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1959

Hare Krishna! Excerpts from the teachings of Srila Prabhupada and other Gaudiya Vaishnav Acharyas.

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Srila Prabhupada's Teachings

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Mangal darshan 🙏🙏

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Srila Prabhupada's Teachings

✨ What We Offer at Gauranga’s Children Class:

🎶 Bhajans & Kirtans with Instruments

📖 Value-Based Krishna Stories from Scriptures

🕉 Shloka Chanting with Meaning & Application

📚 “Values of Life” Syllabus Books – Structured by Age

🔢 Vedic Maths – Ancient Tricks for Sharp Thinking

🧘 Yoga & Breathing Practices for Focus and Calmness

🐄 Goshala Visits – Learning Cow Protection Values

🛕 Temple Seva, Darshan & Festival Participation

🎨 Devotional Crafts, Art & Creative Activities

📿 Tulsi Mala Japa – 1 Round Meditation Practice

🧩 Group Games, Quizzes & Role Plays

🧳 Special Yatras (Spiritual Outings)
🍛 Krishna Prasadam Every Week

🏅 Certificates, Assessments & Gift Rewards

👨‍👩‍👧 Monthly Parent–Teacher Meeting to Track Child's Progress

🧒 Program Name: Gauranga’s Children Class

🏢 Venue: Pre Shennan School, Gorwa Panchvati, Behind Jakat Naka, Beside Navjyoti Society

🕘 Time: Every Sunday | 9:00 AM – 11:00 AM

🎓 Organized by: ISKCON Vadodara – Gauranga’s Group

☎️ Contact: 7600095955

🌐 Language: Bilingual (Gujarati + English)

🔗 Register Here:- https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSeskeaeAggaVedglhAhlQSDeVt_L_AwjME0o75eW5_m8Dtl9g/viewform?usp=header

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हरे कृष्ण
रविवार, *शयन एकादशी*

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हरे कृष्ण
रविवार, *शयन एकादशी*

*पारणा:* सोमवार सुबह
6:03 से 10:28 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात
6:16 से 10:37 राजकोट, जामनगर, द्वारका

युधिष्ठिर ने पूछा: भगवन्! आषाढ़ के शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है? उसका नाम और विधि क्या है? यह बतलाने की कृपा करें।

भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन्! आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम ‘शयनी’ है। मैं उसका वर्णन करता हूँ। वह महान पुण्यमयी, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करनेवाली, सब पापों को हरनेवाली तथा उत्तम व्रत है। आषाढ़ शुक्लपक्ष में ‘शयनी एकादशी’ के दिन जिन्होंने कमल पुष्प से कमललोचन भगवान विष्णु का पूजन तथा एकादशी का उत्तम व्रत किया है, उन्होंने तीनों लोकों और तीनों सनातन देवताओं का पूजन कर लिया। ‘हरिशयनी एकादशी’ के दिन मेरा एक स्वरुप राजा बलि के यहाँ रहता है और दूसरा क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर तब तक शयन करता है, जब तक आगामी कार्तिक की एकादशी नहीं आ जाती, अत: आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मनुष्य को भलीभाँति धर्म का आचरण करना चाहिए। जो मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है, इस कारण यत्नपूर्वक इस एकादशी का व्रत करना चाहिए। एकादशी की रात में जागरण करके शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। ऐसा करनेवाले पुरुष के पुण्य की गणना करने में चतुर्मुख ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं।

राजन्! जो इस प्रकार भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले सर्वपापहारी एकादशी के उत्तम व्रत का पालन करता है, वह जाति का चाण्डाल होने पर भी संसार में सदा मेरा प्रिय रहनेवाला है। जो मनुष्य दीपदान, पलाश के पत्ते पर भोजन और व्रत करते हुए चौमासा व्यतीत करते हैं, वे मेरे प्रिय हैं। चौमासे में भगवान विष्णु सोये रहते हैं, इसलिए मनुष्य को भूमि पर शयन करना चाहिए। सावन में साग, भादों में दही, क्वार में दूध और कार्तिक में दाल का त्याग कर देना चाहिए। जो चौमसे में ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है। राजन्! एकादशी के व्रत से ही मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है, अत: सदा इसका व्रत करना चाहिए। कभी भूलना नहीं चाहिए।

युधिष्ठिर ने पूछा: भगवन्! आषाढ़ के शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है? उसका नाम और विधि क्या है? यह बतलाने की कृपा करें।

भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन्! आषाढ़ शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम ‘शयनी’ है। मैं उसका वर्णन करता हूँ। वह महान पुण्यमयी, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करनेवाली, सब पापों को हरनेवाली तथा उत्तम व्रत है। आषाढ़ शुक्लपक्ष में ‘शयनी एकादशी’ के दिन जिन्होंने कमल पुष्प से कमललोचन भगवान विष्णु का पूजन तथा एकादशी का उत्तम व्रत किया है, उन्होंने तीनों लोकों और तीनों सनातन देवताओं का पूजन कर लिया। ‘हरिशयनी एकादशी’ के दिन मेरा एक स्वरुप राजा बलि के यहाँ रहता है और दूसरा क्षीरसागर में शेषनाग की शैय्या पर तब तक शयन करता है, जब तक आगामी कार्तिक की एकादशी नहीं आ जाती, अत: आषाढ़ शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर कार्तिक शुक्ल एकादशी तक मनुष्य को भलीभाँति धर्म का आचरण करना चाहिए। जो मनुष्य इस व्रत का अनुष्ठान करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है, इस कारण यत्नपूर्वक इस एकादशी का व्रत करना चाहिए। एकादशी की रात में जागरण करके शंख, चक्र और गदा धारण करनेवाले भगवान विष्णु की भक्तिपूर्वक पूजा करनी चाहिए। ऐसा करनेवाले पुरुष के पुण्य की गणना करने में चतुर्मुख ब्रह्माजी भी असमर्थ हैं।

राजन्! जो इस प्रकार भोग और मोक्ष प्रदान करनेवाले सर्वपापहारी एकादशी के उत्तम व्रत का पालन करता है, वह जाति का चाण्डाल होने पर भी संसार में सदा मेरा प्रिय रहनेवाला है। जो मनुष्य दीपदान, पलाश के पत्ते पर भोजन और व्रत करते हुए चौमासा व्यतीत करते हैं, वे मेरे प्रिय हैं। चौमासे में भगवान विष्णु सोये रहते हैं, इसलिए मनुष्य को भूमि पर शयन करना चाहिए। सावन में साग, भादों में दही, क्वार में दूध और कार्तिक में दाल का त्याग कर देना चाहिए। जो चौमसे में ब्रह्मचर्य का पालन करता है, वह परम गति को प्राप्त होता है। राजन्! एकादशी के व्रत से ही मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है, अत: सदा इसका व्रत करना चाहिए। कभी भूलना नहीं चाहिए।

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रथारूढो गच्छन् पथि मिलित भूदेव पटलैः
स्तुति प्रादुर्भावम् प्रतिपदमुपाकर्ण्य सदयः ।
दया सिन्धुर्बन्धुः सकल जगतां सिन्धु सुतया
जगन्नाथः स्वामी नयन पथ गामी भवतु मे
Rath Yatra Mahamahotsava ki jayyyy hooo !!

https://youtube.com/shorts/KMLDKdxwNiY?si=z0Nx_fPKwIPuZ9N_

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Netrotsava Today ! 🤩 Darshan after 15 days 🙌

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If you simply read our books very carefully... ~Srila Prabhupada

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हरे कृष्ण
रविवार, *योगिनी एकादशी*

*पारणा:* सोमवार सुबह
5:58 से 10:25 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात
6:12 से 10:34 राजकोट, जामनगर, द्वारका

*Whatsapp*
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युधिष्ठिर ने पूछा: वासुदेव! आषाढ़ के कृष्णपक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? कृपया उसका वर्णन कीजिये।

भगवान श्रीकृष्ण बोले: नृपश्रेष्ठ! आषाढ़ (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार ज्येष्ठ) के कृष्णपक्ष की एकादशी का नाम ‘योगिनी’ है। यह बड़े बडे पातकों का नाश करनेवाली है। संसारसागर में डूबे हुए प्राणियों के लिए यह सनातन नौका के समान है।

अलकापुरी के राजाधिराज कुबेर सदा भगवान शिव की भक्ति में तत्पर रहनेवाले हैं। उनका ‘हेममाली’ नामक एक यक्ष सेवक था, जो पूजा के लिए फूल लाया करता था। हेममाली की पत्नी का नाम ‘विशालाक्षी’ था। वह यक्ष कामपाश में आबद्ध होकर सदा अपनी पत्नी में आसक्त रहता था। एक दिन हेममाली मानसरोवर से फूल लाकर अपने घर में ही ठहर गया और पत्नी के प्रेमपाश में खोया रह गया, अत: कुबेर के भवन में न जा सका। इधर कुबेर मन्दिर में बैठकर शिव का पूजन कर रहे थे। उन्होंने दोपहर तक फूल आने की प्रतीक्षा की। जब पूजा का समय व्यतीत हो गया तो यक्षराज ने कुपित होकर सेवकों से कहा: ‘यक्षों! दुरात्मा हेममाली क्यों नहीं आ रहा है?’

यक्षों ने कहा: राजन्! वह तो पत्नी की कामना में आसक्त हो घर में ही रमण कर रहा है। यह सुनकर कुबेर क्रोध से भर गये और तुरन्त ही हेममाली को बुलवाया। वह आकर कुबेर के सामने खड़ा हो गया। उसे देखकर कुबेर बोले: ‘ओ पापी! अरे दुष्ट! ओ दुराचारी! तूने भगवान की अवहेलना की है, अत: कोढ़ से युक्त और अपनी उस प्रियतमा से वियुक्त होकर इस स्थान से भ्रष्ट होकर अन्यत्र चला जा।’

कुबेर के ऐसा कहने पर वह उस स्थान से नीचे गिर गया। कोढ़ से सारा शरीर पीड़ित था परन्तु शिव पूजा के प्रभाव से उसकी स्मरणशक्ति लुप्त नहीं हुई। तदनन्तर वह पर्वतों में श्रेष्ठ मेरुगिरि के शिखर पर गया। वहाँ पर मुनिवर मार्कण्डेयजी का उसे दर्शन हुआ। पापकर्मा यक्ष ने मुनि के चरणों में प्रणाम किया। मुनिवर मार्कण्डेय ने उसे भय से काँपते देख कहा: ‘तुझे कोढ़ के रोग ने कैसे दबा लिया?’

यक्ष बोला: मुने! मैं कुबेर का अनुचर हेममाली हूँ। मैं प्रतिदिन मानसरोवर से फूल लाकर शिव पूजा के समय कुबेर को दिया करता था। एक दिन पत्नी सहवास के सुख में फँस जाने के कारण मुझे समय का ज्ञान ही नहीं रहा, अत: राजाधिराज कुबेर ने कुपित होकर मुझे शाप दे दिया, जिससे मैं कोढ़ से आक्रान्त होकर अपनी प्रियतमा से बिछुड़ गया। मुनिश्रेष्ठ! संतों का चित्त स्वभावत: परोपकार में लगा रहता है, यह जानकर मुझ अपराधी को कर्त्तव्य का उपदेश दीजिये।

मार्कण्डेयजी ने कहा: तुमने यहाँ सच्ची बात कही है, इसलिए मैं तुम्हें कल्याणप्रद व्रत का उपदेश करता हूँ। तुम आषाढ़ मास के कृष्णपक्ष की ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत करो। इस व्रत के पुण्य से तुम्हारा कोढ़ निश्चय ही दूर हो जायेगा।

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: राजन्! मार्कण्डेयजी के उपदेश से उसने ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत किया, जिससे उसके शरीर को कोढ़ दूर हो गया। उस उत्तम व्रत का अनुष्ठान करने पर वह पूर्ण सुखी हो गया।

नृपश्रेष्ठ! यह ‘योगिनी’ का व्रत ऐसा पुण्यशाली है कि अठ्ठासी हजार ब्राह्मणों को भोजन कराने से जो फल मिलता है, वही फल ‘योगिनी एकादशी’ का व्रत करनेवाले मनुष्य को मिलता है। ‘योगिनी’ महान पापों को शान्त करनेवाली और महान पुण्य फल देनेवाली है। इस माहात्म्य को पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है।

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https://youtube.com/shorts/5QWDoGU3-qE?si=gi981ti-JJLcZM64

There are four sampradāyas ~Srila Prabhupada

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Ekadashi special darshan Snana🙌

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https://youtu.be/LXpGuGfQgIo?si=3gOPTbi8nRS82CsC
*5 important P for Nirjala Ekadashi*

हरे कृष्ण🙏

शनिवार, *पांडव निर्जला / भीम एकादशी*

*पारणा:* रविवार सुबह
5:52 से 7:20 वदोड़रा के लिए।
कृपया आप के स्थान के अनुसार आप पालन करें।🙏

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Gaurangas group children class now at Gorwa vadodara :-
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To connect please fill the form:-
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*Harikatha Madhuri @ISKCON Varachha | SB 5.6.1 | Uddhava Dasa | Heavy Class*

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https://youtube.com/shorts/0Sel4-BcdSI?si=WlJS2HWH5bfjKKbd

I knew that Kṛṣṇa is there ~Srila Prabhupada

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हरे कृष्णा!🌸

कल, 27 जून 2025, हम सब मिलकर मनाएँगे *श्री जगन्नाथ रथ यात्रा का शुभ पर्व!*🛕🎉

*गौरांग ग्रुप द्वारा आयोजित “श्री जगन्नाथ अन्नसेवा” में सहभागी बनें 🍛🙏*

आपका छोटा-सा सहयोग इस भव्य सेवा को सफल बना सकता है।
UPI: moib1208-2@okhdfcbank पर दान करें या QR कोड स्कैन करें 💖
लक्ष्मी सेवा और एड्रेस का स्क्रीन शॉर्ट निचे दिए गये नंबर पर भेजे

💝 विशेष दान के स्वरूप, आपको रथ यात्रा का महा प्रसादम आपके घर पर भेजा जाएगा! 🏠

📞 अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें: +91-7990200618

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*Srila Bhaktivinoda Thakura Disappearance Day - Fasting till noon*

*
_नमो भक्तिविनोदय सच्चिदानन्दनामिने ।_
_गौरशक्ति स्वरूपाय रूपानुगवरायते ।।_

श्रील भक्ति विनोद ठाकुर हमारी वैष्णव परंपरा के बहुत महान आचार्य हुए हैं। इनका जन्म 2 सितंबर, 1838 में उलाग्राम (वीरनगर), नदिया में हुआ था।

यूं तो ये गृहस्थ थे, किंतु इनका जीवन अत्यंत संयमित एवं कठिन तपस्या से भरा हुआ था। ये जगन्नाथ पुरी के डिस्ट्रिक्ट मैजिस्ट्रेट थे (जो कि अंग्रेजों के राज्य में किसी भी भारतीय को दिए जाने वाला सर्वोच्च पद था)।

_अंग्रेजी सरकार इनके कार्य से इतनी खुश थी कि उन्होंने विशेष रूप से इनके घर तक रेलवे लाइन बिछाई थी जो केवल उनके निजी इस्तेमाल के लिए थी, जिस में बैठकर वे दफ्तर जाया करते थे।_

*उनका दैनिक कार्यक्रम इस प्रकार था ―*
7:30-8:00 PM – विश्राम
10:00 PM-4:00 AM – ग्रंथ लेखन
4:00-4:30 – विश्राम
4:30-7:00 – "हरे कृष्ण महामंत्र" जप
7:00-7:30 – पत्राचार
7:30 – अध्ययन
8:30 – अतिथियों का स्वागत या अध्ययन करते रहना
9:30-9:45 – विश्राम
9:45-10:00– स्नान, प्रसाद सेवन (आधा लिटर दूध, 2 रोटी, फल)
10:00-1:00 PM – कोर्ट का कार्य
1:00-2:00 – अल्प आहार
2:00-5:00 – कोर्ट का कार्य
5:00-7:00 – संस्कृत ग्रंथ अनुवाद कार्य
7:00-7:30 PM – स्नान, प्रसाद सेवन (भात, 2 रोटी, आधा लीटर दूध)
वे कोट पैंट डालकर, तुलसी की कंठी माला पहने, *वैष्णव तिलक लगाकर दफ्तर जाया करते थे* और बहुत जल्दी निर्णय लिया करते थे। कोर्ट के अंदर 1 दिन में कई सारे निर्णय दे देते थे (जो कि हमेशा सही होते थे)।

*भक्ति विनोद ठाकुर के कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण योगदान इस प्रकार हैं :*
# उन्होंने 100 से भी अधिक ग्रंथों का निर्माण किया (जिनमें से कई ग्रंथ इन्होंने विदेशों में भी भेजें)।
# उन्होंने बहुत से संस्कृत ग्रंथों का बांग्ला भाषा में अनुवाद किया।
# उन्होने मायापुर के अंदर भगवान *श्री कृष्ण चैतन्य महाप्रभु* (जो कि भगवान कृष्ण के ही कलयुग में हुए अवतार हैं) कि प्रकट स्थली की खोज की।
# उन्होंने बहुत से(लगभग 13) *अप संप्रदायों* का पर्दाफाश किया (अप संप्रदाय का अर्थ होता है ऐसे लोग जो बाहर से भक्त होने का दिखावा करते हैं किंतु अत्यंत विषई और कामी होते हैं)
# उन्होंने कई सारे नकली साधुओं को भी पकड़वाया
...क्योंकि इनके कार्य वृंदावन के षड् गोस्वामी गण जैसे ही थे इसीलिए *इन्हें सातवां गोस्वामी भी कहा जाता है।*

जीवों की इस दुरावस्था को देखकर उदारता के लीलामय विग्रह श्रीमन् महाप्रभु जी का मन दया से भर आया और उन्होंने जीवों के आत्यंतिक मंगल के लिए अपने निजजन श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी को जगत में भेजा। ठाकुर श्रील भक्ति विनोद जी ने अपनी अलौकिक शक्ति से विभिन्न भाषाओं में सौ से भी अधिक ग्रंथ लिखकर शुद्ध भक्ति सिद्धांतों के विरुद्ध मतों का खंडन किया और ऐसा करते हुए उन्होने श्रीमन् महाप्रभु जी की शिक्षा का सर्वश्रेष्ठ तत्व स्थापित किया।

इन्होंने भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में कई भजन भी लिखे हैं। (ये वैष्णव गीत आज भी भक्तों को श्री कृष्ण से अनुराग और संसार की वास्तविकता का बोध कराते हैं, इन्होंने पहला गीत 7 वर्ष की आयु में ही लिख दिया था)।

जीवों की दुरावस्था को देखकर उदारता के लीलामय विग्रह श्रीमन् महाप्रभु जी का मन दया से भर आया और उन्होंने जीवों के आत्यंतिक मंगल के लिए अपने निजजन श्रील भक्ति विनोद ठाकुर जी को जगत में भेजा। ठाकुर श्रील भक्ति विनोद जी ने अपनी अलौकिक शक्ति से विभिन्न भाषाओं में सौ से भी अधिक ग्रंथ लिखकर शुद्ध भक्ति सिद्धांतों के विरुद्ध मतों का खंडन किया और ऐसा करते हुए उन्होने श्रीमन् महाप्रभु जी की शिक्षा का सर्वश्रेष्ठ तत्व स्थापित किया।

*श्रील भक्ति विनोद ठाकुर महाराज की जय!*

*हरे कृष्ण*

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Srila Prabhupada with devotees in Barsana 1971

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🌸 *पांडव निर्जला एकादशी - सेवा करने का एक दिव्य अवसर! 🌸*
शक्तिशाली पांडव भीम ने सभी एकादशियों का आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए इस पवित्र दिन को मनाया। आज, आप भी अथाह आध्यात्मिक योग्यता अर्जित कर सकते हैं - केवल दान देकर।
*🛕 इस्कॉन के पुस्तक वितरण, मंदिर और उपदेश सेवा का समर्थन करें।*
Upi id:- moib1208@oksbi
G-pay no:- 7600156255

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हरे कृष्ण ✨
दंडवत प्रणाम
*निर्जला एकादशी 24 hour जप* 👏
(सुबह 09 बजे से प्रारंभ)
*ऑफलाइन*: श्रील गुरु महाराज क्वार्टर

*ऑनलाइन: Zoom पर*👇

https://us06web.zoom.us/j/87828048546?pwd=jsnChckxhLVlBcqg3QOlkRyBk0abRn.1

*जो भी भक्त 64 माला या अधिक जप करेंगे उनके नाम श्री श्रीमद भक्ति प्रेम स्वामी महाराज को आशीर्वाद के लिए भेजे जाएंगे*

धन्यवाद 🙏

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कुन्तीनन्दन! ‘निर्जला एकादशी’ के दिन श्रद्धालु स्त्री पुरुषों के लिए जो विशेष दान और कर्त्तव्य विहित हैं, उन्हें सुनो: उस दिन जल में शयन करनेवाले भगवान विष्णु का पूजन और जलमयी धेनु का दान करनाचाहिए अथवा प्रत्यक्ष धेनु या घृतमयी धेनु का दान उचित है। पर्याप्त दक्षिणा और भाँति-भाँति के मिष्ठान्नों द्वारा यत्नपूर्वक ब्राह्मणों को सन्तुष्ट करना चाहिए। ऐसा करने से ब्राह्मण अवश्य संतुष्ट होते हैं और उनकेसंतुष्ट होने पर श्रीहरि मोक्ष प्रदान करते हैं। जिन्होंने शम, दम, और दान में प्रवृत हो श्रीहरि की पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस ‘निर्जला एकादशी’ का व्रत किया है, उन्होंने अपने साथ ही बीती हुई सौपीढ़ियों को और आनेवाली सौ पीढ़ियों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुँचा दिया है। निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शैय्या, सुन्दर आसन, कमण्डलु तथा छाता दान करने चाहिए। जो श्रेष्ठतथा सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है, वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है। जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता अथवा उसका वर्णन करता है, वह स्वर्गलोक में जाताहै। चतुर्दशीयुक्त अमावस्या को सूर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है, वही फल इसके श्रवण से भी प्राप्त होता है। पहले दन्तधावन करके यह नियम लेना चाहिए कि: ‘मैं भगवानकेशव की प्रसन्न्ता के लिए एकादशी को निराहार रहकर आचमन के सिवा दूसरे जल का भी त्याग करुँगा।’ द्वादशी को देवेश्वर भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिए। गन्ध, धूप, पुष्प और सुन्दर वस्त्र सेविधिपूर्वक पूजन करके जल के घड़े के दान का संकल्प करते हुए निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करे:

देवदेव ह्रषीकेश संसारार्णवतारक।
उदकुम्भप्रदानेन नय मां परमां गतिम्॥

‘संसारसागर से तारनेवाले हे देवदेव ह्रषीकेश! इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परम गति की प्राप्ति कराइये।’

भीमसेन! ज्येष्ठ मास में शुक्लपक्ष की जो शुभ एकादशी होती है, उसका निर्जल व्रत करना चाहिए। उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े दान करने चाहिए। ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णुके समीप पहुँचकर आनन्द का अनुभव करता है। तत्पश्चात् द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करे। जो इस प्रकार पूर्ण रुप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त होआनंदमय पद को प्राप्त होता है।

यह सुनकर भीमसेन ने भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया। तबसे यह लोक मे ‘पाण्डव द्वादशी’ के नाम से विख्यात हुई।

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