हरे कृष्ण
गुरुवार, सफला एकादशी
पारणा: शुक्रवार सुबह
7:19 से 10:51 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात
7:32 से 11:00 राजकोट, जामनगर, द्वारका
*Isckon Baroda Daily Darshan and Update Whatsapp Group*
*https://chat.whatsapp.com/K1pBwij2tzZD60F5JxlmWw*
युधिष्ठिर ने पूछा: स्वामिन्! पौष मास के कृष्णपक्ष (गुज., महा. के लिए मार्गशीर्ष) में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है? उसकी क्या विधि है तथा उसमें किस देवता की पूजा की जाती है? यह बताइये।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: राजेन्द्र! बड़ी बड़ी दक्षिणावाले यज्ञों से भी मुझे उतना संतोष नहीं होता, जितना एकादशी व्रत के अनुष्ठान से होता है। पौष मास के कृष्णपक्ष में ‘सफला’ नाम की एकादशी होती है। उस दिन विधिपूर्वक भगवान नारायण की पूजा करनी चाहिए। जैसे नागों में शेषनाग, पक्षियों में गरुड़ तथा देवताओं में श्रीविष्णु श्रेष्ठ हैं, उसी प्रकार सम्पूर्ण व्रतों में एकादशी तिथि श्रेष्ठ है।
राजन्! ‘सफला एकादशी’ को नाम मंत्रों का उच्चारण करके नारियल के फल, सुपारी, बिजौरा तथा जमीरा नींबू, अनार, सुन्दर आँवला, लौंग, बेर तथा विशेषत: आम के फलों और धूप दीप से श्रीहरि का पूजन करे। ‘सफला एकादशी’ को विशेष रुप से दीप दान करने का विधान है। रात को वैष्णव पुरुषों के साथ जागरण करना चाहिए। जागरण करनेवाले को जिस फल की प्राप्ति होती है, वह हजारों वर्ष तपस्या करने से भी नहीं मिलता।
नृपश्रेष्ठ! अब ‘सफला एकादशी’ की शुभकारिणी कथा सुनो। चम्पावती नाम से विख्यात एक पुरी है, जो कभी राजा माहिष्मत की राजधानी थी। राजर्षि माहिष्मत के पाँच पुत्र थे। उनमें जो ज्येष्ठ था, वह सदा पापकर्म में ही लगा रहता था। परस्त्रीगामी और वेश्यासक्त था। उसने पिता के धन को पापकर्म में ही खर्च किया। वह सदा दुराचारपरायण तथा वैष्णवों और देवताओं की निन्दा किया करता था। अपने पुत्र को ऐसा पापाचारी देखकर राजा माहिष्मत ने राजकुमारों में उसका नाम लुम्भक रख दिया। फिर पिता और भाईयों ने मिलकर उसे राज्य से बाहर निकाल दिया। लुम्भक गहन वन में चला गया। वहीं रहकर उसने प्राय: समूचे नगर का धन लूट लिया। एक दिन जब वह रात में चोरी करने के लिए नगर में आया तो सिपाहियों ने उसे पकड़ लिया। किन्तु जब उसने अपने को राजा माहिष्मत का पुत्र बतलाया तो सिपाहियों ने उसे छोड़ दिया। फिर वह वन में लौट आया और मांस तथा वृक्षों के फल खाकर जीवन निर्वाह करने लगा। उस दुष्ट का विश्राम स्थान पीपल वृक्ष बहुत वर्षों पुराना था। उस वन में वह वृक्ष एक महान देवता माना जाता था। पापबुद्धि लुम्भक वहीं निवास करता था।
एक दिन किसी संचित पुण्य के प्रभाव से उसके द्वारा एकादशी के व्रत का पालन हो गया। पौष मास में कृष्णपक्ष की दशमी के दिन पापिष्ठ लुम्भक ने वृक्षों के फल खाये और वस्त्रहीन होने के कारण रातभर जाड़े का कष्ट भोगा। उस समय न तो उसे नींद आयी और न आराम ही मिला। वह निष्प्राण सा हो रहा था। सूर्योदय होने पर भी उसको होश नहीं आया। ‘सफला एकादशी’ के दिन भी लुम्भक बेहोश पड़ा रहा। दोपहर होने पर उसे चेतना प्राप्त हुई। फिर इधर उधर दृष्टि डालकर वह आसन से उठा और लँगड़े की भाँति लड़खड़ाता हुआ वन के भीतर गया। वह भूख से दुर्बल और पीड़ित हो रहा था। राजन्! लुम्भक बहुत से फल लेकर जब तक विश्राम स्थल पर लौटा, तब तक सूर्यदेव अस्त हो गये। तब उसने उस पीपल वृक्ष की जड़ में बहुत से फल निवेदन करते हुए कहा: ‘इन फलों से लक्ष्मीपति भगवान विष्णु संतुष्ट हों।’ यों कहकर लुम्भक ने रातभर नींद नहीं ली। इस प्रकार अनायास ही उसने इस व्रत का पालन कर लिया। उस समय सहसा आकाशवाणी हुई: ‘राजकुमार! तुम ‘सफला एकादशी’ के प्रसाद से राज्य और पुत्र प्राप्त करोगे।’ ‘बहुत अच्छा’ कहकर उसने वह वरदान स्वीकार किया। इसके बाद उसका रुप दिव्य हो गया। तबसे उसकी उत्तम बुद्धि भगवान विष्णु के भजन में लग गयी। दिव्य आभूषणों से सुशोभित होकर उसने निष्कण्टक राज्य प्राप्त किया और पंद्रह वर्षों तक वह उसका संचालन करता रहा। उसको मनोज्ञ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ। जब वह बड़ा हुआ, तब लुम्भक ने तुरंत ही राज्य की ममता छोड़कर उसे पुत्र को सौंप दिया और वह स्वयं भगवान श्रीकृष्ण के समीप चला गया, जहाँ जाकर मनुष्य कभी शोक में नहीं पड़ता।
राजन्! इस प्रकार जो ‘सफला एकादशी’ का उत्तम व्रत करता है, वह इस लोक में सुख भोगकर मरने के पश्चात् मोक्ष को प्राप्त होता है। संसार में वे मनुष्य धन्य हैं, जो ‘सफला एकादशी’ के व्रत में लगे रहते हैं, उन्हीं का जन्म सफल है। महाराज! इसकी महिमा को पढ़ने, सुनने तथा उसके अनुसार आचरण करने से मनुष्य राजसूय यज्ञ का फल पाता है।
‼️Reminder for DYS session‼️
🙏Please join at 8pm
⚡️ज़ूम लिंक⚡️ https://us02web.zoom.us/j/82935571153?pwd=1pPyufop0tTWv7bGC13ARhuNMv4ev6.1
*🅘🅓: 829 3557 1153*
*🅟🅐🅢🅢🅦🅞🅡🅓: 108*
आपका दास
‼️Reminder for DYS session‼️
🙏Please join at 8pm
⚡️ज़ूम लिंक⚡️ https://us02web.zoom.us/j/82935571153?pwd=1pPyufop0tTWv7bGC13ARhuNMv4ev6.1
*🅘🅓: 829 3557 1153*
*🅟🅐🅢🅢🅦🅞🅡🅓: 108*
आपका दास
🌟 *ELECTION RESULTS ARE IN*! 🌟
Dear Devotees,
The votes have been counted, and the wait is over! 🎉 The winning topic is
✨ [ *The immense benefits of reading and listening to srila Prabhupada books and lectures* ] ✨
🙏 Join us *Today* at
🕛Time:- 1pm
⭕Live on zoom meeting.
⚡️ज़ूम लिंक⚡️ https://us02web.zoom.us/j/82935571153?pwd=1pPyufop0tTWv7bGC13ARhuNMv4ev6.1
*🅘🅓: 829 3557 1153*
*🅟🅐🅢🅢🅦🅞🅡🅓: 108*
Thank you for your overwhelming participation!
🗓️
Let’s come together to dive deeper into Krishna consciousness! 💖
Hare Krishna! 🌼
आपका दास
🌟हरे कृष्णा! 🌟
*साप्ताहिक विशेष कक्षा*
*भक्ति में स्थिरता कैसे लाएं?*
🤔*भक्ति में शांति और प्रगति का अनुभव कैसे करें?*
उद्धव प्रभु के साथ एक प्रेरणादायक लाइव सत्र में जुड़ें!
📅 तारीख: 15 दिसंबर 2024
⏰ समय: दोपहर 1:00 से 2:00 बजे तक
📍 Zoom पर लाइव
⚡️ज़ूम लिंक⚡️ https://us02web.zoom.us/j/82935571153?pwd=1pPyufop0tTWv7bGC13ARhuNMv4ev6.1
*🅘🅓: 829 3557 1153*
*🅟🅐🅢🅢🅦🅞🅡🅓: 108*
आध्यात्मिक जीवन में स्थिरता और प्रगति के रहस्यों को जानें।
इस विशेष अवसर को न चूकें
आपका दास
🌟 *इस गीता जयंती पर बनें परिवर्तन के सूत्रधार!* 🌟
*पवित्र गीता जयंती* के इस शुभ अवसर पर, हम भगवद गीता का प्रचार कर रहे हैं।
- *हम गीता आवाहन यज्ञ* का आयोजन कर रहे हैं और
- *स्कूलों में गीता वितरित कर रहे* हैं, ताकि युवा पीढ़ी को जीवन निर्माण के अनमोल मूल्यों से प्रेरित किया जा सके।
✨ *आपका छोटा सा दान लाखों जीवन बदल सकता है*!
हर सहयोग से यह दिव्य ज्ञान उन तक पहुंचता है, जिन्हें इसकी सबसे ज्यादा जरूरत है।
📖 *इस पवित्र कार्य में अपना योगदान दें। आज ही दान करें!*
आइए, मिलकर एक ऐसा समाज बनाएं जो ज्ञान, शांति और करुणा से समृद्ध हो।
G-pay:-+91 76001 56255
Upi-id:- moib1208@oksbi
🙏 *इस गीता जयंती को सार्थक बनाएं। अभी सहयोग करें!*🙏
🌟 *आइए हमारे साथ एक दिव्य और आनंदमयी डाकोर यात्रा पर!*🌟
8th दिसंबर 2024
🗓️ दिनचर्या:
🚐 सुबह 6:00 बजे - डाकोर के लिए प्रस्थान
🌅 सुबह 8:00 बजे - डाकोर पहुँचें और नाश्ता करें
🙏 मंदिर दर्शन:
- *डाकोर मंदिर*
- *लक्ष्मी मंदिर*
🏞️ *गोमती घाट भ्रमण*
🎶 विशेष कार्यक्रम:
नगर संकीर्तन और पुस्तक वितरण (गीता मैराथन)
🍴 दोपहर 1:00 बजे - *राज भोग प्रसाद*(डाकोर मंदिर से)
🕉️ दोपहर 2:00 बजे - कीर्तन और कथा (मंत्र ध्यान शिविर)
🚐 दोपहर 2:30 बजे - *गालतेश्वर महादेव* मंदिर के लिए प्रस्थान
🚩 शाम 4:00 बजे - *वेराखड़ी मंदिर* दर्शन
💦 *माहीसागर स्नान*
🏡 शाम 6:00 बजे - वडोदरा वापसी
✨ इस आध्यात्मिक और आनंदमयी यात्रा को मिस न करें!
📞 अपना स्थान आज ही आरक्षित करें: +91 79902 00618
आइए, भगवान की कृपा में डूबकर सुंदर यादें बनाएं! 🙏
📅 दिनांक: 8 दिसंबर 2024
💰 कीमत:
- सूरत/अहमदाबाद से डाकोर: ₹1000
- वडोदरा से डाकोर: ₹800
- छात्रों के लिए विशेष छूट: ₹600
दस नाम अपराधों को पद्म पुराण में इस प्रकार सूचीबद्ध किया गया है। चैतन्य- चरितमित्र (आदि लीला 8.24, तात्पर्य) में उद्धृत है।
प्रत्येक वैष्ण्व भक्त को चाहिए कि इन दस प्रकार के अपराधों से सदा बच कर रहे, ताकि श्रीकृष्ण के चरण कमलों में प्रेम शीघ्रातिशीघ्र प्राप्त हो, जो मनुष्य जीवन का परम लक्ष्य है।
(1)
सतां निन्दा नाम्नः परममपराधं वितनुते।यतः ख्यातिं यातं कथमु सहते तद्विगर्हाम्।।
*भगवान्नाम के प्रचार में सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने वाले महाभागवतों की निन्दा करना।*
(2)
शिवस्य श्रीविष्णोर्य इह गुणनामादिसकलं।धिया भिन्नं पश्येत्स खलु हरिनामाहितकरः।
*शिव, ब्रह्मा आदि देवों के नाम को भगवान्नाम के समान अथवा उससे स्वतन्त्र समझना।*
(3)
गुरोरवज्ञा ।
*गुरु की अवज्ञा करना अथवा उन्हें साधारण मनुषय समझना।*
(4)
श्रुतिशाñनिन्दनम्।
*वैदिक शास्त्रों अथवा प्रमाणों का खण्डन करना।*
(5)
हरिनाम्नि कल्पनम्।
*हरे कृष्ण महामन्त्र के जप की महिमा को काल्पनिक समझना।*
(6)
अर्थवादः।
*पवित्र भगवन्नाम में अर्थवाद का आरोप करना।*
(7)
नाम्नो बलाद्यस्य हि पापबुद्धिर् न विद्यते तस्य यमैर्हि शुद्धिः।
*नाम के बल पर पाप करना।*
(8)
धर्मव्रतत्यागहुतादिसर्व शुभक्रियासाम्यमपि प्रमादः।
*हरे कृष्ण महामन्त्र के जप को वेदों में वर्णित एक शुभ सकाम कर्म (कर्मकाण्ड) के समान समझना।*
(9)
अश्रद्दधाने विमुखेऽप्यशृण्वति यश्चोपदेशः शिवनामापराधः।
*अश्रद्धालु व्यक्त्ति को हरिनाम की महिमा का उपदेश करना।*
(10)
श्रुत्वापि नाममाहात्म्यं यः प्रीतिरहितोऽधमः अहंममादिपरमो नाम्नि सोऽप्यपराधकृत्अपि प्रमादः।।
*भगवन्नाम के जप में पूर्ण विश्वास न होना और इसकी इतनी अगाध महिमा श्रवण करने पर भी भौतिक आसक्ति बनाये रखना।*
*भगवन्नाम का जप करते समय पूर्ण रूप से सावधान न रहना भी अपराध है*
कन्या प्रकट हुई, जो बड़ी ही रुपवती, सौभाग्यशालिनी तथा दिव्य अस्त्र शस्त्रों से सुसज्जित थी। वह भगवान के तेज के अंश से उत्पन्न हुई थी। उसका बल और पराक्रम महान था। युधिष्ठिर! दानवराज मुर ने उस कन्या को देखा। कन्या ने युद्ध का विचार करके दानव के साथ युद्ध के लिए याचना की। युद्ध छिड़ गया। कन्या सब प्रकार की युद्धकला में निपुण थी। वह मुर नामक महान असुर उसके हुंकारमात्र से राख का ढेर हो गया। दानव के मारे जाने पर भगवान जाग उठे। उन्होंने दानव को धरती पर इस प्रकार निष्प्राण पड़ा देखकर कन्या से पूछा: ‘मेरा यह शत्रु अत्यन्त उग्र और भयंकर था। किसने इसका वध किया है ?’
कन्या बोली: स्वामिन्! आपके ही प्रसाद से मैंने इस महादैत्य का वध किया है।
श्रीभगवान ने कहा: कल्याणी! तुम्हारे इस कर्म से तीनों लोकों के मुनि और देवता आनन्दित हुए हैं। अत: तुम्हारे मन में जैसी इच्छा हो, उसके अनुसार मुझसे कोई वर माँग लो। देवदुर्लभ होने पर भी वह वर मैं तुम्हें दूँगा, इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
वह कन्या साक्षात् एकादशी ही थी।
उसने कहा: ‘प्रभो! यदि आप प्रसन्न हैं तो मैं आपकी कृपा से सब तीर्थों में प्रधान, समस्त विघ्नों का नाश करनेवाली तथा सब प्रकार की सिद्धि देनेवाली देवी होऊँ। जनार्दन! जो लोग आपमें भक्ति रखते हुए मेरे दिन को उपवास करेंगे, उन्हें सब प्रकार की सिद्धि प्राप्त हो। माधव! जो लोग उपवास, नक्त भोजन अथवा एकभुक्त करके मेरे व्रत का पालन करें, उन्हें आप धन, धर्म और मोक्ष प्रदान कीजिये।’
श्रीविष्णु बोले: कल्याणी! तुम जो कुछ कहती हो, वह सब पूर्ण होगा।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर! ऐसा वर पाकर महाव्रता एकादशी बहुत प्रसन्न हुई। दोनों पक्षों की एकादशी समान रुप से कल्याण करनेवाली है। इसमें शुक्ल और कृष्ण का भेद नहीं करना चाहिए। यदि उदयकाल में थोड़ी सी एकादशी, मध्य में पूरी द्वादशी और अन्त में किंचित् त्रयोदशी हो तो वह ‘त्रिस्पृशा एकादशी’ कहलाती है। वह भगवान को बहुत ही प्रिय है। यदि एक ‘त्रिस्पृशा एकादशी’ को उपवास कर लिया जाय तो एक हजार एकादशी व्रतों का फल प्राप्त होता है तथा इसी प्रकार द्वादशी में पारण करने पर हजार गुना फल माना गया है। अष्टमी, एकादशी, षष्ठी, तृतीय और चतुर्दशी - ये यदि पूर्वतिथि से विद्ध हों तो उनमें व्रत नहीं करना चाहिए। परवर्तिनी तिथि से युक्त होने पर ही इनमें उपवास का विधान है। पहले दिन में और रात में भी एकादशी हो तथा दूसरे दिन केवल प्रात: काल एकदण्ड एकादशी रहे तो पहली तिथि का परित्याग करके दूसरे दिन की द्वादशीयुक्त एकादशी को ही उपवास करना चाहिए। यह विधि मैंने दोनों पक्षों की एकादशी के लिए बतायी है।
जो मनुष्य एकादशी को उपवास करता है, वह वैकुण्ठधाम में जाता है, जहाँ साक्षात् भगवान गरुड़ध्वज विराजमान रहते हैं। जो मानव हर समय एकादशी के माहात्मय का पाठ करता है, उसे हजार गौदान के पुण्य का फल प्राप्त होता है। जो दिन या रात में भक्तिपूर्वक इस माहात्म्य का श्रवण करते हैं, वे नि:संदेह ब्रह्महत्या आदि पापों से मुक्त हो जाते हैं। एकादशी के समान पापनाशक व्रत दूसरा कोई नहीं है।
https://youtube.com/shorts/pSwHsFwRxBg?si=pIwIzTL2I8G-ZPgW
As a spiritual being... ~Srila Prabhupada
हरे कृष्ण
मंगलवार, उत्थान/प्रबोधिनी/हरिबोधिनी एकादशी
पारणा: बुधवार सुबह
6:52 से 10:31 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात
7:05 से 10:40 राजकोट, जामनगर, द्वारका
*Isckon Baroda daily Darshan and update Whatsapp group*
https://chat.whatsapp.com/K1pBwij2tzZD60F5JxlmWw
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा: हे अर्जुन! मैं तुम्हें मुक्ति देनेवाली कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के सम्बन्ध में नारद और ब्रह्माजी के बीच हुए वार्तालाप को सुनाता हूँ। एक बार नारादजी ने ब्रह्माजी से पूछा: ‘हे पिता! ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के व्रत का क्या फल होता है, आप कृपा करके मुझे यह सब विस्तारपूर्वक बतायें।’
ब्रह्माजी बोले: हे पुत्र! जिस वस्तु का त्रिलोक में मिलना दुष्कर है, वह वस्तु भी कार्तिक मास के शुक्लपक्ष की ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के व्रत से मिल जाती है। इस व्रत के प्रभाव से पूर्व जन्म के किये हुए अनेक बुरे कर्म क्षणभर में नष्ट हो जाते है। हे पुत्र! जो मनुष्य श्रद्धापूर्वक इस दिन थोड़ा भी पुण्य करते हैं, उनका वह पुण्य पर्वत के समान अटल हो जाता है। उनके पितृ विष्णुलोक में जाते हैं। ब्रह्महत्या आदि महान पाप भी ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन रात्रि को जागरण करने से नष्ट हो जाते हैं।
हे नारद! मनुष्य को भगवान की प्रसन्नता के लिए कार्तिक मास की इस एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए। जो मनुष्य इस एकादशी व्रत को करता है, वह धनवान, योगी, तपस्वी तथा इन्द्रियों को जीतनेवाला होता है, क्योंकि एकादशी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है।
इस एकादशी के दिन जो मनुष्य भगवान की प्राप्ति के लिए दान, तप, होम, यज्ञ (भगवान्नामजप भी परम यज्ञ है। ‘यज्ञानां जपयज्ञोऽस्मि’। यज्ञों में जपयज्ञ मेरा ही स्वरुप है।’ - श्रीमद्भगवदगीता) आदि करते हैं, उन्हें अक्षय पुण्य मिलता है।
इसलिए हे नारद! तुमको भी विधिपूर्वक विष्णु भगवान की पूजा करनी चाहिए। इस एकादशी के दिन मनुष्य को ब्रह्ममुहूर्त में उठकर व्रत का संकल्प लेना चाहिए और पूजा करनी चाहिए। रात्रि को भगवान के समीप गीत, नृत्य, कथा-कीर्तन करते हुए रात्रि व्यतीत करनी चाहिए।
‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन पुष्प, अगर, धूप आदि से भगवान की आराधना करनी चाहिए, भगवान को अर्ध्य देना चाहिए। इसका फल तीर्थ और दान आदि से करोड़ गुना अधिक होता है।
जो गुलाब के पुष्प से, बकुल और अशोक के फूलों से, सफेद और लाल कनेर के फूलों से, दूर्वादल से, शमीपत्र से, चम्पकपुष्प से भगवान विष्णु की पूजा करते हैं, वे आवागमन के चक्र से छूट जाते हैं। इस प्रकार रात्रि में भगवान की पूजा करके प्रात:काल स्नान के पश्चात् भगवान की प्रार्थना करते हुए गुरु की पूजा करनी चाहिए और सदाचारी व पवित्र ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर अपने व्रत को छोड़ना चाहिए।
जो मनुष्य चातुर्मास्य व्रत में किसी वस्तु को त्याग देते हैं, उन्हें इस दिन से पुनः ग्रहण करनी चाहिए। जो मनुष्य ‘प्रबोधिनी एकादशी’ के दिन विधिपूर्वक व्रत करते हैं, उन्हें अनन्त सुख मिलता है और अंत में स्वर्ग को जाते हैं।
https://youtube.com/shorts/9KE02oqeick?si=JBK8swBHa0aHq534
That is the Vṛndāvana Standard. ~Srila Prabhupada
हरे कृष्ण
सोमवार, *रमा एकादशी*
*पारणा:* मंगलवार सुबह
6:42 से 10:27 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात
6:57 से 10:34 राजकोट, जामनगर, द्वारका
*Isckon Baroda daily Darshan and update Whatsapp group*
https://chat.whatsapp.com/K1pBwij2tzZD60F5JxlmWw
युधिष्ठिर ने पूछा: जनार्दन! मुझ पर आपका स्नेह है, अत: कृपा करके बताइये कि कार्तिक के कृष्णपक्ष में कौन सी एकादशी होती है?
भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन्! कार्तिक (गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार आश्विन) के कृष्णपक्ष में ‘रमा’ नाम की विख्यात और परम कल्याणमयी एकादशी होती है। यह परम उत्तम है और बड़े-बड़े पापों को हरनेवाली है।
पूर्वकाल में मुचुकुन्द नाम से विख्यात एक राजा हो चुके हैं, जो भगवान श्रीविष्णु के भक्त और सत्यप्रतिज्ञ थे। अपने राज्य पर निष्कण्टक शासन करनेवाले उन राजा के यहाँ नदियों में श्रेष्ठ ‘चन्द्रभागा’ कन्या के रुप में उत्पन्न हुई। राजा ने चन्द्रसेनकुमार शोभन के साथ उसका विवाह कर दिया। एक बार शोभन दशमी के दिन अपने ससुर के घर आये और उसी दिन समूचे नगर में पूर्ववत् ढिंढ़ोरा पिटवाया गया कि: ‘एकादशी के दिन कोई भी भोजन न करे।’ इसे सुनकर शोभन ने अपनी प्यारी पत्नी चन्द्रभागा से कहा: ‘प्रिये! अब मुझे इस समय क्या करना चाहिए, इसकी शिक्षा दो।’
चन्द्रभागा बोली: प्रभो! मेरे पिता के घर पर एकादशी के दिन मनुष्य तो क्या कोई पालतू पशु आदि भी भोजन नहीं कर सकते। प्राणनाथ! यदि आप भोजन करेंगे तो आपकी बड़ी निन्दा होगी। इस प्रकार मन में विचार करके अपने चित्त को दृढ़ कीजिये।
शोभन ने कहा: प्रिये! तुम्हारा कहना सत्य है। मैं भी उपवास करुँगा। दैव का जैसा विधान है, वैसा ही होगा।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: इस प्रकार दृढ़ निश्चय करके शोभन ने व्रत के नियम का पालन किया किन्तु सूर्योदय होते होते उनका प्राणान्त हो गया। राजा मुचुकुन्द ने शोभन का राजोचित दाह संस्कार कराया। चन्द्रभागा भी पति का पारलौकिक कर्म करके पिता के ही घर पर रहने लगी।
नृपश्रेष्ठ! उधर शोभन इस व्रत के प्रभाव से मन्दराचल के शिखर पर बसे हुए परम रमणीय देवपुर को प्राप्त हुए। वहाँ शोभन द्वितीय कुबेर की भाँति शोभा पाने लगे। एक बार राजा मुचुकुन्द के नगरवासी विख्यात ब्राह्मण सोमशर्मा तीर्थयात्रा के प्रसंग से घूमते हुए मन्दराचल पर्वत पर गये, जहाँ उन्हें शोभन दिखायी दिये। राजा के दामाद को पहचानकर वे उनके समीप गये। शोभन भी उस समय द्विजश्रेष्ठ सोमशर्मा को आया हुआ देखकर शीघ्र ही आसन से उठ खड़े हुए और उन्हें प्रणाम किया। फिर क्रमश: अपने ससुर राजा मुचुकुन्द, प्रिय पत्नी चन्द्रभागा तथा समस्त नगर का कुशलक्षेम पूछा।
सोमशर्मा ने कहा: राजन्! वहाँ सब कुशल हैं। आश्चर्य है! ऐसा सुन्दर और विचित्र नगर तो कहीं किसीने भी नहीं देखा होगा। बताओ तो सही, आपको इस नगर की प्राप्ति कैसे हुई?
शोभन बोले: द्विजेन्द्र! कार्तिक के कृष्णपक्ष में जो ‘रमा’ नाम की एकादशी होती है, उसीका व्रत करने से मुझे ऐसे नगर की प्राप्ति हुई है। ब्रह्मन्! मैंने श्रद्धाहीन होकर इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान किया था, इसलिए मैं ऐसा मानता हूँ कि यह नगर स्थायी नहीं है। आप मुचुकुन्द की सुन्दरी कन्या चन्द्रभागा से यह सारा वृत्तान्त कहियेगा।
शोभन की बात सुनकर ब्राह्मण मुचुकुन्दपुर में गये और वहाँ चन्द्रभागा के सामने उन्होंने सारा वृत्तान्त कह सुनाया।
सोमशर्मा बोले: शुभे! मैंने तुम्हारे पति को प्रत्यक्ष देखा। इन्द्रपुरी के समान उनके दुर्द्धर्ष नगर का भी अवलोकन किया, किन्तु वह नगर अस्थिर है। तुम उसको स्थिर बनाओ।
चन्द्रभागा ने कहा: ब्रह्मर्षे! मेरे मन में पति के दर्शन की लालसा लगी हुई है। आप मुझे वहाँ ले चलिये। मैं अपने व्रत के पुण्य से उस नगर को स्थिर बनाऊँगी।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: राजन्! चन्द्रभागा की बात सुनकर सोमशर्मा उसे साथ ले मन्दराचल पर्वत के निकट वामदेव मुनि के आश्रम पर गये। वहाँ ॠषि के मंत्र की शक्ति तथा एकादशी सेवन के प्रभाव से चन्द्रभागा का शरीर दिव्य हो गया तथा उसने दिव्य गति प्राप्त कर ली। इसके बाद वह पति के समीप गयी। अपनी प्रिय पत्नी को आया हुआ देखकर शोभन को बड़ी प्रसन्नता हुई। उन्होंने उसे बुलाकर अपने वाम भाग में सिंहासन पर बैठाया। तदनन्तर चन्द्रभागा ने अपने प्रियतम से यह प्रिय वचन कहा: ‘नाथ! मैं हित की बात कहती हूँ, सुनिये। जब मैं आठ वर्ष से अधिक उम्र की हो गयी, तबसे लेकर आज तक मेरे द्वारा किये हुए एकादशी व्रत से जो पुण्य संचित हुआ है, उसके प्रभाव से यह नगर कल्प के अन्त तक स्थिर रहेगा तथा सब प्रकार के मनोवांछित वैभव से समृद्धिशाली रहेगा।’
https://us02web.zoom.us/j/82935571153?pwd=1pPyufop0tTWv7bGC13ARhuNMv4ev6.1
*Class Started*
https://us02web.zoom.us/j/82935571153?pwd=1pPyufop0tTWv7bGC13ARhuNMv4ev6.1
*Class Started*
🌟 *Hare Krishna* 🌟
🕉️ *Discover Yourself* 🕉️
Teacher Training Course
📖 With Uddhava Prabhu
🗓️ Date: 23rd - 29th Dec 2024
⏰ Time: 8 PM to 9 PM
📍 Live on Zoom Meeting
✨ Topics Covered:
- *Who is God?*
- *Who am I?*
- *Search for Happiness*🧐
- *One God or Many Gods*😱
- *Why Do Bad Things Happen to Good People?*🤔
- *Yoga for Life*
🌟 Embark on a journey of self-discovery through spiritual wisdom.
🔗 Join us and transform your life!
Hare Krishna 🙏
Please join for updates:-
https://docs.google.com/forms/d/e/1FAIpQLSf5kHygI919nhUwEik2hXPvHLjcnKTMMPFQtGqNj0A4opn8xw/viewform
⭕Please join
https://us02web.zoom.us/j/82935571153?pwd=1pPyufop0tTWv7bGC13ARhuNMv4ev6.1
https://youtube.com/shorts/LNIInOb9gM8?si=O4VE-jyCr43sjAba
To understand Bhagwad Gita... ~Srila Prabhupada
हरे कृष्ण
बुधवार, *मोक्षदा एकादशी*
*पारणा:* गुरुवार सुबह
7:11 से 10:43 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात
7:24 से 10:53 राजकोट, जामनगर, द्वारका
*Isckon Baroda daily Darshan and update Whatsapp Group*
https://chat.whatsapp.com/K1pBwij2tzZD60F5JxlmWw
युधिष्ठिर बोले: देवदेवेश्वर! मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष में कौन सी एकादशी होती है? उसकी क्या विधि है तथा उसमें किस देवता का पूजन किया जाता है? स्वामिन्! यह सब यथार्थ रुप से बताइये।
श्रीकृष्ण ने कहा: नृपश्रेष्ठ! मार्गशीर्ष मास के शुक्लपक्ष की एकादशी का वर्णन करुँगा, जिसके श्रवणमात्र से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है। उसका नाम ‘मोक्षदा एकादशी’ है जो सब पापों का अपहरण करनेवाली है। राजन्! उस दिन यत्नपूर्वक तुलसी की मंजरी तथा धूप दीपादि से भगवान दामोदर का पूजन करना चाहिए। पूर्वाक्त विधि से ही दशमी और एकादशी के नियम का पालन करना उचित है। मोक्षदा एकादशी बड़े-बड़े पातकों का नाश करनेवाली है। उस दिन रात्रि में मेरी प्रसन्न्ता के लिए नृत्य, गीत और स्तुति के द्वारा जागरण करना चाहिए। जिसके पितर पापवश नीच योनि में पड़े हों, वे इस एकादशी का व्रत करके इसका पुण्यदान अपने पितरों को करें तो पितर मोक्ष को प्राप्त होते हैं। इसमें तनिक भी संदेह नहीं है।
पूर्वकाल की बात है, वैष्णवों से विभूषित परम रमणीय चम्पक नगर में वैखानस नामक राजा रहते थे। वे अपनी प्रजा का पुत्र की भाँति पालन करते थे। इस प्रकार राज्य करते हुए राजा ने एक दिन रात को स्वप्न में अपने पितरों को नीच योनि में पड़ा हुआ देखा। उन सबको इस अवस्था में देखकर राजा के मन में बड़ा विस्मय हुआ और प्रात: काल ब्राह्मणों से उन्होंने उस स्वप्न का सारा हाल कह सुनाया।
राजा बोले: ब्रह्माणो! मैने अपने पितरों को नरक में गिरा हुआ देखा है। वे बारंबार रोते हुए मुझसे यों कह रहे थे कि: ‘तुम हमारे तनुज हो, इसलिए इस नरक समुद्र से हम लोगों का उद्धार करो। ’ द्विजवरो! इस रुप में मुझे पितरों के दर्शन हुए हैं इससे मुझे चैन नहीं मिलता। क्या करुँ? कहाँ जाऊँ? मेरा हृदय रुँधा जा रहा है। द्विजोत्तमो! वह व्रत, वह तप और वह योग, जिससे मेरे पूर्वज तत्काल नरक से छुटकारा पा जायें, बताने की कृपा करें। मुझ बलवान तथा साहसी पुत्र के जीते जी मेरे माता पिता घोर नरक में पड़े हुए हैं! अत: ऐसे पुत्र से क्या लाभ है?
ब्राह्मण बोले: राजन्! यहाँ से निकट ही पर्वत मुनि का महान आश्रम है। वे भूत और भविष्य के भी ज्ञाता हैं। नृपश्रेष्ठ! आप उन्हीं के पास चले जाइये।
ब्राह्मणों की बात सुनकर महाराज वैखानस शीघ्र ही पर्वत मुनि के आश्रम पर गये और वहाँ उन मुनिश्रेष्ठ को देखकर उन्होंने दण्डवत् प्रणाम करके मुनि के चरणों का स्पर्श किया। मुनि ने भी राजा से राज्य के सातों अंगों की कुशलता पूछी।
राजा बोले: स्वामिन्! आपकी कृपा से मेरे राज्य के सातों अंग सकुशल हैं किन्तु मैंने स्वप्न में देखा है कि मेरे पितर नरक में पड़े हैं। अत: बताइये कि किस पुण्य के प्रभाव से उनका वहाँ से छुटकारा होगा?
राजा की यह बात सुनकर मुनिश्रेष्ठ पर्वत एक मुहूर्त तक ध्यानस्थ रहे। इसके बाद वे राजा से बोले:
‘महाराज! मार्गशीर्ष के शुक्लपक्ष में जो ‘मोक्षदा’ नाम की एकादशी होती है, तुम सब लोग उसका व्रत करो और उसका पुण्य पितरों को दे डालो। उस पुण्य के प्रभाव से उनका नरक से उद्धार हो जायेगा।’
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर! मुनि की यह बात सुनकर राजा पुन: अपने घर लौट आये। जब उत्तम मार्गशीर्ष मास आया, तब राजा वैखानस ने मुनि के कथनानुसार ‘मोक्षदा एकादशी’ का व्रत करके उसका पुण्य समस्त पितरोंसहित पिता को दे दिया। पुण्य देते ही क्षणभर में आकाश से फूलों की वर्षा होने लगी। वैखानस के पिता पितरोंसहित नरक से छुटकारा पा गये और आकाश में आकर राजा के प्रति यह पवित्र वचन बोले: ‘बेटा! तुम्हारा कल्याण हो।’ यह कहकर वे स्वर्ग में चले गये।
राजन्! जो इस प्रकार कल्याणमयी ‘मोक्षदा एकादशी’ का व्रत करता है, उसके पाप नष्ट हो जाते हैं और मरने के बाद वह मोक्ष प्राप्त कर लेता है। यह मोक्ष देनेवाली ‘मोक्षदा एकादशी’ मनुष्यों के लिए चिन्तामणि के समान समस्त कामनाओं को पूर्ण करनेवाली है। इस माहात्मय के पढ़ने और सुनने से वाजपेय यज्ञ का फल मिलता है।
✨ डाकोर यात्रा 2024 (वर्ष की अंतिम यात्रा) निमंत्रण ✨
🌸 भक्ति + *राजा भोग* (डाकोर मंदिर)! 🌸
आइए इस रविवार को *वास्तव में विशेष बनाएं*!
🌺 डाकोर मंदिर जाएँ - भगवान कृष्ण के दर्शन की भव्यता का गवाह बनें और *दिव्य राजभोग प्रसाद का आनंद लें*, जो द्वारका के राजा के लिए उपयुक्त एक पवित्र प्रसाद है!
⛳🎊 *ध्वजारोहण उत्सव* - इस शुभ परंपरा का हिस्सा बनें जो हवा को भक्ति से भर देती है।
📍आस-पास के आकर्षण - जैसे आध्यात्मिक स्थलों का अन्वेषण करें
- *लक्ष्मी नारायण मंदिर*
- *गोमती कुंड*
डाकोर मंदिर के पास आदि।
🎶 *आत्मा को झकझोर देने वाला कीर्तन*- उत्थानकारी और मधुर मंत्रों के माध्यम से अपनी आत्मा को उन्नत करें।
📅 दिनांक: 8 दिसंबर 2024
💰 कीमत:
- सूरत/अहमदाबाद से डाकोर: ₹1000
- वडोदरा से डाकोर: ₹800
- छात्रों के लिए विशेष छूट: ₹600
📞 प्रश्नों के लिए, संपर्क करें: 7990200618
हरे कृष्ण!
https://youtube.com/shorts/g6D6lNqNve8?si=MYLcK2lQ9VLq7SUC
Children should be instructed from the very beginning of their life...
~Srila Prabhupada
हरे कृष्ण
मंगलवार, *उत्पन्न एकादशी*
पारणा: बुधवार सुबह
10:29 से 10:36 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात
10:29 से 10:44 राजकोट, जामनगर, द्वारका
*Isckon Baroda daily Darshan and update Whatsapp group*
*https://chat.whatsapp.com/IbS6UQKqLJw5Nbb8qpRkDH*
उत्पत्ति एकादशी का व्रत हेमन्त ॠतु में मार्गशीर्ष मास के कृष्णपक्ष ( गुजरात महाराष्ट्र के अनुसार कार्तिक ) को करना चाहिए। इसकी कथा इस प्रकार है:
युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से पूछा: भगवन्! पुण्यमयी एकादशी तिथि कैसे उत्पन्न हुई? इस संसार में वह क्यों पवित्र मानी गयी तथा देवताओं को कैसे प्रिय हुई?
श्रीभगवान बोले: कुन्तीनन्दन! प्राचीन समय की बात है। सत्ययुग में मुर नामक दानव रहता था। वह बड़ा ही अदभुत, अत्यन्त रौद्र तथा सम्पूर्ण देवताओं के लिए भयंकर था। उस कालरुपधारी दुरात्मा महासुर ने इन्द्र को भी जीत लिया था। सम्पूर्ण देवता उससे परास्त होकर स्वर्ग से निकाले जा चुके थे और शंकित तथा भयभीत होकर पृथ्वी पर विचरा करते थे। एक दिन सब देवता महादेवजी के पास गये। वहाँ इन्द्र ने भगवान शिव के आगे सारा हाल कह सुनाया।
इन्द्र बोले: महेश्वर! ये देवता स्वर्गलोक से निकाले जाने के बाद पृथ्वी पर विचर रहे हैं। मनुष्यों के बीच रहना इन्हें शोभा नहीं देता। देव! कोई उपाय बतलाइये। देवता किसका सहारा लें ?
महादेवजी ने कहा: देवराज! जहाँ सबको शरण देनेवाले, सबकी रक्षा में तत्पर रहने वाले जगत के स्वामी भगवान गरुड़ध्वज विराजमान हैं, वहाँ जाओ। वे तुम लोगों की रक्षा करेंगे।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं: युधिष्ठिर! महादेवजी की यह बात सुनकर परम बुद्धिमान देवराज इन्द्र सम्पूर्ण देवताओं के साथ क्षीरसागर में गये जहाँ भगवान गदाधर सो रहे थे। इन्द्र ने हाथ जोड़कर उनकी स्तुति की।
इन्द्र बोले: देवदेवेश्वर! आपको नमस्कार है! देव! आप ही पति, आप ही मति, आप ही कर्त्ता और आप ही कारण हैं। आप ही सब लोगों की माता और आप ही इस जगत के पिता हैं। देवता और दानव दोनों ही आपकी वन्दना करते हैं। पुण्डरीकाक्ष! आप दैत्यों के शत्रु हैं। मधुसूदन! हम लोगों की रक्षा कीजिये। प्रभो! जगन्नाथ! अत्यन्त उग्र स्वभाववाले महाबली मुर नामक दैत्य ने इन सम्पूर्ण देवताओं को जीतकर स्वर्ग से बाहर निकाल दिया है। भगवन्! देवदेवेश्वर! शरणागतवत्सल! देवता भयभीत होकर आपकी शरण में आये हैं। दानवों का विनाश करनेवाले कमलनयन! भक्तवत्सल! देवदेवेश्वर! जनार्दन! हमारी रक्षा कीजिये… रक्षा कीजिये। भगवन्! शरण में आये हुए देवताओं की सहायता कीजिये।
इन्द्र की बात सुनकर भगवान विष्णु बोले: देवराज! यह दानव कैसा है ? उसका रुप और बल कैसा है तथा उस दुष्ट के रहने का स्थान कहाँ है ?
इन्द्र बोले: देवेश्वर! पूर्वकाल में ब्रह्माजी के वंश में तालजंघ नामक एक महान असुर उत्पन्न हुआ था, जो अत्यन्त भयंकर था। उसका पुत्र मुर दानव के नाम से विख्यात है। वह भी अत्यन्त उत्कट, महापराक्रमी और देवताओं के लिए भयंकर है। चन्द्रावती नाम से प्रसिद्ध एक नगरी है, उसीमें स्थान बनाकर वह निवास करता है। उस दैत्य ने समस्त देवताओं को परास्त करके उन्हें स्वर्गलोक से बाहर कर दिया है। उसने एक दूसरे ही इन्द्र को स्वर्ग के सिंहासन पर बैठाया है। अग्नि, चन्द्रमा, सूर्य, वायु तथा वरुण भी उसने दूसरे ही बनाये हैं। जनार्दन! मैं सच्ची बात बता रहा हूँ। उसने सब कोई दूसरे ही कर लिये हैं। देवताओं को तो उसने उनके प्रत्येक स्थान से वंचित कर दिया है।
इन्द्र की यह बात सुनकर भगवान जनार्दन को बड़ा क्रोध आया। उन्होंने देवताओं को साथ लेकर चन्द्रावती नगरी में प्रवेश किया। भगवान गदाधर ने देखा कि “दैत्यराज बारंबार गर्जना कर रहा है और उससे परास्त होकर सम्पूर्ण देवता दसों दिशाओं में भाग रहे हैं।’ अब वह दानव भगवान विष्णु को देखकर बोला: ‘खड़ा रह … खड़ा रह।’ उसकी यह ललकार सुनकर भगवान के नेत्र क्रोध से लाल हो गये। वे बोले: ‘ अरे दुराचारी दानव! मेरी इन भुजाओं को देख।’ यह कहकर श्रीविष्णु ने अपने दिव्य बाणों से सामने आये हुए दुष्ट दानवों को मारना आरम्भ किया। दानव भय से विह्लल हो उठे। पाण्ड्डनन्दन! तत्पश्चात् श्रीविष्णु ने दैत्य सेना पर चक्र का प्रहार किया। उससे छिन्न भिन्न होकर सैकड़ो योद्धा मौत के मुख में चले गये।
इसके बाद भगवान मधुसूदन बदरिकाश्रम को चले गये। वहाँ सिंहावती नाम की गुफा थी, जो बारह योजन लम्बी थी। पाण्ड्डनन्दन! उस गुफा में एक ही दरवाजा था। भगवान विष्णु उसीमें सो गये। वह दानव मुर भगवान को मार डालने के उद्योग में उनके पीछे पीछे तो लगा ही था। अत: उसने भी उसी गुफा में प्रवेश किया। वहाँ भगवान को सोते देख उसे बड़ा हर्ष हुआ। उसने सोचा: ‘यह दानवों को भय देनेवाला देवता है। अत: नि:सन्देह इसे मार डालूँगा।’ युधिष्ठिर! दानव के इस प्रकार विचार करते ही भगवान विष्णु के शरीर से एक
━❀꧁𝐻𝑎𝑟𝑒 𝐾𝑟𝑖𝑠𝑛𝑎꧂❀━
*Reminder*
➡ *All ABOUT LORD'S ENERGY*
👨💻👩💻 1ST Session
🗒 Date :- *19 NOVEMBER*
⏰ Time :- 6:00 pm
Note:- कृपया समय पर शामिल हों.
लिंक :-
YOUTUBE LIVE
gaurangasgroup?si=dg57sVU_dAF5Nnkv" rel="nofollow">https://youtube.com/@gaurangasgroup?si=dg57sVU_dAF5Nnkv
━❀꧁𝐻𝑎𝑟𝑒 𝐾𝑟𝑖𝑠𝑛𝑎꧂❀━
Glimpses of 84 Kos kartika Vrindavan Yatra 🤩
https://www.instagram.com/reel/DCLvUSQKqkZ/?igsh=eGliNm00MGw0bjRu
Glimpses of 84 Kos kartika Vrindavan Yatra 🤩
Hare Krishna dear devotees 🙏 by blessings of all yours we had completed our first 84 Kos Kartika Vrindavan yatra 🤩 thank you for your support.
Your Servant
Gaurangas Group
नृपश्रेष्ठ! इस प्रकार ‘रमा’ व्रत के प्रभाव से चन्द्रभागा दिव्य भोग, दिव्य रुप और दिव्य आभरणों से विभूषित हो अपने पति के साथ मन्दराचल के शिखर पर विहार करती है। राजन्! मैंने तुम्हारे समक्ष ‘रमा’ नामक एकादशी का वर्णन किया है। यह चिन्तामणि तथा कामधेनु के समान सब मनोरथों को पूर्ण करनेवाली है।
Читать полностью…https://youtube.com/shorts/4gFIRaK2Lq0?si=UP9qVh3gqOYitCUq
Cooking you cannot stop. ~Srila Prabhupada
हरे कृष्ण
सोमवार, *पाशांकुश/पापांकुश एकादशी*
*पारणा:* मंगलवार सुबह
6:37 से 10:27 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात
6:51 से 10:36 राजकोट, जामनगर, द्वारका
*Whatsapp*
हरे कृष्ण
सोमवार, *पाशांकुश/पापांकुश एकादशी*
*पारणा:* मंगलवार सुबह
6:37 से 10:27 वदोड़रा, सूरत, अमदावाद, खंभात
6:51 से 10:36 राजकोट, जामनगर
*Whatsapp*
https://chat.whatsapp.com/K1pBwij2tzZD60F5JxlmWw
युधिष्ठिर ने पूछा: हे मधुसूदन! अब आप कृपा करके यह बताइये कि आश्विन के शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है और उसका माहात्म्य क्या है?
भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन्! आश्विन के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, वह ‘पापांकुशा’ के नाम से विख्यात है। वह सब पापों को हरनेवाली, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करनेवाली, शरीर को निरोग बनानेवाली तथा सुन्दर स्त्री, धन तथा मित्र देनेवाली है। यदि अन्य कार्य के प्रसंग से भी मनुष्य इस एकमात्र एकादशी को उपास कर ले तो उसे कभी यम यातना नहीं प्राप्त होती।
राजन्! एकादशी के दिन उपवास और रात्रि में जागरण करनेवाले मनुष्य अनायास ही दिव्यरुपधारी, चतुर्भुज, गरुड़ की ध्वजा से युक्त, हार से सुशोभित और पीताम्बरधारी होकर भगवान विष्णु के धाम को जाते हैं। राजेन्द्र! ऐसे पुरुष मातृपक्ष की दस, पितृपक्ष की दस तथा पत्नी के पक्ष की भी दस पीढ़ियों का उद्धार कर देते हैं। उस दिन सम्पूर्ण मनोरथ की प्राप्ति के लिए मुझ वासुदेव का पूजन करना चाहिए। जितेन्द्रिय मुनि चिरकाल तक कठोर तपस्या करके जिस फल को प्राप्त करता है, वह फल उस दिन भगवान गरुड़ध्वज को प्रणाम करने से ही मिल जाता है।
जो पुरुष सुवर्ण, तिल, भूमि, गौ, अन्न, जल, जूते और छाते का दान करता है, वह कभी यमराज को नहीं देखता। नृपश्रेष्ठ! दरिद्र पुरुष को भी चाहिए कि वह स्नान, जप ध्यान आदि करने के बाद यथाशक्ति होम, यज्ञ तथा दान वगैरह करके अपने प्रत्येक दिन को सफल बनाये।
जो होम, स्नान, जप, ध्यान और यज्ञ आदि पुण्यकर्म करनेवाले हैं, उन्हें भयंकर यम यातना नहीं देखनी पड़ती। लोक में जो मानव दीर्घायु, धनाढय, कुलीन और निरोग देखे जाते हैं, वे पहले के पुण्यात्मा हैं। पुण्यकर्त्ता पुरुष ऐसे ही देखे जाते हैं। इस विषय में अधिक कहने से क्या लाभ, मनुष्य पाप से दुर्गति में पड़ते हैं और धर्म से स्वर्ग में जाते हैं।
राजन्! तुमने मुझसे जो कुछ पूछा था, उसके अनुसार ‘पापांकुशा एकादशी’ का माहात्म्य मैंने वर्णन किया। अब और क्या सुनना चाहते हो?
युधिष्ठिर ने पूछा: हे मधुसूदन! अब आप कृपा करके यह बताइये कि आश्विन के शुक्लपक्ष में किस नाम की एकादशी होती है और उसका माहात्म्य क्या है?
भगवान श्रीकृष्ण बोले: राजन्! आश्विन के शुक्लपक्ष में जो एकादशी होती है, वह ‘पापांकुशा’ के नाम से विख्यात है। वह सब पापों को हरनेवाली, स्वर्ग और मोक्ष प्रदान करनेवाली, शरीर को निरोग बनानेवाली तथा सुन्दर स्त्री, धन तथा मित्र देनेवाली है। यदि अन्य कार्य के प्रसंग से भी मनुष्य इस एकमात्र एकादशी को उपास कर ले तो उसे कभी यम यातना नहीं प्राप्त होती।
राजन्! एकादशी के दिन उपवास और रात्रि में जागरण करनेवाले मनुष्य अनायास ही दिव्यरुपधारी, चतुर्भुज, गरुड़ की ध्वजा से युक्त, हार से सुशोभित और पीताम्बरधारी होकर भगवान विष्णु के धाम को जाते हैं। राजेन्द्र! ऐसे पुरुष मातृपक्ष की दस, पितृपक्ष की दस तथा पत्नी के पक्ष की भी दस पीढ़ियों का उद्धार कर देते हैं। उस दिन सम्पूर्ण मनोरथ की प्राप्ति के लिए मुझ वासुदेव का पूजन करना चाहिए। जितेन्द्रिय मुनि चिरकाल तक कठोर तपस्या करके जिस फल को प्राप्त करता है, वह फल उस दिन भगवान गरुड़ध्वज को प्रणाम करने से ही मिल जाता है।
जो पुरुष सुवर्ण, तिल, भूमि, गौ, अन्न, जल, जूते और छाते का दान करता है, वह कभी यमराज को नहीं देखता। नृपश्रेष्ठ! दरिद्र पुरुष को भी चाहिए कि वह स्नान, जप ध्यान आदि करने के बाद यथाशक्ति होम, यज्ञ तथा दान वगैरह करके अपने प्रत्येक दिन को सफल बनाये।
जो होम, स्नान, जप, ध्यान और यज्ञ आदि पुण्यकर्म करनेवाले हैं, उन्हें भयंकर यम यातना नहीं देखनी पड़ती। लोक में जो मानव दीर्घायु, धनाढय, कुलीन और निरोग देखे जाते हैं, वे पहले के पुण्यात्मा हैं। पुण्यकर्त्ता पुरुष ऐसे ही देखे जाते हैं। इस विषय में अधिक कहने से क्या लाभ, मनुष्य पाप से दुर्गति में पड़ते हैं और धर्म से स्वर्ग में जाते हैं।
राजन्! तुमने मुझसे जो कुछ पूछा था, उसके अनुसार ‘पापांकुशा एकादशी’ का माहात्म्य मैंने वर्णन किया। अब और क्या सुनना चाहते हो?