Hare Krishna! Excerpts from the teachings of Srila Prabhupada and other Gaudiya Vaishnav Acharyas.
हरे कृष्ण
*मंगलवार*, *कामदा एकादशी*
*पारणा:* *बुधवार* सुबह
6:25 से 10:34 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात
6:40-10:43 राजकोट, जामनगर, द्वारका
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युधिष्ठिर ने पूछा: वासुदेव! आपको नमस्कार है! कृपया आप यह बताइये कि चैत्र शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है?
भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन्! एकाग्रचित्त होकर यह पुरातन कथा सुनो, जिसे वशिष्ठजी ने राजा दिलीप के पूछने पर कहा था।
वशिष्ठजी बोले: राजन्! चैत्र शुक्लपक्ष में ‘कामदा’ नाम की एकादशी होती है। वह परम पुण्यमयी है। पापरुपी ईँधन के लिए तो वह दावानल ही है।
प्राचीन काल की बात है: नागपुर नाम का एक सुन्दर नगर था, जहाँ सोने के महल बने हुए थे। उस नगर में पुण्डरीक आदि महा भयंकर नाग निवास करते थे। पुण्डरीक नाम का नाग उन दिनों वहाँ राज्य करता था। गन्धर्व, किन्नर और अप्सराएँ भी उस नगरी का सेवन करती थीं। वहाँ एक श्रेष्ठ अप्सरा थी, जिसका नाम ललिता था। उसके साथ ललित नामवाला गन्धर्व भी था। वे दोनों पति पत्नी के रुप में रहते थे। दोनों ही परस्पर काम से पीड़ित रहा करते थे। ललिता के हृदय में सदा पति की ही मूर्ति बसी रहती थी और ललित के हृदय में सुन्दरी ललिता का नित्य निवास था।
एक दिन की बात है। नागराज पुण्डरीक राजसभा में बैठकर मनोरंजन कर रहा था। उस समय ललित का गान हो रहा था किन्तु उसके साथ उसकी प्यारी ललिता नहीं थी। गाते-गाते उसे ललिता का स्मरण हो आया। अत: उसके पैरों की गति रुक गयी और जीभ लड़खड़ाने लगी।
नागों में श्रेष्ठ कर्कोटक को ललित के मन का सन्ताप ज्ञात हो गया, अत: उसने राजा पुण्डरीक को उसके पैरों की गति रुकने और गान में त्रुटि होने की बात बता दी। कर्कोटक की बात सुनकर नागराज पुण्डरीक की आँखे क्रोध से लाल हो गयीं। उसने गाते हुए कामातुर ललित को शाप दिया: ‘दुर्बुद्धे! तू मेरे सामने गान करते समय भी पत्नी के वशीभूत हो गया, इसलिए राक्षस हो जा।’
महाराज पुण्डरीक के इतना कहते ही वह गन्धर्व राक्षस हो गया। भयंकर मुख, विकराल आँखें और देखनेमात्र से भय उपजानेवाला रुप - ऐसा राक्षस होकर वह कर्म का फल भोगने लगा।
ललिता अपने पति की विकराल आकृति देख मन ही मन बहुत चिन्तित हुई। भारी दु:ख से वह कष्ट पाने लगी। सोचने लगी: ‘क्या करुँ? कहाँ जाऊँ? मेरे पति पाप से कष्ट पा रहे हैं…’
वह रोती हुई घने जंगलों में पति के पीछे-पीछे घूमने लगी। वन में उसे एक सुन्दर आश्रम दिखायी दिया, जहाँ एक मुनि शान्त बैठे हुए थे। किसी भी प्राणी के साथ उनका वैर विरोध नहीं था। ललिता शीघ्रता के साथ वहाँ गयी और मुनि को प्रणाम करके उनके सामने खड़ी हुई। मुनि बड़े दयालु थे। उस दु:खिनी को देखकर वे इस प्रकार बोले: ‘शुभे! तुम कौन हो? कहाँ से यहाँ आयी हो? मेरे सामने सच-सच बताओ।’
ललिता ने कहा: महामुने! वीरधन्वा नामवाले एक गन्धर्व हैं। मैं उन्हीं महात्मा की पुत्री हूँ। मेरा नाम ललिता है। मेरे स्वामी अपने पाप दोष के कारण राक्षस हो गये हैं। उनकी यह अवस्था देखकर मुझे चैन नहीं है। ब्रह्मन्! इस समय मेरा जो कर्त्तव्य हो, वह बताइये। विप्रवर! जिस पुण्य के द्वारा मेरे पति राक्षसभाव से छुटकारा पा जायें, उसका उपदेश कीजिये।
ॠषि बोले: भद्रे! इस समय चैत्र मास के शुक्लपक्ष की ‘कामदा’ नामक एकादशी तिथि है, जो सब पापों को हरनेवाली और उत्तम है। तुम उसीका विधिपूर्वक व्रत करो और इस व्रत का जो पुण्य हो, उसे अपने स्वामी को दे डालो। पुण्य देने पर क्षणभर में ही उसके शाप का दोष दूर हो जायेगा।
राजन्! मुनि का यह वचन सुनकर ललिता को बड़ा हर्ष हुआ। उसने एकादशी को उपवास करके द्वादशी के दिन उन ब्रह्मर्षि के समीप ही भगवान वासुदेव के (श्रीविग्रह के) समक्ष अपने पति के उद्धार के लिए यह वचन कहा: ‘मैंने जो यह ‘कामदा एकादशी’ का उपवास व्रत किया है, उसके पुण्य के प्रभाव से मेरे पति का राक्षसभाव दूर हो जाय।’
वशिष्ठजी कहते हैं: ललिता के इतना कहते ही उसी क्षण ललित का पाप दूर हो गया। उसने दिव्य देह धारण कर लिया। राक्षसभाव चला गया और पुन: गन्धर्वत्व की प्राप्ति हुई।
नृपश्रेष्ठ! वे दोनों पति पत्नी ‘कामदा’ के प्रभाव से पहले की अपेक्षा भी अधिक सुन्दर रुप धारण करके विमान पर आरुढ़ होकर अत्यन्त शोभा पाने लगे। यह जानकर इस एकादशी के व्रत का यत्नपूर्वक पालन करना चाहिए।
मैंने लोगों के हित के लिए तुम्हारे सामने इस व्रत का वर्णन किया है। ‘कामदा एकादशी’ ब्रह्महत्या आदि पापों तथा पिशाचत्व आदि दोषों का नाश करनेवाली है। राजन्! इसके पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।
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That you have to decide where you want to go ~Srila Prabhupada
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The difference between material so-called love and Rādhā-Kṛṣṇa love ~Srila Prabhupada
*२० मार्च*
कृष्ण पर आश्रित रहिए, क्योंकि अंततः वह ही सभी परिस्थितियों के सर्वश्रेष्ठ स्वामी हैं। न कि डॉक्टर, या औषधि, या स्थान, अपितु यह कृष्ण ही हैं जो कि प्रत्येक वस्तु के स्वामी हैं।
*रायराम को पत्र, मार्च २०, १९६९*
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हरे कृष्ण
सोमवार, *आमलकी एकादशी*
*पारणा:* मंगलवार सुबह
6:52 से 8:16 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात
7:07 से 8:16 राजकोट, जामनगर, द्वारका
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युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा: श्रीकृष्ण! मुझे फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम और माहात्म्य बताने की कृपा कीजिये।
भगवान श्रीकृष्ण बोले: महाभाग धर्मनन्दन! फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का नाम ‘आमलकी’ है। इसका पवित्र व्रत विष्णुलोक की प्राप्ति करानेवाला है। राजा मान्धाता ने भी महात्मा वशिष्ठजी से इसी प्रकार का प्रश्न पूछा था, जिसके जवाब में वशिष्ठजी ने कहा था: ‘महाभाग! भगवान विष्णु के थूकने पर उनके मुख से चन्द्रमा के समान कान्तिमान एक बिन्दु प्रकट होकर पृथ्वी पर गिरा। उसीसे आमलक (आँवले) का महान वृक्ष उत्पन्न हुआ, जो सभी वृक्षों का आदिभूत कहलाता है। इसी समय प्रजा की सृष्टि करने के लिए भगवान ने ब्रह्माजी को उत्पन्न किया और ब्रह्माजी ने देवता, दानव, गन्धर्व, यक्ष, राक्षस, नाग तथा निर्मल अंतःकरण वाले महर्षियों को जन्म दिया। उनमें से देवता और ॠषि उस स्थान पर आये, जहाँ विष्णुप्रिय आमलक का वृक्ष था। महाभाग! उसे देखकर देवताओं को बड़ा विस्मय हुआ क्योंकि उस वृक्ष के बारे में वे नहीं जानते थे। उन्हें इस प्रकार विस्मित देख आकाशवाणी हुई: ‘महर्षियो! यह सर्वश्रेष्ठ आमलक का वृक्ष है, जो विष्णु को प्रिय है। इसके स्मरणमात्र से गोदान का फल मिलता है। स्पर्श करने से इससे दुगना और फल भक्षण करने से तिगुना पुण्य प्राप्त होता है। यह सब पापों को हरनेवाला वैष्णव वृक्ष है। इसके मूल में विष्णु, उसके ऊपर ब्रह्मा, स्कन्ध में परमेश्वर भगवान रुद्र, शाखाओं में मुनि, टहनियों में देवता, पत्तों में वसु, फूलों में मरुद्गण तथा फलों में समस्त प्रजापति वास करते हैं। आमलक सर्वदेवमय है। अत: विष्णुभक्त पुरुषों के लिए यह परम पूज्य है। इसलिए सदा प्रयत्नपूर्वक आमलक का सेवन करना चाहिए।’
ॠषि बोले: आप कौन हैं? देवता हैं या कोई और? हमें ठीक ठीक बताइये।
पुन: आकाशवाणी हुई: जो सम्पूर्ण भूतों के कर्त्ता और समस्त भुवनों के स्रष्टा हैं, जिन्हें विद्वान पुरुष भी कठिनता से देख पाते हैं, मैं वही सनातन विष्णु हूँ।
देवाधिदेव भगवान विष्णु का यह कथन सुनकर वे ॠषिगण भगवान की स्तुति करने लगे। इससे भगवान श्रीहरि संतुष्ट हुए और बोले: ‘महर्षियो! तुम्हें कौन सा अभीष्ट वरदान दूँ?
ॠषि बोले: भगवन्! यदि आप संतुष्ट हैं तो हम लोगों के हित के लिए कोई ऐसा व्रत बतलाइये, जो स्वर्ग और मोक्षरुपी फल प्रदान करनेवाला हो।
श्रीविष्णुजी बोले: महर्षियो! फाल्गुन मास के शुक्लपक्ष में यदि पुष्य नक्षत्र से युक्त एकादशी हो तो वह महान पुण्य देनेवाली और बड़े बड़े पातकों का नाश करनेवाली होती है। इस दिन आँवले के वृक्ष के पास जाकर वहाँ रात्रि में जागरण करना चाहिए। इससे मनुष्य सब पापों से छुट जाता है और सहस्र गोदान का फल प्राप्त करता है। विप्रगण! यह व्रत सभी व्रतों में उत्तम है, जिसे मैंने तुम लोगों को बताया है।
ॠषि बोले: भगवन्! इस व्रत की विधि बताइये। इसके देवता और मंत्र क्या हैं? पूजन कैसे करें? उस समय स्नान और दान कैसे किया जाता है?
भगवान श्रीविष्णुजी ने कहा: द्विजवरो! इस एकादशी को व्रती प्रात:काल दन्तधावन करके यह संकल्प करे कि ‘ हे पुण्डरीकाक्ष! हे अच्युत! मैं एकादशी को निराहार रहकर दुसरे दिन भोजन करुँगा। आप मुझे शरण में रखें।’ ऐसा नियम लेने के बाद पतित, चोर, पाखण्डी, दुराचारी, गुरुपत्नीगामी तथा मर्यादा भंग करनेवाले मनुष्यों से वह वार्तालाप न करे। अपने मन को वश में रखते हुए नदी में, पोखरे में, कुएँ पर अथवा घर में ही स्नान करे। स्नान के पहले शरीर में मिट्टी लगाये।
मृत्तिका लगाने का मंत्र
अश्वक्रान्ते रथक्रान्ते विष्णुक्रान्ते वसुन्धरे।
मृत्तिके हर मे पापं जन्मकोटयां समर्जितम् ॥
वसुन्धरे! तुम्हारे ऊपर अश्व और रथ चला करते हैं तथा वामन अवतार के समय भगवान विष्णु ने भी तुम्हें अपने पैरों से नापा था। मृत्तिके! मैंने करोड़ों जन्मों में जो पाप किये हैं, मेरे उन सब पापों को हर लो।’
स्नान का मंत्र
त्वं मात: सर्वभूतानां जीवनं तत्तु रक्षकम्।
स्वेदजोद्भिज्जजातीनां रसानां पतये नम:॥
स्नातोSहं सर्वतीर्थेषु ह्रदप्रस्रवणेषु च्।
नदीषु देवखातेषु इदं स्नानं तु मे भवेत्॥
‘जल की अधिष्ठात्री देवी! मातः! तुम सम्पूर्ण भूतों के लिए जीवन हो। वही जीवन, जो स्वेदज और उद्भिज्ज जाति के जीवों का भी रक्षक है। तुम रसों की स्वामिनी हो। तुम्हें नमस्कार है। आज मैं सम्पूर्ण तीर्थों, कुण्डों, झरनों, नदियों और देवसम्बन्धी सरोवरों में स्नान कर चुका। मेरा यह स्नान उक्त सभी स्नानों का फल देनेवाला हो।’
https://youtube.com/shorts/2J39uWicQ_8?si=7gLVBNffhoFRJCTZ
The rubbish thing which has gathered in your heart will be cleansed. ~Srila Prabhupada
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Tomorrow 8:00 am we are going to book tickets and there is a lot rush so it won't be possible after that I request to register as early as possible 🙏🏻
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हरे कृष्ण
सोमवार, *विजया एकादशी*
*पारणा:* मंगलवार सुबह
7:05 से 10:54 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात
7:11 से 11:04 राजकोट, जामनगर, द्वारका
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युधिष्ठिर ने पूछा: हे वासुदेव! फाल्गुन (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार माघ) के कृष्णपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है और उसका व्रत करने की विधि क्या है? कृपा करके बताइये।
भगवान श्रीकृष्ण बोले: युधिष्ठिर! एक बार नारदजी ने ब्रह्माजी से फाल्गुन के कृष्णपक्ष की ‘विजया एकादशी’ के व्रत से होनेवाले पुण्य के बारे में पूछा था तथा ब्रह्माजी ने इस व्रत के बारे में उन्हें जो कथा और विधि बतायी थी, उसे सुनो:
ब्रह्माजी ने कहा: नारद! यह व्रत बहुत ही प्राचीन, पवित्र और पाप नाशक है। यह एकादशी राजाओं को विजय प्रदान करती है, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
त्रेतायुग में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामचन्द्रजी जब लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र के किनारे पहुँचे, तब उन्हें समुद्र को पार करने का कोई उपाय नहीं सूझ रहा था। उन्होंने लक्ष्मणजी से पूछा: ‘सुमित्रानन्दन! किस उपाय से इस समुद्र को पार किया जा सकता है? यह अत्यन्त अगाध और भयंकर जल जन्तुओं से भरा हुआ है। मुझे ऐसा कोई उपाय नहीं दिखायी देता, जिससे इसको सुगमता से पार किया जा सके।‘
लक्ष्मणजी बोले: हे प्रभु! आप ही आदिदेव और पुराण पुरुष पुरुषोत्तम हैं। आपसे क्या छिपा है? यहाँ से आधे योजन की दूरी पर कुमारी द्वीप में बकदाल्भ्य नामक मुनि रहते हैं। आप उन प्राचीन मुनीश्वर के पास जाकर उन्हींसे इसका उपाय पूछिये।
श्रीरामचन्द्रजी महामुनि बकदाल्भ्य के आश्रम पहुँचे और उन्होंने मुनि को प्रणाम किया। महर्षि ने प्रसन्न होकर श्रीरामजी के आगमन का कारण पूछा।
श्रीरामचन्द्रजी बोले: ब्रह्मन्! मैं लंका पर चढ़ाई करने के उद्धेश्य से अपनी सेनासहित यहाँ आया हूँ। मुने! अब जिस प्रकार समुद्र पार किया जा सके, कृपा करके वह उपाय बताइये।
बकदाल्भय मुनि ने कहा: हे श्रीरामजी! फाल्गुन के कृष्णपक्ष में जो ‘विजया’ नाम की एकादशी होती है, उसका व्रत करने से आपकी विजय होगी। निश्चय ही आप अपनी वानर सेना के साथ समुद्र को पार कर लेंगे। राजन्! अब इस व्रत की फलदायक विधि सुनिये:
दशमी के दिन सोने, चाँदी, ताँबे अथवा मिट्टी का एक कलश स्थापित कर उस कलश को जल से भरकर उसमें पल्लव डाल दें। उसके ऊपर भगवान नारायण के सुवर्णमय विग्रह की स्थापना करें। फिर एकादशी के दिन प्रात: काल स्नान करें। कलश को पुन: स्थापित करें। माला, चन्दन, सुपारी तथा नारियल आदि के द्वारा विशेष रुप से उसका पूजन करें। कलश के ऊपर सप्तधान्य और जौ रखें। गन्ध, धूप, दीप और भाँति भाँति के नैवेघ से पूजन करें। कलश के सामने बैठकर उत्तम कथा वार्ता आदि के द्वारा सारा दिन व्यतीत करें और रात में भी वहाँ जागरण करें। अखण्ड व्रत की सिद्धि के लिए घी का दीपक जलायें। फिर द्वादशी के दिन सूर्योदय होने पर उस कलश को किसी जलाशय के समीप (नदी, झरने या पोखर के तट पर) स्थापित करें और उसकी विधिवत् पूजा करके देव प्रतिमासहित उस कलश को वेदवेत्ता ब्राह्मण के लिए दान कर दें। कलश के साथ ही और भी बड़े बड़े दान देने चाहिए। श्रीराम! आप अपने सेनापतियों के साथ इसी विधि से प्रयत्नपूर्वक ‘विजया एकादशी’ का व्रत कीजिये। इससे आपकी विजय होगी।
ब्रह्माजी कहते हैं: नारद! यह सुनकर श्रीरामचन्द्रजी ने मुनि के कथनानुसार उस समय ‘विजया एकादशी’ का व्रत किया। उस व्रत के करने से श्रीरामचन्द्रजी विजयी हुए। उन्होंने संग्राम में रावण को मारा, लंका पर विजय पायी और सीता को प्राप्त किया। बेटा! जो मनुष्य इस विधि से व्रत करते हैं, उन्हें इस लोक में विजय प्राप्त होती है और उनका परलोक भी अक्षय बना रहता है।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर! इस कारण ‘विजया’ का व्रत करना चाहिए। इस प्रसंग को पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।
धर्म क्या है 🙌👌
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Time nahi hai 🤔😁
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मंगलवार, *पापमोचनी एकादशी*
*पारणा:* बुधवार सुबह
6:42 से 10:22 राजकोट, जामनगर, द्वारका
बुधवार, *पापमोचनी एकादशी*
*पारणा:* गुरुवार सुबह
6:37 से 10:40 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात
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युधिष्ठिर महाराज ने भगवान श्रीकृष्ण से चैत्र (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार फाल्गुन) मास के कृष्णपक्ष की एकादशी के बारे में जानने की इच्छा प्रकट की तो वे बोले: ‘राजेन्द्र! मैं तुम्हें इस विषय में एक पापनाशक उपाख्यान सुनाऊँगा, जिसे चक्रवर्ती नरेश मान्धाता के पूछने पर महर्षि लोमश ने कहा था।’
मान्धाता ने पूछा: भगवन्! मैं लोगों के हित की इच्छा से यह सुनना चाहता हूँ कि चैत्र मास के कृष्णपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है, उसकी क्या विधि है तथा उससे किस फल की प्राप्ति होती है? कृपया ये सब बातें मुझे बताइये।
लोमशजी ने कहा: नृपश्रेष्ठ! पूर्वकाल की बात है। अप्सराओं से सेवित चैत्ररथ नामक वन में, जहाँ गन्धर्वों की कन्याएँ अपने किंकरो के साथ बाजे बजाती हुई विहार करती हैं, मंजुघोषा नामक अप्सरा मुनिवर मेघावी को मोहित करने के लिए गयी। वे महर्षि चैत्ररथ वन में रहकर ब्रह्मचर्य का पालन करते थे। मंजुघोषा मुनि के भय से आश्रम से एक कोस दूर ही ठहर गयी और सुन्दर ढंग से वीणा बजाती हुई मधुर गीत गाने लगी। मुनिश्रेष्ठ मेघावी घूमते हुए उधर जा निकले और उस सुन्दर अप्सरा को इस प्रकार गान करते देख बरबस ही मोह के वशीभूत हो गये। मुनि की ऐसी अवस्था देख मंजुघोषा उनके समीप आयी और वीणा नीचे रखकर उनका आलिंगन करने लगी। मेघावी भी उसके साथ रमण करने लगे। रात और दिन का भी उन्हें भान न रहा। इस प्रकार उन्हें बहुत दिन व्यतीत हो गये। मंजुघोषा देवलोक में जाने को तैयार हुई। जाते समय उसने मुनिश्रेष्ठ मेघावी से कहा: ‘ब्रह्मन्! अब मुझे अपने देश जाने की आज्ञा दीजिये।’
मेघावी बोले: देवी! जब तक सवेरे की संध्या न हो जाय तब तक मेरे ही पास ठहरो।
अप्सरा ने कहा: विप्रवर! अब तक न जाने कितनी ही संध्याँए चली गयीं! मुझ पर कृपा करके बीते हुए समय का विचार तो कीजिये!
लोमशजी ने कहा: राजन्! अप्सरा की बात सुनकर मेघावी चकित हो उठे। उस समय उन्होंने बीते हुए समय का हिसाब लगाया तो मालूम हुआ कि उसके साथ रहते हुए उन्हें सत्तावन वर्ष हो गये। उसे अपनी तपस्या का विनाश करनेवाली जानकर मुनि को उस पर बड़ा क्रोध आया। उन्होंने शाप देते हुए कहा: ‘पापिनी! तू पिशाची हो जा।’ मुनि के शाप से दग्ध होकर वह विनय से नतमस्तक हो बोली: ‘विप्रवर! मेरे शाप का उद्धार कीजिये। सात वाक्य बोलने या सात पद साथ साथ चलनेमात्र से ही सत्पुरुषों के साथ मैत्री हो जाती है। ब्रह्मन्! मैं तो आपके साथ अनेक वर्ष व्यतीत किये हैं, अत: स्वामिन्! मुझ पर कृपा कीजिये।’
मुनि बोले: भद्रे! क्या करुँ? तुमने मेरी बहुत बड़ी तपस्या नष्ट कर डाली है। फिर भी सुनो। चैत्र कृष्णपक्ष में जो एकादशी आती है उसका नाम है ‘पापमोचनी।’ वह शाप से उद्धार करनेवाली तथा सब पापों का क्षय करनेवाली है। सुन्दरी! उसीका व्रत करने पर तुम्हारी पिशाचता दूर होगी।
ऐसा कहकर मेघावी अपने पिता मुनिवर च्यवन के आश्रम पर गये। उन्हें आया देख च्यवन ने पूछा: ‘बेटा! यह क्या किया? तुमने तो अपने पुण्य का नाश कर डाला!’
मेघावी बोले: पिताजी! मैंने अप्सरा के साथ रमण करने का पातक किया है। अब आप ही कोई ऐसा प्रायश्चित बताइये, जिससे पातक का नाश हो जाय।
च्यवन ने कहा: बेटा! चैत्र कृष्णपक्ष में जो ‘पापमोचनी एकादशी’ आती है, उसका व्रत करने पर पापराशि का विनाश हो जायेगा।
पिता का यह कथन सुनकर मेघावी ने उस व्रत का अनुष्ठान किया। इससे उनका पाप नष्ट हो गया और वे पुन: तपस्या से परिपूर्ण हो गये। इसी प्रकार मंजुघोषा ने भी इस उत्तम व्रत का पालन किया। ‘पापमोचनी’ का व्रत करने के कारण वह पिशाचयोनि से मुक्त हुई और दिव्य रुपधारिणी श्रेष्ठ अप्सरा होकर स्वर्गलोक में चली गयी।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: राजन्! जो श्रेष्ठ मनुष्य ‘पापमोचनी एकादशी’ का व्रत करते हैं उनके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं। इसको पढ़ने और सुनने से सहस्र गौदान का फल मिलता है। ब्रह्महत्या, सुवर्ण की चोरी, सुरापान और गुरुपत्नीगमन करनेवाले महापातकी भी इस व्रत को करने से पापमुक्त हो जाते हैं। यह व्रत बहुत पुण्यमय है।
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Читать полностью…*वृंदावन धाम यात्रा 2025*
आइये इस छुट्टी को वृंदावन की पवित्र भूमि पर *राधा रमण देव का प्राकट्य* (जन्मदिन) मनाकर मनाएं।
सीमित सीटें.. जितनी जल्दी हो सके बुक करें!
यात्रा तिथियाँ: 11 मई से 15 मई (5 दिन 6 रातें)
मुख्य गंतव्य:
वृंदावन के 7 मुख्य मंदिर 🛕
नंदगांव 🌿
बरसाना 🌸
गोवर्धन परिक्रमा (पैदल) 🌄
रावल 🏞
गोकुल 🏞
रमन रेती 🌾
और भी कई जगहें 🌏
कीमतें 💰
• ए.सी. ट्रेन/ए.सी. रूम - 7499 रुपये 🚆🏨
• स्लीपर ट्रेन/ए.सी. रूम - 5999 रुपये 🚂🏨
• बिना ट्रेन/ए.सी. रूम - 4999 रुपये 🚶♂🏨
इस यात्रा में क्या शामिल है:
👉ए.सी. ट्रेन/स्लीपर ट्रेन टिकट 🎫
👉A.C रूम 🛏
👉A.C बस 🚌
👉नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना 🍽
👉कथा और कीर्तन 🎤🕊
यात्रा का नेतृत्व श्रीपाद उद्धव प्रभुजी और एच.जी. कुंजवासिनी माताजी करेंगे 🙏
पंजीकरण शुल्क - 2000 रुपये (गैर-वापसी योग्य) प्रति व्यक्ति 💸
पंजीकरण फॉर्म 📋 -https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSeJOSbiOY5Hw6uOezKBB9p0b5eZ5up9OXM3J1wzGoDz8xhxVA/viewform
आइये, इस पवित्र तीर्थयात्रा का हिस्सा बनें और भक्ति और दिव्य आशीर्वाद के एक आत्मा-उत्तेजक अनुभव पर चढ़ें! 🌼💖
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Yatra Includes
- 3rd AC Train
- AC Rooms
- AC Travel Bus
- Feast 3 Meal Prasadam
- Constant Kirtan And Katha
- Most Comfortable Devotional Yatra Ever
- First Time 3 temples in a day on Ekadashi
You can also have Jaipur and Vrindavan Separately or combined !!
https://youtube.com/shorts/doWZ4O8YgsU?si=hTh4SDWqccpWXkjg
Subtle body has carried him to another body ~Srila Prabhupada
Authorised Sampraday? Whom we can follow 🤔
https://www.instagram.com/reel/DGda1L7SVpL/?igsh=ZW5vd3NxN25oeGpm
https://youtu.be/ipLdtWlpaos?si=lZQ0hfHe8aMbjhTE
Читать полностью…" *जयपुर-वृंदावन ग्रीष्मकालीन वार्षिक यात्रा 2025* " 🌸🛕✨
*एकादशी के शुभ दिन* पर हम तीन प्रमुख मंदिरों के दर्शन करने जा रहे हैं और शास्त्रों में उल्लेख है कि यदि कोई ऐसा करता है तो उसे वैकुंठ की प्राप्ति होती है। साथ ही *राधा रमन (जन्मदिन)* के दिन हम वृंदावन के दर्शन करने जा रहे हैं🙏🌸
सीमित सीटें उपलब्ध हैं!!
*मुख्य आकर्षण*
जयपुर (15 से अधिक स्थान)
🌺 *राधा गोविंद देव मंदिर*
🌸 *राधा गोपीनाथ देव मंदिर*
🌺 *राधा मदन मोहन मंदिर( करौली)*
🌺 राधा विनोद मंदिर
🌺 जल महल
🌺 हवा महल
🌺 करौली
वगैरह।
वृंदावन (35 से अधिक स्थान)
🌸 वृंदावन के 7 प्रमुख मंदिर
🌺 नंदगांव-बरसाना
🌸 गोवर्धन परिक्रमा (पैदल/रिक्शा)
🌺 रावल (राधा रानी का जन्म स्थान)
🌸 गोकुल
🌺 रमन रेती
वगैरह।
और भी कई पवित्र स्थान इस अविस्मरणीय तीर्थयात्रा पर आपकी खोज का इंतजार कर रहे हैं। 🕉🙏
*यात्रा की तिथि*
7 मई – 15 मई 2025 📅
*कीमतें:*
🚆 जयपुर + वृंदावन (एसी): ₹12,499
🚆 जयपुर + वृंदावन (स्लीपर): ₹10,499
🚆 बिना ट्रेन (जयपुर + वृंदावन): ₹8,999
🎓 छात्र कोटा: ₹8,499
*पंजीकरण शुल्क*: ₹5000 प्रति व्यक्ति 💳
*यात्रा में क्या शामिल है:*
🚂 एसी ट्रेन/स्लीपर ट्रेन टिकट (ट्रेन नंबर - 12955 एमएमसीटी जयपुर सुपरफास्ट)
🏨 एसी रूम
🚍 एसी बस
🍽 नाश्ता, दोपहर का भोजन और रात का खाना
🎶 कथा और कीर्तन
यात्रा का नेतृत्व श्रीपाद उद्धव प्रभुजी और कुंजवासिनी माताजी करेंगे 🙏🌸
*पंजीकरण फॉर्म*: [यहाँ क्लिक करें](https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSeJOSbiOY5Hw6uOezKBB9p0b5eZ5up9OXM3J1wzGoDz8xhxVA/viewform?usp=sharing)
*किसी भी प्रश्न के लिए संपर्क करें*: 8200503703 📞
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*एकादशी के दिन हम राधा गोविंद देव जी मंदिर, राधा गोपीनाथ देव जी मंदिर और राधा मदन मोहन मंदिर का दर्शन करेंगे—तीन पवित्र मंदिर जो शास्त्रों के अनुसार भक्तों को वैकुंठ पहुंचाने का विश्वास रखते हैं* । इस शुभ दिन पर आध्यात्मिक सुख और दिव्य आशीर्वाद प्राप्त करने का यह दुर्लभ अवसर न चूकें! 🙏
_*मुख्य स्थलों की सूची:*_
- राधा गोविंद देव जी मंदिर
- राधा गोपीनाथ देव जी मंदिर
- राधा मदन मोहन मंदिर
- राधा विनोद मंदिर
- जल महल
- हवा महल
- करौली
- जंतर मंतर
- *तारकेश्वर महादेव*
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हम पवित्र मंदिरों, भव्य महलों और जयपुर की समृद्ध संस्कृति का अनुभव करेंगे🕊️
*_प्राइसिंग विकल्प:_*
- ए.सी. ट्रेन/ए.सी. रूम: ₹6999
- स्लीपर ट्रेन/ए.सी. रूम: ₹5499
- बिना ट्रेन/ए.सी. रूम: ₹4499
*इसमें क्या शामिल है:*
- ए.सी. ट्रेन/स्लीपर ट्रेन टिकट
- ए.सी. रूम आवास
- आरामदायक यात्रा के लिए ए.सी. बस
- स्वादिष्ट नाश्ता, लंच और डिनर
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