राम ! राम !! राम !!! राम !!!!
संत महात्माओं की शरीर में ममता नहीं होती, इसलिए उनके दर्शन से लाभ होता है । जिस वस्तु में ममता नहीं होती, वह वस्तु शुद्ध हो जाती है ।
परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज ज द्वारा विरचित ग्रंथ स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ५०
राम ! राम !
राम ! राम !! राम !!! राम !!!!
*सत्संग की बातें धारण न करने से ही बहुत - सी बातें दीखती हैं । धारण कर लें तो थोड़ी, गिनी - चुनी बातें हैं ।* केवल कर्मयोग -ज्ञानयोग - भक्तियोग ही तो है ।
*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज ज द्वारा विरचित ग्रंथ स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ५०*
*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
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।। ॐ श्रीपरमात्मने नमः ।।
_"अपनी कामना, ममता और आसक्तिका त्याग करके कर्मोंको केवल प्राणिमात्रके हितके लिये करनेसे *कर्मोंका प्रवाह संसारके लिये और योग अपने लिये हो जाता है।* परन्तु कर्मोंको अपने लिये करनेसे कर्म बन्धनकारक हो जाते हैं—अपने व्यक्तित्वको नष्ट नहीं होने देते।"_
•परम श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज ,साधक संजीवनी १८/६ 🙏
*ॐ श्री परमात्मने नमः*
*_प्रश्न‒‘मैं’-पनकी मान्यता किसपर टिकी हुई है ?_*
*स्वामीजी‒* मैं-पनकी मान्यता ‘है’ पर टिकी हुई है । मैं-पनका आधार है‒‘है’ अर्थात् सत्ता । उस सत्तामें मैं-पन नहीं है । सत्तामें मैं-तू-यह-वह कुछ भी नहीं है ।
*_प्रश्न‒‘मैं’ को छोड़कर ‘है’ में स्थित होनेकी क्या युक्ति है ?_*
*स्वामीजी‒* ‘मैं’ को रखनेमें जो अभिमान है, वही अभिमान ‘मैं’ को छोड़नेमें भी है । अभिमान दोनोंमें समान है । करनेमें भी अभिमान है और न करनेमें भी अभिमान है । इसलिये ‘मैं’ की उपेक्षा कर दें, उससे उदासीन हो जायँ । उदासीन होनेमें युक्ति यह है कि वास्तवमें ‘मैं’-पन है नहीं ! मैं-पन अपरा प्रकृति है, जो असत् है‒‘नासतो विद्यते भावः’ (गीता २ । १६) ।
*_प्रश्न‒स्वामीजी, आपने मैं-पनको मिटानेका उपाय बताया कि ‘हूँ’ को ‘है’ में लीन कर दे । इसका तात्पर्य ?_*
*स्वामीजी‒* ‘हूँ’ ‘है’ के अर्पित हो जाय । तात्पर्य है कि जो ‘हूँ’ है, वह वास्तवमें ‘है’ ही है‒ऐसा मान ले । फिर मैं-पन नहीं रहेगा ।
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*श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज*
_(‘रहस्यमयी वार्ता’ पुस्तकसे)_
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परमात्म प्राप्ति के बिना चैन से रहते हो -यही बाधा है । बार - बार विचार करो कि परमात्म प्राप्ति के सिवाय और काम क्या है ? कैसे प्राप्ति हो ?
*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज ज द्वारा विरचित ग्रंथ स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ४९*
*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
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राम ! राम !! राम !!! राम !!!!
*भोगों की इच्छा मनुष्य को भववान् में लगने नहीं देती । भोगों की इच्छा अपने से दूर न हो तो भगवान् से प्रार्थना करो ।*
*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज ज द्वारा विरचित ग्रंथ स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ४९*
*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
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राम ! राम !! राम !!! राम !!!!
*परमात्मा की प्राप्ति में "साधन" काम का नहीं है, "लगन" काम की है ।* कारण कि परमात्मा की प्राप्ति लगन से होती है, साधन से नहीं । क्रियाओं से वस्तु खरीदी जाती है । परमात्म तत्त्व क्रिया, वस्तु और व्यक्ति से अतीत है ।
*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या ४८*
*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
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