*ॐ श्री परमात्मने नमः*
*_प्रश्न‒‘चुप‒साधन’ में क्या कारणशरीरसे सम्बन्ध रहता है ?_*
*स्वामीजी‒* मैं शान्त रहूँ‒ऐसा भाव होनेसे कारणशरीरका सम्बन्ध रहता है । यह भाव न रहे तो कारणशरीरका सम्बन्ध छूट जायगा । परमात्मतत्त्व स्वाभाविक है, उसमें कारणशरीर या व्यक्ति नहीं है । मैं शान्त हूँ‒इसमें कारणशरीर है ।
*_प्रश्न‒‘विश्राम’ (कुछ न करना) साधन है या साध्य ?_*
*स्वामीजी‒* दोनों है । जबतक कमी रहे, तबतक साधन है । पूर्णता होनेपर साध्य है ।
एक ‘साधन विश्राम’ है, जो परिश्रमकी अपेक्षासे है । उसके लिये कहा है कि चलते-फिरते हर समय शान्त रहनेका स्वभाव बनायें । एक ‘साध्य विश्राम’ है, जो निरपेक्ष है । उसके लिये गोस्वामीजीने कहा है‒‘पायो परम बिश्रामु’ (मानस, उत्तर॰ १३०) ।
*_प्रश्न‒स्वामीजी, आपने कहा कि वस्तु और क्रियासे रहित होनेका स्वभाव बना लें । स्वभाव बनानेका तात्पर्य ?_*
*स्वामीजी‒* जैसे बिना याद किये ‘मैं अमुक नामवाला हूँ’ ऐसा स्वभाव बनाया है, ऐसे ‘है’ को स्वीकार कर ले । उसको याद न करे, उसका चिन्तन न करे ।
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*श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज*
_(‘रहस्यमयी वार्ता’ पुस्तकसे)_
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*"ॐ श्री परमात्मने नमः||"*
*"""🙏🏻गुरु पूर्णिमा""""🙏🏻*
*🌹गुरु पूर्णिमा की विशेष प्रसादी🌹*
*(5:04 मिनट का Imp,सत्संग)*
*दिनांक:-* 24 जुलाई 2002
*प्रातः*- 5, *बुधवार*
*🙏🏻👏त्वमेव माता च पिता त्वमेव, त्वमेव बंधु च सखा त्वमेव! त्वमेव विद्या द्रविनम त्वमेव, त्वमेव सर्वम मम दे वदेव❗🙏🏻👏*
*🏵️ये मान लो!आज,आज!* *आज देखो गुरु पूर्णिमा है!🛕शुभ दिन है!आज ये स्वीकार कर लो!सबसे कहना है सबसे,जो सुनने वाले हैं!*
*🙏🏻🔰📚👏गीता प्रेस की जो पुस्तकें हैं, उन सबमें"🙏🏻 त्व मेव माता च पिता त्वमेव👏"लिखते हैं!तो ये बात है!हमारे पिता है"परमात्मा"!परमात्मा हमारे!ये मान लो,छोटा बड़ा सब!भगवान हमारे हैं!ये स्वीकार कर लो!फिर सब काम ठीक हो जाएगा!🙏🏻🏵️*
*🌺हमारे तो इतना असर पड़ा है कि ठीक तरह जानने से"सब कर्म भस्म"हो जाते हैं!ज्ञान रूपी अग्नि सब कर्म भस्म कर देती है!पाप और पुण्य सब खत्म!जो परमात्मा की प्राप्ति में बाधक है सब खत्म हो जाएगा!*
*👏सच्ची पूछो तो👉🛕यहां आने वाले🏃🏼♂️🚶🏻♂️🧎♂️सबके सब"जीवन मुक्त"हैं!सब"जीवन मुक्त"हैं!हमा रे है भगवान🌺👏*
*🌹एक☝️बात है!आप ध्यान दो,तो बिल्कुल आपको मालूम होगा कि सब कर्म भस्म हो जाय! ऐसी बात!ध्यान देकर सुनना!मेरी बात ऐसी!🌹""""👇"""""🌹*
*🌷👉जड़ - चेतन का विभाग है!ये सब पाप पुण्य जड़ विभाग में है👈!चेतन विभाग में है ही नहीं!और आप चेतन विभाग में हो!🙏🏻👏भगवान और आप एक हो!आप चेतन हो!चेतन विभाग में ये नहीं है!सब कर्म जड़ विभाग में है!🌷👏*
*( परम श्रद्धेय स्वामीजी श्री रामसुखदास जी महाराज द्वारा""गुरु पूर्णिमा की विशेष प्रसादी")*
नारायण!नारायण!नारायण!नारायण!
*संतवाणी*
*श्रद्धेय स्वामीजी श्रीशरणानन्दजी महाराज*
_(‘प्रश्नोत्तरी-०२’ पुस्तकसे)_
*_प्रश्न‒विश्रामकी उपलब्धि कैसे हो ?_*
*स्वामीजी‒* जो कर सकते हैं एवं जो करना चाहिये वह करके, करनेके रागसे रहित होकर विश्राम प्राप्त करें । प्रत्येक दशामें क्षोभरहित होनेसे ही यथेष्ट विश्राम मिल सकता है । हम क्षोभरहित तभी हो सकते हैं जब हमारी दृष्टि वस्तु, अवस्था, परिस्थिति आदिके सतत् परिवर्तनपर लगी रहे; अर्थात् अनुकूलता तथा प्रतिकूलता सदैव नहीं रहेगी, यह अनुभूति जीवन बन जाए । अनुभूतिके आदरके बिना साधन-निर्माण सम्भव नहीं है । इस कारण अनुभूतिका आदर अत्यन्त अनिवार्य है, क्योंकि अनुभूति ही साधकके पथ-प्रदर्शनमें हेतु है ।
*_प्रश्न‒विश्रामका स्वरूप क्या है ?_*
*स्वामीजी‒* विश्राम आलस्य नहीं है, अकर्मण्यता नहीं है । क्योंकि आलस्य और अकर्मण्यतासे तो प्राणी व्यर्थ-चिन्तन तथा जड़तामें आबद्ध हो जाता है और विश्राम व्यर्थ-चिन्तनरहित होनेपर तथा जड़तासे अतीत होनेपर ही सम्भव है । विश्राम वह जीवन है, जिससे सभी क्रियाएँ उदित होती हैं अथवा जिसमें सभी क्रियाएँ विलीन होती हैं; अर्थात् क्रियाशीलताका उद्गम-स्थान भी विश्राम है और उसका लयस्थान भी विश्राम ही है ।
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राम ! राम !! राम !!! राम !!!!
संसार और परमात्मा आपस में नहीं मिल सकते । अंधकार को प्रकाश में मिला सकते हैं क्या ?
*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या १९*
*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
👏👏
*ॐ श्री परमात्मने नमः*
*_प्रश्न‒एक स्त्रीके पतिका सम्बन्ध दूसरी स्त्रीके साथ है, वह बड़ी दुःखी है, क्या करे ?_*
*स्वामीजी‒* बढ़िया बात तो यह है कि वह भगवान्के भजनमें लग जाय ! पर अपनी रुचिके बिना ऐसा होना कठिन है ! वह रामायणका पाठ इस सम्पूटके साथ करे‒
_मन करि बिषय अनल बन जरई ।_
_होइ सुखी जौं एहिं सर परई ॥_
_(मानस, बाल॰ ३५ । ४)_
*_प्रश्न‒कोई पुरुष यदि पत्नीका त्याग कर दे तो उनकी सन्तानको किसके पास रहना चाहिये, पिताके पास या माताके पास ?_*
*स्वामीजी‒* माताके पास रहना चाहिये । परन्तु वह स्त्री अगर दूसरा विवाह कर लेगी तो सन्तानकी दुर्दशा होगी ! उसका दूसरा पति उन बच्चोंको कैसे स्वीकार करेगा ?
*_प्रश्न‒क्या पतिव्रता स्त्री भगवान्का पूजन करती है ?_*
*स्वामीजी‒* हाँ, पर वह सब कुछ पतिकी आज्ञासे करती है । एक पतिव्रता-भाव होता है । उस भावको कोई मिटा नहीं सकता । शरीरसे तो पतिव्रताका सम्बन्ध पतिके साथ है, पर आत्माका सम्बन्ध भगवान्के साथ है । कारण कि वास्तवमें भगवान् ही सबके परमपति हैं ।
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॥राम॥
आषाढ शु० व्यास पूर्णिमा सं.२०८१
रवि 21 जुलाई 24,
प्रात: 7:00 से 9:00
गीता सामूहिक पाठ
हार्दिक निवेदन—पाठमें शामिल हों।
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https://us06web.zoom.us/j/84470962486?pwd=MjRnRHViT01Dd3UwaFBlQUgzdTM5QT09
Meeting ID: 844 7096 2486
Passcode: ramram
*ॐ श्री परमात्मने नमः*
*_प्रश्न‒परिवारमें प्रेम कैसे हो ?_*
*स्वामीजी‒* प्रेम तब होता है, जब ‘बुद्धि’ में स्वार्थ तथा अभिमान न हो, और ‘कार्य’ में अपने अधिकारका त्याग तथा दूसरेके अधिकारकी रक्षा हो । अपने कर्तव्यका तत्परतासे पालन करे । मान, बड़ाई, महिमा, आदर, सम्मान दूसरेको दे । कष्ट, अपमान आदि खुद सह ले । मैंने शुरूसे ही दो बातें अपनायी हैं‒अपने पास जो वस्तु हो, वह दूसरोंके लिये खुली रखे, दूसरोंको दे, और दूसरेकी बात रखे ।
ये बातें तभी काममें आती हैं, जब हमारा उद्देश्य अपने कल्याणका, परमात्मप्राप्तिका हो । जहाँ पैसा और भोगका उद्देश्य होगा, वहाँ कलह होगा ही ! वहाँ ये बातें समझमें नहीं आयेंगी !
पारमार्थिक उन्नति और शुद्ध व्यवहार एक चीज है, दो नहीं !
*_प्रश्न‒एक संयुक्त परिवार है । भाइयोंमें प्रेम है, पर उनके बेटे बड़े हो गये और खटपट करने लगे हैं ! घरमें कलह होने लगी है ! अब वे क्या करें ?_*
*स्वामीजी‒* उन्हें अलग हो जाना चाहिये । बेटोंको समझाना चाहिये कि साथ-साथ रहनेसे क्या लाभ हैं । अलग होनेसे धन अधिक हो जायगा‒यह वहम है । एक साथ रहनेसे धन बढ़ता है । लोगोंमें भी इज्जत बढ़ती है । धन कम रहनेपर भी लोग अधिक धनवाला समझते हैं । अलग होनेसे पोल निकल जायगी !
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