*ॐ श्री परमात्मने नमः*
*_प्रश्न‒बीमारीकी अवस्थामें अशुद्ध दवा लेना और दूसरेका खून चढ़वाना‒दोनों एक ही हैं या दोनोंमें फर्क है ?_*
*स्वामीजी‒* दोनोंमें फर्क है । अशुद्ध दवा लेना दोष है, पर रक्त लेना दोष नहीं है । कारण कि रक्तको दूसरा व्यक्ति अपनी इच्छासे, प्रसन्नतासे अपनेमेंसे देता है, जबकि दवा अपनेसे अलग है । जैसे, भोजन वही बढ़िया होता है, जिसमें खानेवालेसे अधिक खिलानेवालेको प्रसन्नता होती है । दूसरी बात, अशुद्ध दवामें पशुके रक्त आदि पदार्थ उसकी इच्छाके बिना जबर्दस्ती लिये जाते हैं ।
*_प्रश्न‒जिसका रक्त लिया जाय, उस आदमीके संस्कार, उसका स्वभाव क्या अपनेमें नहीं आता ?_*
*स्वामीजी‒* नहीं आता ।
*_प्रश्न‒दवा लेनेसे रोगके कीटाणु मरते हैं तो क्या उनकी हिंसा नहीं लगती ?_*
*स्वामीजी‒* उद्देश्य मारनेका नहीं होना चाहिये । रोग कीटाणुसे होता है‒इसमें मतभेद भी है । आयुर्वेदकी दृष्टिसे वात-कफ-पित्त कुपित होनेसे रोग होते हैं ।
*_प्रश्न‒शरणानन्दजी महाराज कहते हैं कि रोगका कारण ‘राग’ है । परन्तु रागरहित महापुरुषोंके शरीरमें भी रोग होता है ?_*
*स्वामीजी‒* हाँ, रागरहित महापुरुषोंके शरीरमें भी रोग हो सकता है, पर वह रोग दुःखदायी नहीं होता ।
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*श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज*
_(‘रहस्यमयी वार्ता’ पुस्तकसे)_
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।॥राम॥
ऑनलाइन सत्संग सूचना
वि.सं. २०८१ कार्तिक शु० ०७ शुक्र 08 नवम्बर 24
प्रात: 4:30 गीता-पाठ
प्रातः 5 प्रार्थना प्रवचन व सत्संग- संवाद
(गीता १८/४१-५०)
नासतो विद्यते भावो (गीताजी 2-16)
(श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदास जी महाराज 19.11.2004 प्रातः5 गीताभवन ऋषिकेश)
प्रार्थना प्रवचन व सत्संग-संवाद
गीता-दर्पण
गीता प्रबोधनी अर्थ सहित पाठ
गीता- साधक- संजीवनी
दोपहर 3 सत्संग
रात्रि 7 गीता-साधक-संजीवनी
हार्दिक निवेदन है कि हम सभी मिलकर लाभ लेवें
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इसमें श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज,श्रीमनमोहनजी महाराज और अनेक साधकों के रिकॉर्डिंग पोस्ट होते है।
हमारी रोज वाली जूम मीटिंग में 100 लोगों की लिमिट है अगर आप जूम मीटिंग नहीं जुड़ पाते हैं तो इस नई आईडी में जुड़ सकते हैं ।
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राम ! राम !! राम !!! राम !!!!
*लेने की इच्छा छोड़ते ही साधन शुरू हो जाएगा ।*
*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ४१*
*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
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राम ! राम !! राम !!! राम !!!!
' ये भगवान् ही हैं '- इसकी अपेक्षा ' ये भगवान् के हैं ' - यह मानना सुगम है । सब में भगवान् हैं, सब भगवान् में हैं, सब भगवान् के हैं और सब भगवान् हैं - इन चारों में कोई *एक* मान लो ।
*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ३९*
*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
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