॥राम॥
ज्येष्ठ शु० १५ शनिवार सं.२०८१ (22 जून 24)
प्रातः 8:00 से
श्री गीताजी का सामूहिक मूल पाठ
पाठमें शामिल होनेके लिये हार्दिक निवेदन।
Join Zoom Meeting
https://us06web.zoom.us/j/84470962486?pwd=MjRnRHViT01Dd3UwaFBlQUgzdTM5QT09
Meeting ID: 844 7096 2486
Passcode: ramram
*ॐ श्री परमात्मने नमः*
*_प्रश्न‒लोग यह शंका करते हैं कि अगर कामना न करें तो देशकी उन्नति कैसे होगी ? व्यापारीलोग कामनाको लेकर ही व्यापार करते हैं, कारखाने खोलते हैं !_*
*स्वामीजी‒* लोगोंको कैसे लाभ हो, उनका जीवन-निर्वाह कैसे हो, देशकी उन्नति कैसे हो‒इस भावसे ही व्यापार आदि करना चाहिये । कामना करनेसे पारमार्थिक लाभ तो होता नहीं, लौकिक लाभमें भी बाधा लगती है ! निष्काम, त्यागी व्यक्तिको सब देना चाहते हैं, पर कामनावाले व्यक्तिको कोई देना नहीं चाहता । अभी जो देशकी उन्नतिकी बात करते हैं तो लोगोंकी चिन्ता, कलह, अशान्ति आदि ही बढ़ी है ! ऐसी उन्नतिसे क्या लाभ ?
साधुओंमें भी देखें तो जो कामना करते हैं, उनको वह आराम-सुविधा नहीं मिलती, जो हमें मिलती है ! यह कामनाकी महिमा हुई कि त्यागकी ?
*_प्रश्न‒यह त्यागके कारण है या प्रारब्धके कारण ?_*
*स्वामीजी‒* यह त्यागके कारण है । त्यागसे नया प्रारब्ध बन जाता है ! कारण कि त्यागसे बड़ा भारी पुण्य होता है !
❈❈❈❈
*श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज*
_(‘रहस्यमयी वार्ता’ पुस्तकसे)_
*VISIT WEBSITE*
*www.swamiramsukhdasji.net*
*BLOG*
*http://satcharcha.blogspot.com*
❈❈❈❈
।। राम-राम ।।
जैसे बीड़ी-सिगरेट पीनेवालोंके द्वारा स्वतः ही बीड़ी-सिगरेटका प्रचार
होता है, ऐसे ही साधकके द्वारा भी स्वतः साधन-भजनका प्रचार होता है।
ऐसे सच्चे ह्रदयसे साधन करनेवाले
साधकोंका समुदाय जहाँ रहता है, उस स्थानमें विलक्षणता आ जाती है।
जैसे भोगियोंके भोग और संग्रहका लोगोंपर स्वतः असर पड़ता है, ऐसे ही साधकोंके त्याग और साधन-भजनका लोगोंपर स्वतः असर पड़ता है।
उनके साधन-भजनका असर केवल मनुष्योंपर ही नहीं, प्रत्युत पशु-पक्षी आदि जीवोंपर तथा दीवार आदि जड़ चीजोंपर भी पड़ता है।
*गीता-दर्पण*
( लेखक परम श्रद्धैय स्वामी जी
श्री रामसुखदासजी महाराज )
क्रम संख्या २९ विषयः- गीता
में प्राणीमात्रके प्रति हितका
भाव से लिया गया।
॥राम॥
निर्जला ११ वैष्णव व्रत व गीता-पाठ
ज्येष्ठ शु०११ सं.२०८१(मंगल 18 जून 24)
प्रातः 7:30 से
गीता सामूहिक पाठ
पाठमें शामिल होनेके लिये हार्दिक निवेदन।
Join Zoom Meeting
https://us06web.zoom.us/j/84470962486?pwd=MjRnRHViT01Dd3UwaFBlQUgzdTM5QT09
Meeting ID: 844 7096 2486
Passcode: ramram
राम ! राम !! राम !!! राम !!!!
*कोई कामना न हो तो मुक्ति स्वत: सिद्ध है ।*
*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या १३*
*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
👏👏
राम ! राम !! राम !!! राम !!!!
उसी की वस्तु उसी को देना त्याग है, दान नहीं । बाहर से देखें तो दरिद्र और त्यागी - दोनों की एक अवस्था है । परंतु बाहर से एक अवस्था होने पर भी भीतर से दरिद्र दु:खी रहता है और त्यागी सुखी । त्यागी के पास जाने से लोगों को सुख मिलता है ।
*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या १३*
*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
👏👏
राम ! राम !! राम !!! राम !!!!
*संसार के साथ संबंध केवल संसार को सुख देने के लिए ही होना चाहिए* । जो मिला है, वह सेवा के लिए मिला है, अपने लिए नहीं । संसार में हम लेने के लिए नहीं आए हैं, देने के लिए आए हैं ।
*परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा विरचित ग्रंथ गीता प्रकाशन गोरखपुर से प्रकाशित स्वाति की बूंदें पृष्ठ संख्या १३*
*राम ! राम !! राम !!! राम !!!!*
👏👏
राम।।🍁
🍁 *विचार संजीवनी* 🍁
*प्रश्न-- असाधन क्या है ?*
उत्तर-- जो मिला है और बिछुड़ जायगा, उसको अपना मानना और जो मिलने-बिछुड़नेवाला नहीं है, उसको अपना न मानना असाधन है।
*प्रश्न--हम साधन करते हैं, फिर जल्दी सफलता क्यों नहीं मिल रही है ?*
उत्तर--जल्दी सफलता चाहना भी भोग है। हमें तो बस, साधन करते रहना है। जल्दी सफलता मिल जाय--इस तरफ ध्यान ही नहीं देना है। जल्दी सिद्धि प्राप्त करके पीछे करेंगे क्या ? काम तो यही करेंगे।
*राम ! राम !! राम !!!*
परम् श्रद्धेय स्वामी जी श्रीरामसुखदास जी महाराज *साधन-सुधा-निधि* पृष्ठ ६८९-६९०