राम ! राम !! राम !!! राम !!!!
*अपना वही है, जो कल्याण में लगा दे ।* बचपन में जैसे संस्कार पड़ते हैं, वैसे बड़ी उम्र में नहीं पड़ते । इसलिए बालकों को बचपन से ही सत्संग में, भगवद् भजन में लगाना चाहिए ।
*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ४८*
*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
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।। श्रीहरि ।।
चुप होना, मूक सत्संग, सहज समाधि, सहजावस्था, अप्रयत्न, जाग्रत्-सुषुप्ति, समता, विश्राम, अकेला होना-ये सब एक ही हैं ।
सहज समाधि भली ( चुप-साधन ) पुस्तक से, पृष्ठ-संख्या- ४६, गीता प्रकाशन, गोरखपुर
परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
राम ! राम !! राम !!! राम !!!!
*किसी को बुरा न समझने से भलाई भीतर से प्रकट होती है ।* ऊपर से भरी हुई भलाई अनित्य होती है । भीतर से प्रकट हुई भलाई नित्य होती है।
*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ४८*
*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
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*ॐ श्री परमात्मने नमः*
*लोगोंको यह दीखता है कि हम सच्चे हृदयसे परमात्माकी प्राप्ति चाहते हैं, पर परमात्मप्राप्तिकी बात बतानेवाला कोई है नहीं । परन्तु मैं कहता हूँ कि आज परमात्मा और उनकी प्राप्तिकी बात बतानेवाला‒दोनों निकम्मे बैठे हैं ! कोई पूछनेवाला नहीं है ! कोई सच्चे हृदयसे चाहनेवाला नहीं है !*
*जैसे भूखा अन्न चाहता हो, प्यासा जल चाहता हो, ऐसा तो मैं नहीं कह सकता, पर मेरी चाहना जरूर है कि इस बातको आप मान लें कि सब कुछ भगवान्का है । अगर आप भगवान्की प्राप्ति चाहते हो तो सबसे पहले यह बात धारण करनी चाहिये कि मेरी चीज कोई नहीं है । ‘मैं’ भी मेरा नहीं है, प्रत्युत भगवान्का है ! यह पहली बात है । इसीसे श्रीगणेश होना चाहिये ।*
*मैं चेला-चेली नहीं बनाता हूँ, भेंट नहीं लेता हूँ, केवल यह चाहता हूँ कि आप अपना कल्याण कर लें । पूरी बात इतनी ही है कि मैं भगवान्का हूँ, भगवान् मेरे हैं, अन्य कोई मेरा नहीं है । इस बातको अभी-अभी स्वीकार कर लो ।*
*मैं गुरु बनता नहीं हूँ, पर जो बात गुरु बताता है, वही तो मैं बताता हूँ ! वह बात बताता हूँ, जो गुरु भी न बताये ! अगर आप सच्चे हृदयसे भगवान्में लग जाओ तो भले ही मुझे गुरु मान लो ! न आपको कोई बाधा है, न मुझे ! गुरु जो बात बतायेगा, उससे कम नहीं बताऊँगा ! गुरुका अभाव मत मानो । सच्चे हृदयसे भगवान्में लग जाओ, फिर सब ठीक हो जायगा । मैं चेला बनाता नहीं, पर काम गुरुका ही करता हूँ ! आप भगवान्में लग जाओ तो मैं अपनेपर आपकी बड़ी कृपा मानूँगा ! गुरु हाथ नहीं जोड़ता, पर मैं हाथ जोड़कर कहता हूँ कि आप सच्चे हृदयसे भगवान्में लग जाओ ।*
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*श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज*
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*ॐ श्री परमात्मने नमः*
*आपको पता नहीं है, रुपया नहीं होनेमें जो सुख है, वह सुख रुपयोंमें नहीं है ! आपको दीखता है कि हम समझते हैं, स्वामीजी नहीं समझते, पर मैं आपसे दुगुना समझता हूँ ! आपने रुपयोंको रखकर ही देखा है, त्यागकर नहीं देखा, पर मैंने दोनों देखे हैं ! बड़ी मौज रहती है, आनन्द रहता है ! दुःखमें, तिरस्कारमें, अपमानमें भी आनन्द होता है ! बुखारमें भी आनन्द आता है !*
*आप अपना कल्याण कर लो तो बड़े आनन्दकी बात है, बड़ी खुशीकी बात है ! मेरेसे बिना पूछे, आप अपना कल्याण कर लो तो हम दूर बैठे राजी हो जायँगे ! हमारे मनमें प्रसन्नता हो जायगी !*
*अगर मैं वीडियो-चित्र लेने दूँ तो भगवान्के चित्र रुक जायँगे और मेरे वचनोंका वैसा प्रभाव भी नहीं रहेगा । मेरे पास वीडियो देखनेवाले ज्यादा आयेंगे, श्रद्धा-विश्वासवाले बहुत कम आयेंगे । एक तमाशा हो जायगा । मैं अपने वीडियोकी इजाजत दूँगा, तो फिर गन्दे वीडियोको देखनेके लिये मना कैसे करूँगा कि उसको मत देखो ? सिनेमासे काम, क्रोध और लोभ‒तीनों दोषोंका प्रचार होता है ।*
*मैं गुरु बने बिना वही बात कहता हूँ, जो गुरु कहता है । आप भगवान् श्रीकृष्णको गुरु मानो और गीताको उनका मन्त्र मानो‒यह भी मैं ही कहता हूँ ।*
*परमात्मप्राप्तिके मार्गकी कौन-सी ऐसी बाधा है, जिसका समाधान गीतामें नहीं हुआ ? कल्याणकी ऐसी कौन-सी बात है, जो गुरुसे मिलती है, गीतासे नहीं मिलती ? गीता एक अलौकिक ग्रन्थ है । गीता-जैसा ग्रन्थ मैंने देखा नहीं है । मैंने गीताको ही गुरु बनाया है !*
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*श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज*
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*ॐ श्री परमात्मने नमः*
*कल्याण सुगमतासे, शीघ्र और हरेकका हो जाय‒इसका मैं पक्षपाती हूँ, साधन चाहे कोई भी हो !*
*मेरी बातें आपको अच्छी लगती हैं, पर आपकी कल्याणकी चाहना न हो तो क्या लाभ ? भोजन बढ़िया मिले, पर भूख न हो तो क्या लाभ ?*
*मेरा विषय लौकिक नहीं है । एक व्याख्यान होता है, एक सत्संग होता है । मेरा विषय सत्संगका है, व्याख्यानका नहीं । सत्संगके विषयमें वे बातें हैं, जिनसे जीवका कल्याण हो जाय । इनके साथ-साथ मैं वे बातें भी कहता हूँ, जो कल्याणमें सहायक हैं ।*
*आप कलियुगके अनुयायी बन गये, कलियुगके विचारोंसे सहमत हो गये, तो मैं क्या कर सकता हूँ ? इतनी बात है कि मुझे प्रसन्नता नहीं होगी । कोई मेरी बात न माने तो उसका नुकसान हो जाय‒ऐसा मैं नहीं चाहता । भगवान्से भी प्रार्थना करता हूँ कि मेरी बात न माननेवालेका नुकसान कभी न हो !*
*जैसे बिजलीके द्वारा कितने तरहके कार्य होते हैं, उसकी आदमी गिनती नहीं कर सकता । फिर भी बिजलीके नये-नये आविष्कार होते रहते हैं । ऐसे ही पारमार्थिक मार्गमें भी नये-नये आविष्कार होते हैं । परन्तु आप ध्यान नहीं दें तो हम क्या करें ! कठिन बात बतायें तो कहते हैं कि हम कर नहीं सकते, और सुगम बतायें तो आप करते नहीं !*
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॥राम॥
मोहिनी एकादशी के उपलक्ष में
वि०सं०२०८१ ज्येष्ठ कृष्ण ११
रवि 19 मई 24, प्रातः 7 से 9
गीता सामूहिक मूल पाठ
आपको भी पाठ में शामिल होना चाहिये।
Join Zoom Meeting
https://us06web.zoom.us/j/84470962486?pwd=MjRnRHViT01Dd3UwaFBlQUgzdTM5QT09
Meeting ID: 844 7096 2486
Passcode: ramram
।। श्रीहरि ।।
प्रश्न-चुप-साधन सुगमतापूर्वक कैसे होता है ?
स्वामीजी-मेरे को बैठना है, चुप-साधन करना है-ऐसा संकल्प रहने से चुप-साधन बढ़िया नहीं होता; क्योंकि वृत्ति में गर्भ रहता है । मेरे को कुछ नहीं करना है-यह भी 'करना' ही है । चुप-साधन बढ़िया तब होता है, जब कुछ करने की रुचि न रहे । जो देखना था, देख लिया; सुनना था, सुन लिया; बोलना था, बोल लिया । इस प्रकार कुछ भी देखने, सुनने, बोलने आदि की रुचि न रहे । रुचि रहने से चुप-साधन बढ़िया नहीं होता ।
सहज समाधि भली ( चुप-साधन ) पुस्तक से, पृष्ठ-संख्या- ३९, गीता प्रकाशन, गोरखपुर
परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
*ॐ श्री परमात्मने नमः*
*आप ऊँचे बन जायँ, महात्मा बन जायँ, संसारमें आपकी कीर्ति हो जाय, आपके दर्शनसे लोगोंका कल्याण हो जाय‒ऐसा मैं चाहता हूँ, इसीलिये ये बातें कहता हूँ ।*
*गुरु आपको जो बातें बतायेगा, उससे मैं कम नहीं बताऊँगा । मैं अभिमान नहीं करता हूँ । आपको किसी भी विषयकी बात गुरुसे पूछनी हो, वह मेरेसे पूछो । ज्ञानयोग, कर्मयोग, भक्तियोग, ध्यानयोग, लययोग, हठयोग, राजयोग, मन्त्रयोग, तन्त्रयोग आदिकी जो बात पूछनी हो, पूछो । मैं बिना गुरु बने पूरी बात बताता हूँ ।*
*मैं चोटी रखनेकी, परिवार-नियोजन न करनेकी बातें कहता हूँ तो लोग समझते हैं कि स्वामीजी हिन्दू हैं, इसलिये ऐसी बातें कहते हैं । पर मैं कहता हूँ कि हिन्दूधर्ममें मुक्ति जितनी सस्ती है, इतनी सस्ती किसी धर्ममें नहीं है, किसी शास्त्रमें नहीं है । मैं मुक्तिका पक्षपाती हूँ, हिन्दुओंका पक्षपाती नहीं हूँ ।*
*मैं तो अपनी मनचाही बात कहूँगा, पर आपका काम आपकी मनचाहीसे होगा । आप नहीं चाहोगे तो मेरा कहना कितनी देर करोगे ? कर सकोगे नहीं । इसलिये आपको स्वयं सोचना चाहिये कि आपका कल्याण किस बातमें है । मेरे अथवा किसीके भरोसे नहीं रहना चाहिये ।*
*अगर साधुओंका ही कल्याण होता तो मैं भी दो-चार, पाँच-दस साधु तो बना सकता था ! वास्तवमें साधु हो या गृहस्थ, कल्याण भाव बदलनेसे होगा ।*
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*श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज*
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राम ! राम !! राम !!! राम !!!!
सच्चा जिज्ञासु कहीं अटक नहीं सकता । अटक जाय तो सच्ची लगन नहीं है ।
*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ४७*
*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
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