ट का कार्य
1:00-2:00 – अल्प आहार
2:00-5:00 – कोर्ट का कार्य
5:00-7:00 – संस्कृत ग्रंथ अनुवाद कार्य
7:00-7:30 PM – स्नान, प्रसाद सेवन (भात, 2 रोटी, आधा लीटर दूध)
वे कोट पैंट डालकर, तुलसी की कंठी माला पहने, *वैष्णव तिलक लगाकर दफ्तर जाया करते थे* और बहुत जल्दी निर्णय लिया करते थे। कोर्ट के अंदर 1 दिन में कई सारे निर्णय दे देते थे (जो कि हमेशा सही होते थे)।
*भक्ति विनोद ठाकुर के कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान इस प्रकार हैं :*
# उन्होंने 100 से भी अधिक ग्रंथों का निर्माण किया (जिनमें से कई ग्रंथ इन्होंने विदेशों में भी भेजें)।
# उन्होंने बहुत से संस्कृत ग्रंथों का बांग्ला भाषा में अनुवाद किया।
# उन्होने मायापुर के अंदर भगवान *श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु* (जो कि भगवान कृष्ण के ही कलयुग में हुए अवतार हैं) कि प्रकट स्थली की खोज की।
# उन्होंने बहुत से(लगभग 13) *अप संप्रदायों* का पर्दाफाश किया (अप संप्रदाय का अर्थ होता है ऐसे लोग जो बाहर से भक्त होने का दिखावा करते हैं किंतु अत्यंत विषई और कामी होते हैं)
# उन्होंने कई सारे नकली साधुओं को भी पकड़वाया
...क्योंकि इनके कार्य वृंदावन के षड् गोस्वामी गण जैसे ही थे इसीलिए *इन्हें सातवां गोस्वामी भी कहा जाता है।*
जीवों की इस दुरावस्था को देखकर उदारता के लीलामय विग्रह श्रीमन् महाप्रभु जी का मन दया से भर आया और उन्होंने जीवों के आत्यंतिक मंगल के लिए अपने निजजन श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी को जगत में भेजा। ठाकुर श्रील भक्ति विनोद जी ने अपनी अलौकिक शक्ति से विभिन्न भाषाओं में सौ से भी अधिक ग्रंथ लिखकर शुद्ध भक्ति सिद्धांतों के विरुद्ध मतों का खंडन किया और ऐसा करते हुए उन्होने श्रीमन् महाप्रभु जी की शिक्षा का सर्वश्रेष्ठ तत्व स्थापित किया।
इन्होंने भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में कई भजन भी लिखे हैं। (ये वैष्णव गीत आज भी भक्तों को श्री कृष्ण से अनुराग और संसार की वास्तविकता का बोध कराते हैं, इन्होंने पहला गीत 7 वर्ष की आयु में ही लिख दिया था)।
जीवों की दुरावस्था को देखकर उदारता के लीलामय विग्रह श्रीमन् महाप्रभु जी का मन दया से भर आया और उन्होंने जीवों के आत्यंतिक मंगल के लिए अपने निजजन श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी को जगत में भेजा। ठाकुर श्रील भक्ति विनोद जी ने अपनी अलौकिक शक्ति से विभिन्न भाषाओं में सौ से भी अधिक ग्रंथ लिखकर शुद्ध भक्ति सिद्धांतों के विरुद्ध मतों का खंडन किया और ऐसा करते हुए उन्होने श्रीमन् महाप्रभु जी की शिक्षा का सर्वश्रेष्ठ तत्व स्थापित किया।
*श्रील भक्ति विनोद ठाकुर महाराज की जय!*
*हरे कृष्ण*
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Gaurangas Children class Gorwa Baroda 🤩
Mangal Darshan🙏🙏
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Mangal darshan🙏🙏
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Mangal darshan 🙏🙏
✨ What We Offer at Gauranga’s Children Class:
🎶 Bhajans & Kirtans with Instruments
📖 Value-Based Krishna Stories from Scriptures
🕉 Shloka Chanting with Meaning & Application
📚 “Values of Life” Syllabus Books – Structured by Age
🔢 Vedic Maths – Ancient Tricks for Sharp Thinking
🧘 Yoga & Breathing Practices for Focus and Calmness
🐄 Goshala Visits – Learning Cow Protection Values
🛕 Temple Seva, Darshan & Festival Participation
🎨 Devotional Crafts, Art & Creative Activities
📿 Tulsi Mala Japa – 1 Round Meditation Practice
🧩 Group Games, Quizzes & Role Plays
🧳 Special Yatras (Spiritual Outings)
🍛 Krishna Prasadam Every Week
🏅 Certificates, Assessments & Gift Rewards
👨👩👧 Monthly Parent–Teacher Meeting to Track Child's Progress
🧒 Program Name: Gauranga’s Children Class
🏢 Venue: Pre Shennan School, Gorwa Panchvati, Behind Jakat Naka, Beside Navjyoti Society
🕘 Time: Every Sunday | 9:00 AM – 11:00 AM
🎓 Organized by: ISKCON Vadodara – Gauranga’s Group
☎️ Contact: 7600095955
🌐 Language: Bilingual (Gujarati + English)
🔗 Register Here:- https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSeskeaeAggaVedglhAhlQSDeVt_L_AwjME0o75eW5_m8Dtl9g/viewform?usp=header
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हरे कृष्ण
रविवार, *शयन एकादशी*
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हरे कृष्ण
रविवार, *शयन एकादशी*
*पारणा:* सोमवार सुबह
6:03 से 10:28 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात
6:16 से 10:37 राजकोट, जामनगर, द्वारका
युधिष्ठिर ने पूछा: भगवन्! आषाढ़ के शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है? उसका नाम और विधि क्या है? यह बतलाने की कृपा करें।
भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन्! आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम ‘शयनी’ है। मैं उसका वर्णन करता हूँ। वह महान पुण्यमयी, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करनेवाली, सब पापों को हरनेवाली तथा उत्तम व्रत है। आषाढ़ शुक्लपक्ष में ‘शयनी एकादशी’ के दिन जिन्होंने कमल पुष्प से कमललोचन भगवान विष्णु का पूजन तथा एकादशी का उत्तम व्रत किया है, उन्होंने तीनों लोकों और तीनों सनातन देवताओं का पूजन कर लिया। ‘हरिशयनी एकादशी’ के दिन मेरा एक स्वरुप राजा बलि के यहाँ रहता है और दूसरा क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर तब तक शयन करता है, जब तक आगामी कार्तिक की एकादशी नहीं आ जाती, अत: आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मनुष्य को भलीभाँति धर्म का आचरण करना चाहिए। जो मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है, इस कारण यत्नपूर्वक इस एकादशी का व्रत करना चाहिए। एकादशी की रात में जागरण करके शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। ऐसा करनेवाले पुरुष के पुण्य की गणना करने में चतुर्मुख ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं।
राजन्! जो इस प्रकार भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले सर्वपापहारी एकादशी के उत्तम व्रत का पालन करता है, वह जाति का चाण्डाल होने पर भी संसार में सदा मेरा प्रिय रहनेवाला है। जो मनुष्य दीपदान, पलाश के पत्ते पर भोजन और व्रत करते हुए चौमासा व्यतीत करते हैं, वे मेरे प्रिय हैं। चौमासे में भगवान विष्णु सोये रहते हैं, इसलिए मनुष्य को भूमि पर शयन करना चाहिए। सावन में साग, भादों में दही, क्वार में दूध और कार्तिक में दाल का त्याग कर देना चाहिए। जो चौमसे में ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है। राजन्! एकादशी के व्रत से ही मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है, अत: सदा इसका व्रत करना चाहिए। कभी भूलना नहीं चाहिए।
युधिष्ठिर ने पूछा: भगवन्! आषाढ़ के शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है? उसका नाम और विधि क्या है? यह बतलाने की कृपा करें।
भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन्! आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम ‘शयनी’ है। मैं उसका वर्णन करता हूँ। वह महान पुण्यमयी, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करनेवाली, सब पापों को हरनेवाली तथा उत्तम व्रत है। आषाढ़ शुक्लपक्ष में ‘शयनी एकादशी’ के दिन जिन्होंने कमल पुष्प से कमललोचन भगवान विष्णु का पूजन तथा एकादशी का उत्तम व्रत किया है, उन्होंने तीनों लोकों और तीनों सनातन देवताओं का पूजन कर लिया। ‘हरिशयनी एकादशी’ के दिन मेरा एक स्वरुप राजा बलि के यहाँ रहता है और दूसरा क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर तब तक शयन करता है, जब तक आगामी कार्तिक की एकादशी नहीं आ जाती, अत: आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मनुष्य को भलीभाँति धर्म का आचरण करना चाहिए। जो मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है, इस कारण यत्नपूर्वक इस एकादशी का व्रत करना चाहिए। एकादशी की रात में जागरण करके शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। ऐसा करनेवाले पुरुष के पुण्य की गणना करने में चतुर्मुख ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं।
राजन्! जो इस प्रकार भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले सर्वपापहारी एकादशी के उत्तम व्रत का पालन करता है, वह जाति का चाण्डाल होने पर भी संसार में सदा मेरा प्रिय रहनेवाला है। जो मनुष्य दीपदान, पलाश के पत्ते पर भोजन और व्रत करते हुए चौमासा व्यतीत करते हैं, वे मेरे प्रिय हैं। चौमासे में भगवान विष्णु सोये रहते हैं, इसलिए मनुष्य को भूमि पर शयन करना चाहिए। सावन में साग, भादों में दही, क्वार में दूध और कार्तिक में दाल का त्याग कर देना चाहिए। जो चौमसे में ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है। राजन्! एकादशी के व्रत से ही मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है, अत: सदा इसका व्रत करना चाहिए। कभी भूलना नहीं चाहिए।
https://www.instagram.com/reel/DLnCxUzKO9m/?igsh=MzhubGppNGY4M3V6
Читать полностью…रथारूढो गच्छन् पथि मिलित भूदेव पटलैः
स्तुति प्रादुर्भावम् प्रतिपदमुपाकर्ण्य सदयः ।
दया सिन्धुर्बन्धुः सकल जगतां सिन्धु सुतया
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे
Rath Yatra Mahamahotsava ki jayyyy hooo !!
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Netrotsava Today ! 🤩 Darshan after 15 days 🙌
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If you simply read our books very carefully... ~Srila Prabhupada
हरे कृष्ण
रविवार, *योगिनी एकादशी*
*पारणा:* सोमवार सुबह
5:58 से 10:25 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात
6:12 से 10:34 राजकोट, जामनगर, द्वारका
*Whatsapp*
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युधिष्ठिर ने पूछा: वासुदेव! आषाढ़ के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? कृपया उसका वर्णन कीजिये।
भगवान श्रीकृष्ण बोले: नृपश्रेष्ठ! आषाढ़ (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार ज्येष्ठ) के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम ‘योगिनी’ है। यह बड़े बडे पातकों का नाश करनेवाली है। संसारसागर में डूबे हुए प्राणियों के लिए यह सनातन नौका के समान है।
अलकापुरी के राजाधिराज कुबेर सदा भगवान शिव की भक्ति में तत्पर रहनेवाले हैं। उनका ‘हेममाली’ नामक एक यक्ष सेवक था, जो पूजा के लिए फूल लाया करता था। हेममाली की पत्नी का नाम ‘विशालाक्षी’ था। वह यक्ष कामपाश में आबद्ध होकर सदा अपनी पत्नी में आसक्त रहता था। एक दिन हेममाली मानसरोवर से फूल लाकर अपने घर में ही ठहर गया और पत्नी के प्रेमपाश में खोया रह गया, अत: कुबेर के भवन में न जा सका। इधर कुबेर मन्दिर में बैठकर शिव का पूजन कर रहे थे। उन्होंने दोपहर तक फूल आने की प्रतीक्षा की। जब पूजा का समय व्यतीत हो गया तो यक्षराज ने कुपित होकर सेवकों से कहा: ‘यक्षों! दुरात्मा हेममाली क्यों नहीं आ रहा है?’
यक्षों ने कहा: राजन्! वह तो पत्नी की कामना में आसक्त हो घर में ही रमण कर रहा है। यह सुनकर कुबेर क्रोध से भर गये और तुरन्त ही हेममाली को बुलवाया। वह आकर कुबेर के सामने खड़ा हो गया। उसे देखकर कुबेर बोले: ‘ओ पापी! अरे दुष्ट! ओ दुराचारी! तूने भगवान की अवहेलना की है, अत: कोढ़ से युक्त और अपनी उस प्रियतमा से वियुक्त होकर इस स्थान से भ्रष्ट होकर अन्यत्र चला जा।’
कुबेर के ऐसा कहने पर वह उस स्थान से नीचे गिर गया। कोढ़ से सारा शरीर पीड़ित था परन्तु शिव पूजा के प्रभाव से उसकी स्मरणशक्ति लुप्त नहीं हुई। तदनन्तर वह पर्वतों में श्रेष्ठ मेरुगिरि के शिखर पर गया। वहाँ पर मुनिवर मार्कण्डेयजी का उसे दर्शन हुआ। पापकर्मा यक्ष ने मुनि के चरणों में प्रणाम किया। मुनिवर मार्कण्डेय ने उसे भय से काँपते देख कहा: ‘तुझे कोढ़ के रोग ने कैसे दबा लिया?’
यक्ष बोला: मुने! मैं कुबेर का अनुचर हेममाली हूँ। मैं प्रतिदिन मानसरोवर से फूल लाकर शिव पूजा के समय कुबेर को दिया करता था। एक दिन पत्नी सहवास के सुख में फँस जाने के कारण मुझे समय का ज्ञान ही नहीं रहा, अत: राजाधिराज कुबेर ने कुपित होकर मुझे शाप दे दिया, जिससे मैं कोढ़ से आक्रान्त होकर अपनी प्रियतमा से बिछुड़ गया। मुनिश्रेष्ठ! संतों का चित्त स्वभावत: परोपकार में लगा रहता है, यह जानकर मुझ अपराधी को कर्त्तव्य का उपदेश दीजिये।
मार्कण्डेयजी ने कहा: तुमने यहाँ सच्ची बात कही है, इसलिए मैं तुम्हें कल्याणप्रद व्रत का उपदेश करता हूँ। तुम आषाढ़ मास के कृष्णपक्ष की ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत करो। इस व्रत के पुण्य से तुम्हारा कोढ़ निश्चय ही दूर हो जायेगा।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: राजन्! मार्कण्डेयजी के उपदेश से उसने ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत किया, जिससे उसके शरीर को कोढ़ दूर हो गया। उस उत्तम व्रत का अनुष्ठान करने पर वह पूर्ण सुखी हो गया।
नृपश्रेष्ठ! यह ‘योगिनी’ का व्रत ऐसा पुण्यशाली है कि अठ्ठासी हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने से जो फल मिलता है, वही फल ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत करनेवाले मनुष्य को मिलता है। ‘योगिनी’ महान पापों को शान्त करनेवाली और महान पुण्य फल देनेवाली है। इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है।
https://youtube.com/shorts/5QWDoGU3-qE?si=gi981ti-JJLcZM64
There are four sampradāyas ~Srila Prabhupada
https://youtu.be/P4Y8piB7ILw?si=FmDeNE9Il3hHrzWZ
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