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Telegram-канал bharat7773 - यतो धर्मस्ततो जयः।

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षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता ! निद्रा तद्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रता !! किसी व्यक्ति के बर्बाद होने के 6 लक्षण होते है – नींद, गुस्सा, भय, तन्द्रा, आलस्य और काम को टालने की आदत . @bharat7773 @dharm7773 @geet7773

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यतो धर्मस्ततो जयः।

यदि इनके युद्ध का वर्णन है, तो वह युद्ध क्या एक ही देश के रहने वाले दो दलों में नहीं हो सकता, इन दोनों में से एक दल बाहर से आया था और दूसरा आदिवासी दल था इस कल्पना का एक ही और केवल मात्र एक उद्देश्य था, भारत में पग-पग पर फूट फैलाने वाले तथा भारत के एकता के परम शत्रु अंग्रेजी शासकों की तथा वैदिक धर्म द्रोही पादरियों की दुष्टता है।
अब अंग्रेज चले गए। क्या अब भी हमारे देशवासियों की आंखें खुलेंगी।
*◼️आर्य और द्रविड़ का असली अर्थ*
अब जरा आर्यवर्ण तथा दासवर्ण इन शब्दों की परीक्षा करलें ।
वर्ण शब्द का अर्थ इस प्रसंग में है ही नहीं । धातु-पाठ में रंग-वांची वर्ण वाची शब्द के लिए वर्ण धातु पृथक ही दी गई है परन्तु निरुक्तकार ने इस वर्ण शब्द की व्यत्युत्ति वृ धातु से बताई है । वर्णो वृणोतेः (निरुक्त) ।
ब्राह्मण, क्षत्रिय वैश्य यह तीन आर्य वर्ण हैं, क्योंकि सत्यद्वारा असत्य नाश, बल द्वारा अन्याय का नाश धन द्वारा दारिद्रय का नाश यह तीन व्रत हैं ।
इनमें से जो एक व्रत का वरण अर्थात् चुनाव कर लेता है उसके ‘वर्णिक' को जीवन अपने वर्ण की मर्यादानुसार अत्यन्त कठोर नाप तोल में बंध जाता है इसलिये वह व्रत आर्य वर्ण कहलाता है ।
जो अपने आप को सब प्रकार की शक्तियों से क्षीण पाता है। परन्तु स्वेच्छा पूर्वक ईष्र्यारहित होकर लोक कल्याणार्थ किसी व्रत वाले की सेवा का व्रत ले लेता है वह दास वर्ण का कहलाता है इसलिये शूद्रों के दासन्त नाम कहे हैं । जो ब्रतहीन हैं वह दास नहीं, दस्यु हैं।
उन्हें अव्रताः कहकर व्रत वाले उनसे युद्ध करें यह बिलकुल उचित ही है । यह व्रतधारियों का व्रतहीनों से, हराम खोरों का श्रम शीलों से संग्राम सदा से चला आया है और सदा रहेगा । यह दोनों ही सदा से धरती पर रहे हैं इसलिए दोनों ही धरती के आदिवासी, मध्यवासी, तथा अन्तवासी हैं ।
अस्तु Aborigines की यह कल्पना बिलकुल निराधार है । इसका वैदिक वाङ्मय तो क्या सारे संस्कृत साहित्य में वर्णन नहीं ।
*◼️आर्य शब्द कैसे बना*
अब देखना है कि आर्य शब्द यदि जाति विशेष का वाचक नहीं तो यह किसका वाचक है ।
इसके लिये इसकी व्युत्पत्ति को देखना चाहिए ।
यह शब्द ‘ऋ गतौ' (Ri to move) इस धातु से बना है. परन्तु ऋ धातु का अर्थ गति है इतना तो व्याकरण से ज्ञात हो गया अब निरुक्त प्रक्रिया से देखना चाहिये कि ऋ धातु का अर्थ किस प्रकार की गति है । इसके लिए दो शब्दों को ले लीजिए । एक ऋतु, दूसरा ऋतु । ऋतु का अर्थ है नपा हुआ समय । ग्रीष्म ऋतु= गरमी के लिये नियत, नपा हुआ समय, वर्षा ऋतु = जिसमें वर्षा होती है वह नपा हुआ समय, शरद ऋतु=जिसमें सरदी पड़े वह नपा हुआ समय, बसन्त ऋतु=जिसमें सरदी से धुन्ध कोहरा आदि आकाश के आच्छादक वृत्तोका अन्त हो और समशीतोष्ण अवस्था हो वह नपा हुआ समय, इस प्रकार 'ऋगतौ का अर्थ हुआ ऋ= मितगतौ अर्थात् न प के साथ चलना।
इसीलिये जो पदार्थ जैसा है उसके सम्बन्ध में अन्यूना= नातिरिक्त, ठीक नपा तुला ज्ञान कहलाता है= ऋतु इसके विपरीत अन+ ऋतु । इसका बिलकुल संदेह नाशक प्रमाण कीजिये -
अर्वन्तोमित द्रवः (यजु १,)
वे घोड़े जो इतने सधे हों कि दौड़ते समय भी उनके पग नाप तौल के साथ उठे परिमित हों, ठीक नपे तुले हों वे अर्वन्तः कहलाते हैं । इसी ऋधातु से आर्य बना है । इस शब्द के सम्बन्ध में पाणिनि का सूत्र है' 🔥अर्यः स्वामि वैश्योंः आर्य शब्द के दो अर्थ हैं एक स्वामी दूसरा वैश्य।
इस पर योरोपियन विद्वानों की बाल लीला देखिए।
उनका कहना है यह शब्द ऋधातु से बना है जिसका अर्थ है। खेती करना यह ‘ऋ कृषौ' धातु उन्होंने कहाँ से ढूढ़ निकाली, यह अकाण्ड ताण्डव भी देखिये । आर्य का अर्थ है स्वामी अथवा वैश्य । वैश्य के तीन कर्म हैं
(१) कृषि (श्र) गोपालन (३) वाणिज्य । सो क्योकि आर्य का अर्थ है वैश्य और वैश्य का कर्म है कृषि इसलिए ऋधातु का अर्थ है। खेती करना।
*बलिहारी है इस सीनाजोरी की,*
क्यों जी, वैश्य के तीन कर्मों में व्यापार और गोपालन को छोड़कर आपने खेती को ही क्यों चुना ? इसका कारण उनसे हा सुनिये ।
अंग्रेजी भाषा में एक शब्द है Arable Land अर्थात् कृषि योग्य भूमि । यह शब्द जिस भाषा से आया है उसका अर्थ खेती करना है इसलिए संस्कृत की ऋधातु का अर्थ खेती करना सिद्ध हुआ, यह तो ऐसी ही बात है कि हिन्दी में लुकना का अर्थ छिप जाना है। इसलिए Look at this room का अर्थ, इस घर में छिप जाओ, क्योंकि हिन्दी भाषा में धी का बेटी है इसलिए वेद में भी धी का अर्थ बेटी हुआ।
सुनिये लाल बुझक्कड जी । (१) स्वामी (२) कृषि (३) गोपालन (४) व्यापार । इन चारों में समान है, वह है नाप तौल के साथ व्यवहार, स्वामी से भृत्य जो वेतन पाता है वह नाप तोल के बल पर पाता है ।

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यतो धर्मस्ततो जयः।

हिन्दू शासक एवं उनके राजपरिवार की सभी महिलाओं ने अपने देश के लिए बलिदान दे दिया।

टिप्पणी : राजा दाहिर सेन के बारे में चचनामा नामक पुस्तक में लिखा गया है, किंतु इस पुस्तक की ऐतिहासिकता पर संदेह ही व्याप्त होता है। इतिहासकार डॉक्टर मुरलीधर जेटली के मुताबिक़ चचनामा सन 1216 में अरब सैलानी अली कोफ़ी ने लिखी थी जिसमें हमले के बाद लोगों से सुनी-सुनाई बातों को शामिल किया गया। ये पुस्तक राजा दाहिर सेन के वीरगति प्राप्त होने के लगभग 5 शताब्दी बाद लिखी गई। इतने दिनों तक मौखिक इतिहास नहीं टिकता है, और धीरे धीरे उसमें मिलावट आ ही जाती है। इसी तरह असल इतिहास को बढ़ावा देने वाले पीटर हार्डे, डॉक्टर मुबारक अली और गंगा राम सम्राट ने भी चचनामा में उपलब्ध जानकारी की वास्तविकता पर सन्देह व्यक्त किया है। उन्होंने तो यहां तक कह दिया है कि चचनामा अरब लोगों द्वारा लिखी एक काल्पनिक पुस्तक मात्र है जिसका वास्तविकता से कोई सम्बंध नहीं है। हर एक सच्चे सिंधी को राजा दाहिर के कारनामे पर गर्व करना चाहिए क्यों कि उन्होंने सिंध के लिए प्राण त्याग दिया किंतु झुके नहीं।

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यतो धर्मस्ततो जयः।

*🚩त्योहार एक नाम अनेक- लोहड़ी पर्व की सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनाएं*

*👉भारत के अलग-अलग प्रांतों में मकर संक्रांति के दिन या आसपास कई त्योहार मनाएं जाते हैं, जो कि मकर संक्रांति के ही दूसरे रूप हैं। उन्हीं में से एक है लोहड़ी। पंजाब और हरियाणा में लोहड़ी का त्योहार धूम-धाम से मनाया जाता है।*

*⚜️लोहड़ी का अर्थ*
लोहड़ी को पहले तिलोड़ी कहा जाता था। यह शब्द तिल तथा रोड़ी (गुड़ की रोड़ी) शब्दों के मेल से बना है, जो समय के साथ बदल कर लोहड़ी के रूप में प्रसिद्ध हो गया। मकर संक्रांति के दिन भी तिल-गुड़ खाने और बांटने का महत्व है। पंजाब के कई इलाकों मे इसे लोही या लोई भी कहा जाता है।

*⚜️कब मनाते हैं लोहड़ी*
वर्ष की सभी ऋतुओं पतझड, सावन और बसंत में कई तरह के छोटे-बड़े त्योहार मनाए जाते हैं, जिन में से एक प्रमुख त्योहार लोहड़ी है जो बसंत के आगमन के साथ 13 जनवरी, पौष महीने की आखरी रात को मनाया जाता है। इसके अगले दिन माघ महीने की सक्रांति को माघी के रूप में मनाया जाता है।

*⚜️अग्नि के आसपास उसत्व*
लोहड़ी की संध्या को लोग लकड़ी जलाकर अग्नि के चारों ओर चक्कर काटते हुए नाचते-गाते हैं और आग में रेवड़ी, मूंगफली, खील, मक्की के दानों की आहुति देते हैं। अग्नि की परिक्रमा करते और आग के चारों ओर बैठकर लोग आग सेंकते हैं। इस दौरान रेवड़ी, खील, गज्जक, मक्का खाने का आनंद लेते हैं।

*⚜️नववधू, बहन, बेटी और बच्चों का उत्सव*
पंजाबियों के लिए लोहड़ी उत्सव खास महत्व रखता है। जिस घर में नई शादी हुई हो या बच्चा हुआ हो उन्हें विशेष तौर पर बधाई दी जाती है। प्राय: घर में नव वधू या बच्चे की पहली लोहड़ी बहुत विशेष होती है। इस दिन बड़े प्रेम से बहन और बेटियों को घर बुलाया जाता है।

*⚜️पौराणिक मान्यता*
पौराणिक मान्यता अनुसार सती के त्याग के रूप में यह त्योहार मनाया जाता है। कथानुसार जब प्रजापति दक्ष के यज्ञ की आग में कूदकर शिव की पत्नीं सती ने आत्मदाह कर लिया था। उसी दिन की याद में यह पर्व मनाया जाता है।

*⚜️लोहड़ी का आधुनिक रूप*
आधुनिकता के चलते लोहड़ी मनाने का तरीका बदल गया है। अब लोहड़ी में पारंपरिक पहनावे और पकवानों की जगह आधुनिक पहनावे और पकवानों को शामिल कर लिया गया है। लोग भी अब इस उत्सव में कम ही भाग लेते हैं।
🙏🚩🇮🇳🔱🏹🐚🕉️

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यतो धर्मस्ततो जयः।

*🛕श्री कालभैरवेश्वर स्वामी मंदिर, अदीचूंचनागिरी(कर्नाटक)*

*♦️यह पुराने मंदिरों में से एक है जिसका इतिहास लगभग 2000 वर्षों पुराना है। मंदिर, मांड्या जिले कर्नाटक के अदिचुनगनागिरी पहाड़ियों में 3,300 फीट की ऊंचाई पर स्थित है।*

*♦️आदिरूद्र ने यह मंदिर कुछ योगों के अनुसार सिद्ध योगी को दिया था। अब वर्तमान प्रमुख श्री श्री श्री निर्मलानंदनाथ स्वामीजी हैं, जो इस मन्दिर के 72 वें गुरु हैं। यहां आध्यात्मिकता के लिए व्याख्या प्राकृतिक अनुनाद के साथ-साथ सभी यज्ञ और प्रार्थनाएं की जाती हैं।*

*♦️यह घने जंगल से घिरा हुआ है जहाँ मुक्त घूमते हुए मोर देख सकते हैं। इसे मयूरवन भी कहा जाता है। यहाँ पूजे जाने वाले भगवान गंगाधरेश्वर हैं।*

*♦️श्री कालभैरवेश्वरस्वामी मंदिर: ये वैभवशाली तथा राजसी मंदिर श्रीक्षेत्र आदिचुंचनगिरि में बनाया गया है जहाँ सभी पारंपरिक मूल्यों की शिक्षा दी जाती है। यह प्राचीन मठ का मुख्यालय मूल रूप से भगवान गणेश और भगवान सुब्रह्मण्य के साथ कालभैरव, अष्टभैरव, अष्टाध्यायविग्रह की जीवंत छवियों के साथ एक गतिशील मन्दिर परिसर है।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

*🔰नन द्वारा चर्च में ‘पाप का प्रायश्चित’ करने पर पादरी करते है रेप*

*⚜️भारत मे साधु-संत देश, समाज और संस्कृति के उत्थान के लिए कार्य कर रहे हैं उनको साजिश के तहत बदनाम किया जाता है, झूठे केस में जेल भेजा जाता है और मीडिया द्वारा तथा "आश्रम" जैसी फिल्में बनाकर उनको बदनाम किया जाता है। वहीं दूसरी ओर जो मौलवी व ईसाई पादरी मासूम बच्चे-बच्चियों और ननों के साथ रेप करते हैं उनकी जिंदगी तबाह कर देते हैं फिर भी मीडिया, प्रकाश झा जैसे बिकाऊ निर्देशक इसको देखकर आँखों पर पट्टी बांध लेते हैं क्योंकि इनको पवित्र हिन्दू साधु-संतो को बदनाम करने के पैसे मिलते है और हिंदू सहिष्णु हैं तो इन षडयंत्र को सहन कर लेते हैं।*

*⚜️सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार (जनवरी 8, 2021) को केरल की ईसाई महिलाओं की एक रिट याचिका को सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया, जिसमें मालंकारा ऑर्थोडॉक्स सीरियन चर्च में अनिवार्य कन्फेशन (अपने पापों को पादरी के सामने प्रायश्चित करना) की परम्परा को चुनौती दी गई है। याचिका में इसे धर्म और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के संवैधानिक अधिकारों के विरुद्ध करार दिया गया है। मुख्य याचिकाकर्ता को सुप्रीम कोर्ट ने याचिका में संशोधन कर और नए फैक्ट्स आलोक में लाने की अनुमति भी दे दी है।*

*🔰मुख्य न्यायाधीश जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और जस्टिस रमासुब्रमण्यन की पीठ इस मामले को सुनेगी।*

*⚜️याचिकाकर्ताओं का कहना था कि कन्फेशन के एवज में पादरी यौन फेवर माँगते हैं, सेक्स करने को कहते हैं। इन महिलाओं का कहना था कि उन्हें अपने चुने हुए पादरी के समक्ष भी कन्फेशन करने दिया जाए। साथ ही ये भी कहा गया कि ईसाई महिलाओं के लिए कन्फेशन अनिवार्य करना असंवैधानिक है, क्योंकि पादरियों द्वारा इसे लेकर ब्लैकमेल करने की घटनाएँ सामने आई हैं। केरल और केंद्र की सरकारों को भी इस मामले में पक्ष बनाया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में भारत के अटॉर्नी जनरल केसी वेणुगोपाल से भी प्रतिक्रिया माँगी है। AG ने बताया कि ये मामला मालंकारा चर्च में जैकोबाइट-ऑर्थोडॉक्स गुटों के संघर्ष से उपज कर आया है।*

*⚜️ये संघर्ष भी सुप्रीम कोर्ट पहुँचा था, लेकिन तीन जजों की पीठ ने इस मामले की सुनवाई के बाद फैसला दे दिया था। मुकुल रोहतगी ने ध्यान दिलाया कि ऐसे मामले संवैधानिक अधिकारों के साथ-साथ ये भी देखना होगा कि क्या कन्फेशन एक अनिवार्य धार्मिक प्रक्रिया हुआ करती थी। किसी बिलिवर की ‘राइट टू प्राइवेसी’ का धार्मिक प्राधिकरण के आधार पर पादरी द्वारा उल्लंघन किया जा सकता है या नहीं, उन्होंने इस पर भी विचार करने की सलाह दी।*

*⚜️उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ पादरी महिलाओं द्वारा किए गए कन्फेशन का गलत इस्तेमाल करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ऐसे मामले व्यक्तिगत अनुभवों के आधार पर अलग-अलग हो सकते हैं, जिस पर रोहतगी ने कहा कि वो याचिका में संशोधन कर ऐसी घटनाओं को जोड़ेंगे। कन्फेशन को लेकर इससे पहले भी याचिकाएँ आ चुकी हैं। कन्फेशन के अंतर्गत लोग पादरी की उपस्थिति में अपने ‘पापों’ को लेकर प्रायश्चित करते हैं।*

*⚜️केरल के एक नन ने अपनी आत्मकथा में आरोप लगाया था कि एक पादरी अपने कक्ष में ननों को बुला कर ‘सुरक्षित सेक्स’ का प्रैक्टिकल क्लास लगाता था। इस दौरान वह ननों के साथ यौन सम्बन्ध बनाता था। उसके ख़िलाफ़ लाख शिकायतें करने के बावजूद उसका कुछ नहीं बिगड़ा। उसके हाथों ननों पर अत्याचार का सिलसिला तभी थमा, जब वह रिटायर हुआ। सिस्टर लूसी ने लिखा था कि उनके कई साथी ननों ने अपने साथ हुई अलग-अलग घटनाओं का उजागर किया और वो सभी भयावह हैं। ऐसे तो हजारों पादरियों पर अपराध साबित हो चुके है कि ये लोग बच्चों एवं ननों का यौन शोषण करते हैं।*

*⚜️कैथलिक चर्च की दया, शांति और कल्याण की असलियत दुनिया के सामने उजागर ही हो गयी है । मानवता और कल्याण के नाम पर क्रूरता का पोल खुल चुकी है । चर्च  कुकर्मो की  पाठशाला व सेक्स स्कैंडल का अड्डा बन गया है । पोप बेनेडिक्ट सोलहवें ने पादरियों द्वारा किये गए इस कुकृत्य के लिए माफी माँगी थी ।*

*⚜️हिंदू धर्म के पवित्र साधु-संतों को पर झूठे आरोप लगाए जाते है, झूठी कहानियां बनाकर मीडिया द्वारा बदनाम किया जाता है लेकिन इन सही अपराधों को मीडिया आज छुपा रही है, सेक्युलर, लिबरल्स सब मौन बैठे है।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

सनातन विरोधियों को पेहचानो सनातनियो।
पार्टियां आएंगी जाएगी सरकार बनेगी बिगड़ेगी लेकिन जो सनातन धर्म का सम्मान करेगा वहीं देश पे राज करेगा।

@Prabal_Pratap_Singh_Parihar

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यतो धर्मस्ततो जयः।

ग्रीस के श्रीनृसिंह देव ।।

वास्तव में श्रीनृसिंहः अवतार आर्यवत में हुआ था, उस समय इजिप्ट भी आर्यवत का ही हिस्सा था, ओर अगोध्या में पड़ता था । नृसिंहः अवतार यही हुआ था। इजिप्ट में ।
इजिप्ट से चलकर कहीं यूरोप में श्रीनृसिंह ने हिरण्यकश्यप को मारा था । हिरण्यकश्यप का भी यही था, खुद ईश्वर बनकर विष्णुपुजा बन्द करवना । आज भी ठीक यही हो रहा है । विष्णुजी के मंदिरो को ही ज़्यादातर ध्वस्त किया गया ।। इजिप्ट ओर अरब तक भारतीयों का शासन था, इसी कारण अरब और मिस्र का सबसे प्राचीन राजवंश कुश राजवंश है । जो भगवान राम के पुत्र कुश के नाम था । उसकी राजधानी हमारी वर्तमान भारत हुआ करती थी ।।

हिरण्यकश्यप दैत्यकुल से था । आज भी यूरोप के लोग खुद को डाइट्स ही कहते है । ब्रिटेन और लगभग पूरे यूरोप में ही दैत्य जाति का प्रभुत्व सदैव था - और आज भी है ।। भक्त प्रह्लाद जो कि दैत्य जाति से थे, वह भी यूरोप से ही थे -- महाबली जिन्होंने भगवान विष्णु को तीन पग भूमि दान की थी, वह भो दैत्य जाति से थे, ओर यूरोप के थे ... यही यूरोपियन दैत्य जाति वर्तमान में आस्ट्रेलिया से लेकर अमेरिका तक फैली हुई है, अफ्रीका में भी जो गौर वर्ण के लोग है, वह दैत्य ही है ....

दैत्यों का मूल सम्बन्ध असुरो से है, यह असुरो की ही एक शाखा है । असुरो की दूसरी शाखा का नाम दानव है, जो कि अफ्रीका के काले लोग है ... इसके अलावा गौर वर्ण में भी दानव है ... जिसका वर्णण में आगे के लेखों में करूँगा....दैत्यों में अपनी स्मृति को किस तरह जीवित रखा है, इसका उदाहरण आप स्वयं देखिये ...

जर्मनी का वर्तमान नाम जर्मनी तो उन्हें " परायों " ने दिया है, जर्मन के लोग अपने निजी देश को " Deutschland #डायत्सलेंड कहते है । यह संस्कृत के दैत्यस्थान नाम का अपभ्रंश है --पुराणों में वर्णन है कि ऋषिकुल की ही एक शाखा दैत्य कहलाई ...

हालेंड के लोग खुद को #डच कहते है । यह लोग भी वैदिक दैत्य वंश के लोग ही है । दैत्य का अपभ्रंश डच कैसे होता है , इसका उदारहण आप भारत देश से लीजिये --

UP में एक स्थान पड़ता है, बहराइच , प्राचीन काल मे इस स्थान का पौराणिक नाम बहृदादित्य था । जिस प्रकार यहां आदित्य शब्द इच बन गया, उसी प्रकार दैत्य शब्द का उच्चारण वहां "डच " रह गया ।।

हालेंड जर्मनी डेनमार्क लगभग पूरा यूरोप ही दैत्य वंश ही है, ओर यूरोप के मूल लोग जो अमेरिका, आस्ट्रेलिया पर कब्जा कर वहां की मूल प्रजाति का समूल नाश कर वहां बसे हुए है, वह सब दैत्य है ...कैरेबियाई देशो में हैती ओर प्रहेति नाम के दो राक्षस थे, उनके नाम से देश आज भी कैरेबियाई देशो में है। माली ( रावण ) के नाना के नाम पर देश है, तथा सुमाली के नाम पर भी सुमालिलेंड देश है ।

ब्रिटेन का पौराणिक नाम बृहत्स्थान है । नाम से ही स्पष्ठ है, की किसी बड़े भूभाग को ही बृहत्स्थान कहा जाता है, यूरोप के सागर के निकट जितने भी भूमिखण्ड के टुकड़े है, उसमे सबसे विशाल भूभाग ब्रिटेन का ही है ... बृहत की भावना के कारण ही इसे #Great_Britain कहा गया ।।

ब्रिटेन के एक भाग जहां ब्रिटिश राजपरिवार रहता है, उसका नाम है - इंग्लैंड

उसे हम भारतीय आंगुल प्रदेश बोलते है -- उनकी भाषा को आंग्ल भाषा ....

इंग्लैंड का मानचित्र अगर हम देखें, तो इसका आकार एक अंगुली जैसा है ।। और संस्कृत में अंगुली को आंगुल ही कहा जाता है ...

#ब्रिटेन_की_राजप्रथा_पूर्णतः वैदिक

महाभारत के युद्ध तक सम्पूर्ण पृथ्वी पर वैदिक क्षत्रियो का ही शासन था, यह राजप्रथा ही वैदिक संस्कृति की देन है । इंग्लैंड के राजप्रमुख को Monarch ( मानर्क ) कहते है ।यह मानवर्क उर्फ मानवादित्य शब्द है , यानि मानवों में सूर्य जैसा सर्वशक्तिमान ओर सर्वनियंत्रक । मतापादित्य , विक्रमादित्य जैसा ही शब्द मानवर्क है --

अंग्रेजी का रॉयल शब्द भी वैदिक राजपाठ का ही धोतक है । यह राजल ओर रायल जैसे संस्कृत शब्दो की पुरानी यादें है ...

सम्राट को ब्रिटेन में #माजस्ती ( Majesty ) भी कहते है -- यह #महाराज_अस्ति ( यानि महाराज है ) का संस्कृत अपभ्रंश है ।

#King_शब्द_भी_वास्तव_में_सिंह_है

पहले अंग्रेजी भाषा मे king को Cing करके लिखा जाता था । "c" का स्वर "स" ही होता है । बाद में इसका उच्चारण "क" होने लगा । यही "स" स्वर "क" उच्चारण के कारण सिंह की जगह किंग हो गया । इतिहास का ज्ञान न होने के कारण अंग्रेजो में King का उदाहरण कुछ और दे रखा हो, तो कह नही सकता

#ब्रिटेन_के_शहरों_के_नाम_आज_भी_वैदिक

जैसे इंग्लैंड के क्षात्रस्थान उर्फ स्कॉटलैंड में एक गांव का नाम है #cholomondeley , यह वास्तव में चोल-मण्डल-आलय नाम है --

इतने सारे अक्षर लिखते तो है, लेकिन इनका उच्चारण इतना कठिन हो गया है, की अब वह चम्ले कहकर काम चला लेते है --

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यतो धर्मस्ततो जयः।

*मकर संक्रांति और लोहड़ी की सबको शुभकामनाएं।*
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*सनातन सर्वोपरि। विश्व विजयी भारत। राज करेगा हिन्दू-स्थान।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

*_🕉️आत्मनाऽऽत्मानमन्विच्छेन्मनोबुद्धीन्द्रि यैर्यतैः।_*
*_आत्मा ह्वोवात्मनो बन्धुरात्मैव रिपुरात्मनः ॥_*
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*🕉️भावार्थ: मन - बुद्धि तथा इंद्रियों को आत्म -नियंत्रित करके स्वयं ही अपने आत्मा को जानने का प्रयत्न करें , क्योंकि आत्मा ही हमारा हितैषी और आत्मा ही हमारा शत्रु है।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

🔺 *माननीय सुप्रीम कोर्ट को 5-10 हजार की भीड़ घेर कर बैठ जाये और कहें हम कोर्ट का निर्णय नही लागू होने देंगे, जज साहब इस्तीफा दे या जज के चयन की परिक्रिया में बदलाव किया जाए।*

🔺 *तब जज साहब कैसा निर्णय सुनाते? कानून पर रोक लगाने की क्या आवश्यकता थी? जब ये फ़र्ज़ी किसान और वामपंथी न स्थान बदलने को तैयार है न ही कोर्ट की कमेटी को मानने को तैयार। 2 महीनों तक कानून न लागू होने से देशभर के करोड़ो असल किसानों को कितना नुकसान होगा।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

👺 *न सरकार की सुनेंगे*
*न कोर्ट पर भरोसा है*
*न देश के बड़े कृषि* *विज्ञानिको और अर्थशास्त्रियों पर भरोसा है, तो फिर भरोसा पर्दे के पीछे बैठे किस पर है?*

👺 *सुप्रीम कोर्ट ने कल इस तथाकथित आंदोलन में प्रतिबंधित संगठनों और खालिस्तानीयो के शामिल होने पर हलफनामा मांगा है, कल केंद्र सरकार के वकील यानी सॉलिसीटर जनरल इस विषय पर IB की रिपोर्ट समेत हलफनामा दाखिल करेंगे।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

👺 *ये तथाकथित आंदोलन कृषि कानूनो के विरुद्ध है या देश और मोदी सरकार के?*

👺 *दो कदम आगे चल सरकार संशोधन को तैयार हुई, उनकी दो मांगे भी मानी, सुप्रीम कोर्ट भी चार कदम आगे निकल कार्यपालिका में दखल देते हुए कृषि कानूनों के लागू करने पर अस्थाई रोक लगा दी, और चार सदस्यीय कमेटी गठित की, फिर भी ये कोर्ट की भी नही मान रहे है।*
*आखिर मंशा क्या है?*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

*🔰 इतिहास को जानो*

*💠 जब साइंस नाम भी नहीं था तब भारत में नवग्रहों की पूजा होती थी*

*💠 जब पश्चिम के लोग कपडे पहनना नहीं जानते थे. तब भारत रेशम के कपडों का व्यापार होता था।*

*💠जब कहीं भ्रमण करने का कोई साधन स्कूटर मोटर साईकल, जहाज वगैरह नहीं थे। तब भारत के पास बडे बडे वायु विमान हुआ करते थे।*

*इसका उदाहरण आज भी अफगानिस्तान में निकला महाभारत कालीन विमान है। जिसके पास जाते ही वहाँ के सैनिक गायब हो जाते हैं। जिसे देखकर आज का विज्ञान भी हैरान है। द्वापर युग के प्रभु श्रीराम कालीन पुष्पक विमान वनवास के दौरान श्रीलंका से अयोध्या वापस आए थे।*

*💠जब डाक्टर्स नहीं थे. तब सहज में स्वस्थ होने की बहुत सी औषधियों का ज्ञाता था, भारत देश सौर ऊर्जा की शक्ति का ज्ञाता था भारत देश चरक और धनवंतरी जैसे महान आयुर्वेद के आचार्य थे भारत देश में*

*💠 जब लोगों के पास हथियार के नाम पर लकडी के टुकडे हुआ करते थे। उस समय भारत देश ने आग्नेयास्त्र, प्राक्षेपास्त्र, वायव्यअस्त्र बडे बडे परमाणु हथियारों का ज्ञाता था भारत में*

*💠 हमारे इतिहास पर रिसर्च करके ही अल्बर्ट आईंसटाईन ने अणु परमाणु पर खोज की है।*

*💠 आज हमारे इतिहास पर रिसर्च करके नासा अंतरिक्ष में ग्रहों की खोज कर रहा है।*

*💠 आज हमारे इतिहास पर रिसर्च करके रशिया और अमेरीका बडे बडे हथियार बना रहा है।*

*💠 आज हमारे इतिहास पर रिसर्च करके रूस, ब्रिटेन, अमेरीका, थाईलैंड, इंडोनेशिया बडे बडे देश बचपन से ही बच्चों को संस्कृत सिखा रहे हैं स्कूलों में।*

*💠आज हमारे इतिहास पर रिसर्च करके वहाँ के डाक्टर्स बिना इंजेक्शन, बिना अंग्रेजी दवाईयों के केवल ओमकार का जप करने से लोगों के हार्ट अटैक, बीपी, पेट, सिर, गले छाती की बडी बडी बिमारियाँ ठीक कर रहे हैं। ओमकार थैरपी का नाम देकर इस नाम से बडे बडे हॉस्पिटल खोल रहे हैं।*

*🔰हम किस दया में जी रहे हैं ? अपने इतिहास पर गौरव करने की बदले में हम अपने इतिहास को भूलते जा रहे हैं। हम अपनी महिमा को भूलते जा रहे हैं।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

कुछ लोगों को उसी की इज्जत करने और चरण चाटने में मजा आता है जो उसको बेइज्जत करे,...

अब नया लेटेस्ट उदाहरण देखे तो बाबा रामदेव के किसी प्रोडक्ट से फायदा हुआ या नहीं, इसका विश्लेषण करने वाले ढेरो हरामखोर मिलेंगे पर फेयर एण्ड लवली से कितने लोग गोरे हो सके इस ओर कभी ध्यान ही नहीं गया।

मोदी की किसी स्कीम से कितना फायदा हुआ या नहीं हुआ इसके बड़े बड़े एक्सपर्ट पैदा हो चुके हैं,, कागी कितना लूटे कितना दुत्कारे कितना तुष्टीकरण करते रहे.... और तो और जो कानून तैयार करने वाले थे कि दंगा कहीं भी किसी के द्वारा भी हो दोषी हिदू ही माना जाएगा, इस बात से हिदू को कोई मतलब नहीं,,

जियो के द्वारा अंबानी लूट मचा रहा है ये हरामखोरों के मुह से मैंने सुना है इसी सोशल मीडिया, पर जिसे चलाने के लिए नेट की जरूरत पड़ती है और इसी नेट को जियो के आने से पहले दोगलों की औकात नहीं थी, पर तब कभी ध्यान नहीं गया हरामखोरो और हरामजादो का कि 200 ₹ मे 1GB 2G नेट मिलता था 1 माह के लिए, और काल रेट्स क्या होते थे?? सर्कल चलता था पहले कि एमपी की सिम है तो यपी की है तो फिर रोमिग लगेगा, मैसेज इतने का होगा तो दीवाली पे मैसेज का ये रेट लगेगा, तो होली पे मैसेज का ये रेट चलेगा...शुरू मे तो जियो ने 1 साल फ्री चलवाया फिर 100रु लेना शुरू करने पर हरामखोर विद्वानों ने विश्लेषण किया कि जियो ने इतने ग्राहक कर लिए है अब 100 रु लेकर इसकी कमाई अरबो रू हो रही है...


असल बात ये है कि कुत्तों को घी हजम नहीं होता।।



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यतो धर्मस्ततो जयः।

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🔺 *श्रीगुरु ग्रन्थ साहिब के अंग 988 में भगवान एवं उनके श्रीधाम की स्तुति :-*

🔺 *धन धन मेघा रोमावली धन धन कृष्ण ओढ़े काम्बली,*

🔺 *धन धन तू माता देवकी जिह गृह रमाया कमलापति,*

🔺 *धन धन वन खण्ड वृंदावना जह खेले श्री नारायणा,*

🔺 *बेन बजावे गौधन चरे नामे का स्वामी आनन्द करे।।*

🔺 *धन्य है वह मेढ़ (भेड़) के ऊन से बनी कम्बली (चद्दर) जिसे कृष्ण अपने ऊपर ओढ़ते हैं,*

🔺 *धन्य धन्य है माता देवकी, जिसके गृह सुन्दर कमलापति (भगवान कृष्ण) प्रकट हुए,*

🔺 *धन्य धन्य है महावन का वह खण्ड, वह वृन्दावन, जहां स्वयं श्रीनारायण (बालकृष्ण रूप) खेलते हैं,*

🔺 *नामदेव के यह स्वामी बांसुरी बजाते हुए गायों को चराते हुए आनन्द करते हुए सभी को आनन्द प्रदान कर रहे हैं !!*

⭕ *हमने कभी उन्हें अपने से अलग नहीं समझा। जहां हमारे आराध्य भगवान राम, कृष्ण एवं हरि का भजन होता हो, वह हमारे पराये हो ही नहीं सकते। अब वे कुछ लोग इस बात को समर्थन ना दें तो इसमें क्या ही किया जा सकता है। 'भाव कुभाव अनख आलसहुँ। नाम जपत मंगल दिसि दसहुँ।।' श्रीरामचरितमानस कि इस चौपाई से स्पष्ट हो जाता है कि भगवान को चाहे प्रेम से या बिना भाव से, आलस्य से या क्रोध से भी स्मरण कर लिया जाये, तो भी उन सर्वज्ञ परमात्मा का नाम मंगल ही करता है। फिर चाहे भजने वाले का भाव कैसा भी हो। नारायण इस बात को समझने की सामर्थ्य सबको दें।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

*◼️देश में फूट डालने वाला “आर्य और द्रविड़ का घोटाला” विदेशियों का आविष्कार है◼️*


🔺विदेशी इतिहासकारों एवं विद्वानों द्वारा भारतीय साहित्य के साथ जो भ्रष्टाचार होता रहा है उसके विरुद्ध आर्य समाज ने अपनी आवाज सदा बुलन्द की है एवं भारतीय साहित्य के यथार्थ रूप को हमारे सन्मुख प्रस्तुत करके पुनः हमें अपने गौरव की स्मृति करायी है। भारतीय साहित्य के साथ इस भ्रष्टाचार का एक उदाहरण एवं उसका प्रत्याख्यान आर्य समाज के धुरीण विद्वान् द्वारा प्रस्तुत है । -समीक्षक]

🔺 भारत में फूट के लिए सबसे अधिक उत्तरदाता विदेशी शासन था, यद्यपि यह भी एक गोरखधन्धा है कि एकता के लिए भी सबसे अधिक उत्तरदाता विदेशी शासन था।
हमारी फूट के कारण विदेशी शासन हम पर आ धमका। देश के जागरूक नेताओं की बुद्धिमत्ता से एकता की आग प्रज्ज्वलित हुई। विदेशी शासक आग में ईधन, विदेशी अत्याचार घी का काम देते रहे। अन्त में विदेशी शासकों को भस्म होने से पूर्व ही भागना पड़ा। परन्तु अब विदेशी फूट डालने वालों का स्थान स्वदेशी स्वार्थियों ने ले लिया ।
हिन्दी के परम समर्थक तथा कम्युनिस्टों के परम शत्रु राज गोपालाचारी,अंग्रेजी के गिरते हुए दासतामय भवन के सबसे बड़े स्तम्भ बन गये ।
जो प्रोफेसर अंग्रेजी इतिहासकारों के आसनों पर आसीन हुये वही ‘आर्य' तथा 'द्रविड़' शब्दों के अनर्गल अर्थों के प्रयोग को भारत की छोटी से छोटी पाठशाला तक पहुंचाने में सबसे बड़े सहायक बन गये।
मैं दोनों भुजा उठाकर इस अनर्थ के विरुद्ध शंखनाद करना चाहता हूँ । मेरा कहना है कि सारे संस्कृत साहित्य में एक पंक्ति भी ऐसी नहीं जिससे आर्य नाम की नस्ल (Race) का अर्थ निकलता हों । इस शब्द का सम्बन्ध ▪️(१) या तो चरित्र से है ▪️(२) या भाषा से ▪️(३) या उस भाषा को बोलने वाले लोगों से ▪️(४) या उस देश से जहाँ इस प्रकार के चरित्र और भाषा वाले मनुष्य बसते हैं इसलिए किसी गोरे रंग वाली अथवा लम्बी नाक वाली जाति से इस शब्द का कोई दूर का भी सम्बन्ध नहीं है इसी प्रकार द्रविड़ शब्द ब्राह्मणों के दश कुलों में से पांच कुलों में होता है जिनमें शंकराचार्य जैसे ब्राह्मण पैदा हुए ।
अथवा मनुस्मृति के उपलभ्यमान संस्करण के अनुसार द्रविड उन क्षत्रिय जातियों में से एक है जो *🔥‘आचारस्य वर्जनात् अथवा ब्राह्मणनामदर्शनात् वृषलत्स्वम् गताः।'* क्षत्रियोचित आचार छोड़ देने तथा ब्राह्मणों के साथ सम्पर्क नष्ट हो जाने के कारण शूद्र कहलाये । किन्तु काले रंग तथा चिपटी नाक का द्रविड़ शब्द से कोई दूर का भी सम्बन्ध नहीं ।
*◼️आर्य और द्रविड़ शब्द पश्चिम की दृष्टि में*
मैकडानल की वैदिक रीडर में जो कि आज भारत के सभी विश्वविद्यालयों तथा महाविद्यालयों में पढ़ाई जाती है लिखा है :
"The historical data of the hymuns show that the Indo-Aryans were still engaged in war with the aborigi nes, many victories over these forces being mentioned. that they were still moving forward as conquerors is in dicated by references to reverse as obstacles to ad vances to."
"They were conscious of religious and racial unity, contrasting the aborigines with themselves by calling them non-sacrificers, and unbelievers as well as black skin's and the Das's colour' as opposed to the Aryan colours.
‘ऋग्वेद की ऋचाओं से प्राप्त ऐतिहासिक सामग्री यह दिखाती है कि इण्डो-आर्यन् लोग सिन्धु पार करके फिर भी भारत के आदिवासियों के साथ युद्ध में लगे हुये थे इन शत्रुओं पर उनकी कई विजयों का ऋग्वेद में वर्णन है अभी भी विजेता के दल आगे बढ़ रहे थे। यह इस बात से सूचित होता है कि वे कई स्थानों पर नदियों का अपने अभि प्रयाण के मार्ग में बाधा के रूप में वर्णन करते हैं ।’
“उन्हें यह अनुभव था कि उनमें जातिगत तथा धार्मिक एकता है। वे आदिवासियों को अपनी तुलना में यज्ञ हीन, विश्वास हीन, काली चमड़ी वाले, दास रंग वाले तथा अपने आपको आर्य रंग वाले कहते है”
यह सारा का सारा ही आद्योपान्त अनर्गल प्रलाप है । सारे ऋग्वेद में कोई मनुष्य एक शब्द भी ऐसा दिखा सकता है क्या जिससे यह सिद्ध होता है कि काली चमड़ी वाले आदिवासी थे और आर्य रङ्ग वाले किसी और देश के निवासी थे।
प्रथम तो वेद में काली चमड़ी वाले (कृष्णत्वचः) यह शब्द ही कहीं उपलब्ध नहीं और ना ही कहीं गौरवचः ऐसा शब्द है ।
हाँ, ‘दास वर्णम्' ‘आर्य वर्णम्' यह दो शब्द हैं जिनकी दुगति करके काले-गोरे दो दल कल्पना किये गए है । हलाँकि चारों वेदों में विशेष कर ऋग्वेद में कोई एक पंक्ति भी ऐसी नहीं है जिससे यह सिद्ध होता हो कि ‘आर्य वर्णम्' इस देश में बाहर से आए, और ‘दास वर्णम्' यहां के मूल निवासी (Aborigines) थे ।

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यतो धर्मस्ततो जयः।

दाहिर राजा एवं उनके परिवारजनों का बलिदान

भारत के इतिहास में ऐसे अनेकों वीर/वीरांगना हुए हैं जिन्होंने मातृभूमि की रक्षा करते हुए अदम्य साहस का परिचय दिया है। और जब बात बलिदानी परिवार की होगी तो इसमें सिंध के राजा दाहिर सेन एवं उनके स्वजनों के बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता है। लेकिन इतिहासकारों ने ऐसा छल किया है कि राजा दाहिर सेन एवं उनके परिवार का इतिहास भुला दिया गया है। दाहिर सेन के बारे में बहुत खोजबीन करने के बाद हमें जो जानकारी प्राप्त हुई है उसे हम आप सभी के साथ साझा कर रहे हैं। आइए पढ़ते हैं बलिदानी राजा एवं उनके परिवार की गाथा।

● कौन थे राजा दाहिर सेन

इतिहासकारों ने राजा दाहिर के जन्म से लेकर राजा बनने तक के विषय में कुछ भी नहीं लिखा है। किंतु कुछ अवशेषों से ज्ञात होता है कि राजा दाहिर का जन्म 630 ईसवी में सिंध प्रांत (जो उस समय भारत भूमि का हिस्सा था।) में हुआ था। 663 में उन्हें सत्ता मिलने से पहले उनके भाई चन्द्रसेन सिंध के राजा थे।

राजा चन्द्रसेन बौद्ध अनुयायी थे जिन्होंने अपने शासनकाल में बौद्ध धर्म का बढ़चढ़कर प्रसार-प्रचार किया। राजा दाहिर सिंध के सिंधी सेन राजवंश के अंतिम राजा थे। उनके समय में ही अरबों ने सर्वप्रथम सन ७१२ में भारत (सिंध) पर आक्रमण किया था। मोहम्मद बिन कासिम ने 712 में सिंध पर आक्रमण किया था जहां पर राजा दहिर सैन ने उन्हें रोका और उसके साथ युद्ध लड़ा। राजा दाहिर सेन का शासनकाल 663 से 712 ईसवी तक रहा उन्होंने अपने शासनकाल में अपने सिंध प्रांत को बहुत ही मजबूत बनाया परंतु अपने राष्ट्र और देश की रक्षा के लिए उन्होंने उम्मेद शासन के जनरल मोहम्मद बिन कासिम से लड़ाई लड़ी और हार गए। 712 ईसवी में सिंधु नदी के किनारे उनकी मौत हो गयी।

● मोहम्मद बिन कासिम का सिंध पर आक्रमण

जिस समय राजा दाहिर राजा बने उन दिनों ईरान में धर्मगुरु खलीफा का शासन था। हजाज उनका मंत्री था। खलीफा के पूर्वजों ने सिंध फतह करने के मंसूबे बनाए थे, लेकिन अब तक उन्हें कोई सफलता नहीं मिली थी। अरब व्यापारी ने खलीफा के सामने उपस्थित होकर सिंध में हुई घटना को लूटपाट की घटना बताकर सहानुभूति प्राप्त करनी चाही। खलीफा स्वयं सिंध पर आक्रमण करने का बहाना ढूंढ रहा था। उसे ऐसे ही अवसर की तलाश थी। उसने अब्दुल्ला नामक व्यक्ति के नेतृत्व में अरबी सैनिकों का दल सिंध विजय करने के लिए रवाना किया। युद्ध में अरब सेनापति अब्दुल्ला को जान से हाथ धोना पड़ा। खलीफा अपनी इस हार से तिलमिला उठा।

ख़लीफ़ा द्वारा दस हजार सैनिकों का एक दल ऊंट-घोड़ों के साथ सिंध पर आक्रमण करने के लिए भेजा गया। इससे पहले सिंध पर ईस्वी सन् 638 से 711 ई. तक के 74 वर्षों के काल में 9 खलीफाओं ने 15 बार आक्रमण किया या करवाया। 15 वें आक्रमण का नेतृत्व मोहम्मद बिन कासिम ने किया। सिंधी शूरवीरों ने सेना में भर्ती होने और मातृभूमि की रक्षा करने के लिए सर्वस्व अर्पण करने का आह्वान किया। कई नवयुवक सेना में भर्ती किए गए। सिंधु वीरों ने डटकर मुकाबला किया और कासिम को सोचने पर विवश कर दिया। सिंध की सेना ने इस प्रकार से लड़ा कि सूर्यास्त तक अरबी सेना हार के कगार पर खड़ी थी। सूर्यास्त के समय युद्धविराम हुआ। सभी सिंधुवीर अपने शिविरों में विश्राम हेतु चले गए। लेकिन ज्ञानबुद्ध और मोक्षवासव नामक दो लोगों ने राजा दाहिर के साथ विश्वासघात किया और कासिम की सेना का साथ दे दिया। इसके बाद कासिम की सेना द्वारा रात्रि में सिंधुवीरों के शिविर पर हमला बोल दिया गया। महाराज की वीरगति और अरबी सेना के अलोर की ओर बढ़ने के समाचार से रानी लाडी अचेत हो गईं। सिंधी वीरांगनाओं ने अरबी सेनाओं का स्वागत अलोर में तीरों और भालों की वर्षा के साथ किया। कई वीरांगनाओं ने अपने प्राण मातृभूमि की रक्षार्थ दे दिए। जब अरबी सेना के सामने सिंधी वीरांगनाएं टिक नहीं पाईं तो उन्होंने अपने सतीत्व की रक्षा के लिए जौहर कर लिया।

● राजा दाहिर की बेटियां और मोहम्मद बिन क़ासिम

राजा दाहिर की दोनों राजकुमारियां सूरजदेवी (सूर्यादेवी भी कहा जाता है) और परमाल देवी ने युद्ध क्षेत्र में घायल सैनिकों की सेवा की। लेकिन तभी उन्हें दुश्मनों ने पकड़कर कैद कर लिया। सेनानायक मोहम्मद बिन कासिम ने अपनी जीत की खुशी में दोनों राजकन्याओं को भेंट के रूप में खलीफा के पास भेज दिया। खलीफा दोनों राजकुमारियों की खूबसूरती पर मोहित हो गया और दोनों कन्याओं को अपने जनानखाने में शामिल करने का हुक्म दिया, लेकिन राजकुमारियों ने अपनी चतुराई से कासिम को सजा दिलाई। लेकिन जब राजकुमारियों के इस धोखे का पता चला ‍तो खलीफा ने दोनों का कत्ल करने का आदेश दिया। तभी दोनों राजकुमारियों ने खंजर निकाला और कहा, एक क्रूर के तलवार से मरने से अच्छा है सिंध की इस रत्न से प्राण त्याग दिया जाए। और इसके बाद दोनों राजकुमारियों ने एक दूसरे के पेट में खंजर घोंप दिया। और इस तरह सिंध के अंतिम

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यतो धर्मस्ततो जयः।

Photo from Kunal Saxena

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यतो धर्मस्ततो जयः।

अकबर के नौरत्नों से इतिहास भर दिया पर
महाराजा विक्रमादित्य के नवरत्नों की कोई चर्चा पाठ्यपुस्तकों में नहीं है !
जबकि सत्य यह है कि अकबर को महान सिद्ध करने के लिए महाराजा विक्रमादित्य की नकल करके कुछ धूर्तों ने इतिहास में लिख दिया कि अकबर के भी नौ रत्न थे ।

राजा विक्रमादित्य के नवरत्नों को जानने का प्रयास करते हैं ...

राजा विक्रमादित्य के दरबार के नवरत्नों के विषय में बहुत कुछ पढ़ा-देखा जाता है। लेकिन बहुत ही कम लोग ये जानते हैं कि आखिर ये नवरत्न थे कौन-कौन।

राजा विक्रमादित्य के दरबार में मौजूद नवरत्नों में उच्च कोटि के कवि, विद्वान, गायक और गणित के प्रकांड पंडित शामिल थे, जिनकी योग्यता का डंका देश-विदेश में बजता था। चलिए जानते हैं कौन थे।

ये हैं नवरत्न –

1–धन्वन्तरि-
नवरत्नों में इनका स्थान गिनाया गया है। इनके रचित नौ ग्रंथ पाये जाते हैं। वे सभी आयुर्वेद चिकित्सा शास्त्र से सम्बन्धित हैं। चिकित्सा में ये बड़े सिद्धहस्त थे। आज भी किसी वैद्य की प्रशंसा करनी हो तो उसकी ‘धन्वन्तरि’ से उपमा दी जाती है।

2–क्षपणक-
जैसा कि इनके नाम से प्रतीत होता है, ये बौद्ध संन्यासी थे।
इससे एक बात यह भी सिद्ध होती है कि प्राचीन काल में मन्त्रित्व आजीविका का साधन नहीं था अपितु जनकल्याण की भावना से मन्त्रिपरिषद का गठन किया जाता था। यही कारण है कि संन्यासी भी मन्त्रिमण्डल के सदस्य होते थे।
इन्होंने कुछ ग्रंथ लिखे जिनमें ‘भिक्षाटन’ और ‘नानार्थकोश’ ही उपलब्ध बताये जाते हैं।

3–अमरसिंह-
ये प्रकाण्ड विद्वान थे। बोध-गया के वर्तमान बुद्ध-मन्दिर से प्राप्य एक शिलालेख के आधार पर इनको उस मन्दिर का निर्माता कहा जाता है। उनके अनेक ग्रन्थों में एक मात्र ‘अमरकोश’ ग्रन्थ ऐसा है कि उसके आधार पर उनका यश अखण्ड है। संस्कृतज्ञों में एक उक्ति चरितार्थ है जिसका अर्थ है ‘अष्टाध्यायी’ पण्डितों की माता है और ‘अमरकोश’ पण्डितों का पिता। अर्थात् यदि कोई इन दोनों ग्रंथों को पढ़ ले तो वह महान् पण्डित बन जाता है।

4–शंकु –
इनका पूरा नाम ‘शङ्कुक’ है। इनका एक ही काव्य-ग्रन्थ ‘भुवनाभ्युदयम्’ बहुत प्रसिद्ध रहा है। किन्तु आज वह भी पुरातत्व का विषय बना हुआ है। इनको संस्कृत का प्रकाण्ड विद्वान् माना गया है।

5–वेतालभट्ट –
विक्रम और वेताल की कहानी जगतप्रसिद्ध है। ‘वेताल पंचविंशति’ के रचयिता यही थे, किन्तु कहीं भी इनका नाम देखने सुनने को अब नहीं मिलता। ‘वेताल-पच्चीसी’ से ही यह सिद्ध होता है कि सम्राट विक्रम के वर्चस्व से वेतालभट्ट कितने प्रभावित थे। यही इनकी एक मात्र रचना उपलब्ध है।

6–घटखर्पर –
जो संस्कृत जानते हैं वे समझ सकते हैं कि ‘घटखर्पर’ किसी व्यक्ति का नाम नहीं हो सकता। इनका भी वास्तविक नाम यह नहीं है। मान्यता है कि इनकी प्रतिज्ञा थी कि जो कवि अनुप्रास और यमक में इनको पराजित कर देगा उनके यहां वे फूटे घड़े से पानी भरेंगे। बस तब से ही इनका नाम ‘घटखर्पर’ प्रसिद्ध हो गया और वास्तविक नाम लुप्त हो गया।

इनकी रचना का नाम भी ‘घटखर्पर काव्यम्’ ही है। यमक और अनुप्रास का वह अनुपमेय ग्रन्थ है।
इनका एक अन्य ग्रन्थ ‘नीतिसार’ के नाम से भी प्राप्त होता है।

7–कालिदास –
ऐसा माना जाता है कि कालिदास सम्राट विक्रमादित्य के प्राणप्रिय कवि थे। उन्होंने भी अपने ग्रन्थों में विक्रम के व्यक्तित्व का उज्जवल स्वरूप निरूपित किया है। कालिदास की कथा विचित्र है। कहा जाता है कि उनको देवी ‘काली’ की कृपा से विद्या प्राप्त हुई थी। इसीलिए इनका नाम ‘कालिदास’ पड़ गया। संस्कृत व्याकरण की दृष्टि से यह कालीदास होना चाहिए था किन्तु अपवाद रूप में कालिदास की प्रतिभा को देखकर इसमें उसी प्रकार परिवर्तन नहीं किया गया जिस प्रकार कि ‘विश्वामित्र’ को उसी रूप में रखा गया।

जो हो, कालिदास की विद्वता और काव्य प्रतिभा के विषय में अब दो मत नहीं है। वे न केवल अपने समय के अप्रितम साहित्यकार थे अपितु आज तक भी कोई उन जैसा अप्रितम साहित्यकार उत्पन्न नहीं हुआ है। उनके चार काव्य और तीन नाटक प्रसिद्ध हैं। शकुन्तला उनकी अन्यतम कृति मानी जाती है।

8–वराहमिहिर –
भारतीय ज्योतिष-शास्त्र इनसे गौरवास्पद हो गया है। इन्होंने अनेक ग्रन्थों का प्रणयन किया है। इनमें-‘बृहज्जातक‘, सुर्यसिद्धांत, ‘बृहस्पति संहिता’, ‘पंचसिद्धान्ती’ मुख्य हैं। गणक तरंगिणी’, ‘लघु-जातक’, ‘समास संहिता’, ‘विवाह पटल’, ‘योग यात्रा’, आदि-आदि का भी इनके नाम से उल्लेख पाया जाता है।

9–वररुचि-
कालिदास की भांति ही वररुचि भी अन्यतम काव्यकर्ताओं में गिने जाते हैं। ‘सदुक्तिकर्णामृत’, ‘सुभाषितावलि’ तथा ‘शार्ङ्धर संहिता’, इनकी रचनाओं में गिनी जाती हैं।
इनके नाम पर मतभेद है। क्योंकि इस नाम के तीन व्यक्ति हुए हैं उनमें से-
1.पाणिनीय व्याकरण के वार्तिककार-वररुचि कात्यायन,
2.‘प्राकृत प्रकाश के प्रणेता-वररुचि
3.सूक्ति ग्रन्थों में प्राप्त कवि-वररुच
जय सत्य सनातन

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यतो धर्मस्ततो जयः।

🛑 *धर्म बदलकर मुस्लिम लडके से शादी करने वाली लड़की ने पति-ससुर पर लगाया रेप का आरोप*🛑

🔊 पीड़िता लड़की ने अपने पति पर आरोप लगाया है कि जब वो नाबालिग थी और स्कूल में पढ़ती थी, तब उसकी दोस्ती सोहेल से हुई थी, इस दौरान सोहेल ने उसके साथ नशीला पदार्थ पिलाकर रेप किया था, शादी के बाद ससुर ने उसके साथ रेप किया और सास उसको वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर कर रही थी.

🔊दिल्ली के रोहिणी इलाके में धर्म बदलकर मुस्लिम लड़के से कोर्ट मैरिज करने वाली लड़की ने अपने पति, ससुर और सास पर सनसनीखेज आरोप लगाए है. इस मामले में पुलिस ने अमन विहार थाने में केस दर्ज कर लिया है और पति के साथ ससुर को गिरफ्तार कर लिया गया है. पुलिस का कहना है कि ये लव जिहाद का मामला नहीं है.

🔊डीसीपी रोहिणी पीके मिश्रा के मुताबिक, लड़की और लड़के की दोस्ती स्कूल टाइम से ही थी. दोनों एक दूसरे को 3 साल से जानते थे. 3 महीने पहले ही लड़की और लड़का सोहेल दोनों ने शादी की थी. तीस हजारी कोर्ट से कोर्ट मैरिज की गई थी.

🔊तीन महीने बाद 18 साल की इस लड़की ने ससुर शफीक अहमद पर रेप का आरोप लगाया है. साथ ही पति पर भी आरोप लगाया कि जब वो 17 साल की थी और एक पार्टी में गई थी तब सोहेल ने नशीला पदार्थ पिलाकर उसके साथ रेप किया था.

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यतो धर्मस्ततो जयः।

ब्रिटेन में #कोट अन्तयपद वाले कई नाम जी , जैसे चार्लकोट, हीथकोट, नार्थकोट । यह नाम भारत के सिद्धकोट, अमरकोट, राजकोट आदि नामो से मिलाइए ... Kingscoat नाम तो ठेठ भारतीय नाम सिंहकोट है ।।

पत्थर का कोट जैसे नगर की रक्षा करता है ( ठंड वर्षा आदि से ) वैसे ही वस्त्र का बना कोट शरीर की रक्षा करता है, इसी कारण हम #कोट_पेंट कहते तो है ...

#भगवान_शंकर_के_नाम_पर_ब्रिटेन_में_नगर

आंग्लभूमि उर्फ इंग्लैंड में जितने नामो के आगे #शायर आता है, यहां कभी भगवान शंकर महादेव के मंदिर हुआ करते थे। जैसे वारविकशायर , डर्बीशायर, मन्मथशायर

भारत मे जहां जहां शिवजी के मंदिर है -- उन बस्तियों के नाम रामेश्वर , संगमेश्वर, ओंकारेश्वर, महाबलेश्वर आदि है । उसी ईश्वर उच्चार का आंग्ल अपभ्रंश " शायर " हो गया ..

यह मेने ब्रिटेन के उदाहरण से स्पष्ठ किया कि यहां पहले वैदिक संस्कृति ही थी । जर्मन के लोग भी खुद को दैत्य मानते है । हालेंड के लोगो का दैत्य होने का प्रमाण दिया

उसके नाद अगर हम यूरोप से बाहर निकलकर आते है, तब भी दैत्यस्थान ओर दैत्यजाती का अस्तित्व हर जगह पाते है ...

दैत्यों के पिता थे कश्यप ऋषि .... रूस की सीमा को छूता हुआ जो समुद्र है, उसका नाम है Caspian ( कैस्पियन उर्फ कश्यप) सागर ।। कश्यप सागर का वर्णन बार बार हम पुराणों में पढ़ते ही है । यह कश्यप सागर वही कैस्पियन सागर है ....

ग्रीस नाम जी आप देख ले .... यह भगवाम शिव के नाम गिरीश पर पड़ा है ...

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यतो धर्मस्ततो जयः।

कई बार लोग ज्यादा स्मार्ट दिखने के चक्कर में अपनी फजीहत कराते हैं। जब संदर्भ का ज्ञान न हो, तो व्यक्ति को फोटो पर ‘योर कोट्स’ टाइप की बातें लिख कर लहरिया लूट लेना चाहिए, क्योंकि ज्योंहि आप उससे बाहर टाँग फैलाते हैं, आपकी ज्ञानरूपी चादर के पतले होने के कारण छेद दिखने लगता है। जाहिर है कि स्वामी जी ने यह बात किसी खास संदर्भ में कही होगी क्योंकि अगर यह वाक्य संदर्भहीन होता तो विवेकानंद का नाम पेले और मैराडोना के साथ लिया जाता, न कि सनातन दर्शन के स्वर्णिम स्तम्भ के रूप में।


क्या था स्वामी विवेकानंद का ‘गीता के बजाय फुटबॉल’ से आशय



क्या वास्तव में स्वामी विवेकानंद के ‘गीता के बजाय फुटबॉल’ वाले कथन का अर्थ वही है, जैसा कि कुछ लोग अपनी कुटिलता के जरिए साबित करने का प्रयास करते हैं? इसके लिए उस किस्से को समझना बेहद जरुरी है, जहाँ से स्वामी विवेकानंद के गीता को लेकर दिए गए इस बयान की शुरुआत हुई।

वास्तव में, यह बांग्ला भाषा में गीता के गेय पदों का काव्य रूपांतरण करने वाले आचार्य सत्येन्द्र बनर्जी थे, जिन्होंने बचपन में स्वामी विवेकानंद से गीता पढ़ने की इच्छा व्यक्त की थी। इस पर स्वामी जी ने उनसे कहा था कि उन्हें पहले 6 माह तक फुटबॉल खेलना होगा, निर्धनों और असहायों की मदद करनी होगी तभी वो उनसे गीता पाठ की बात रखने के लायक होंगे।

इस पर जब बालक ने स्वामी विवेकानंद से पूछा कि गीता तो एक धार्मिक ग्रंथ है, फिर इसके ज्ञान के लिए फुटबॉल खेलना क्यों जरुरी है? इस पर स्वामी जी ने अपने जवाब में कहा, “गीता वीरजनों और त्यागी व्यक्तियों का महाग्रंथ है। इसलिए जो वीरत्व और सेवाभाव से भरा होगा, वही गीता के गूढ़ श्लोकों का रहस्य समझ पाएगा।”

06 माह तक स्वामी जी के बताए तरीकों का अनुसरण करने के बाद जब बालक वापस स्वामी के पास लौटे, तो स्वामी विवेकानंद ने उन्हें गीता का ज्ञान दिया। विवेकानंद के फुटबॉल खेलने का असल मायनों में यही मतलब रहा होगा कि स्थूल शरीर प्रखर विचारों का जनक नहीं हो सकता।
यदि हम अपने आस-पास की दिनचर्या को ही देखें तो सोशल मीडिया इस्तेमाल करने से लेकर टेलीविजन, नेटफ्लिक्स, हॉटस्टार आदि देखने तक, कुछ पढ़ने से लेकर कहीं घूमने तक, अक्सर हम लोग मात्र एक दर्शक की तरह ही जीते हैं। हम असलियत में किसी भी चीज का हिस्सा नहीं होते। जिन पुस्तकों को हम पढ़ रहे होते हैं, हम वह किरदार नहीं होते, ना ही टीवी पर क्रिकेट देखते समय हम वो खिलाड़ी होते हैं। कुल मिलकर हम ‘मैदान’ से नदारद ही रहते हैं।

स्वामी विवेकानंद ने भी यही कहा था। असल में विवेकानंद का यह कथन उन्हीं की पुस्तक ‘कोलंबो से अल्मोड़ा तक व्याख्यान’ (Lectures from Colombo to Almora) का एक हिस्सा है।

स्वामी जी के शब्दों में,
“हम कई चीजों की बात तोते की तरह करते हैं, लेकिन उन्हें कभी नहीं करते; बोलना और न करना हमारी आदत बन गई है। उसका कारण क्या है? शारीरिक कमजोरी। इस तरह का कमजोर मस्तिष्क कुछ भी करने में सक्षम नहीं है; हमें इसे मजबूत करना चाहिए। सबसे पहले, हमारे युवा मजबूत होने चाहिए। धर्म बाद में आएगा। मजबूत बनो, मेरे युवा मित्र; मेरी आपको यही सलाह है। गीता के अध्ययन की तुलना में आप फुटबॉल के माध्यम से स्वर्ग के नजदीक होंगे। ये साहसी शब्द हैं; लेकिन मुझे उनसे कहना है, क्योंकि मैं तुमसे प्यार करता हूँ। मैं जानता हूँ कि जूता कहाँ पर चुभता है। मुझे थोड़ा अनुभव हुआ है। आप अपने बाइसेप्स, अपनी मसल्स को थोड़ा मजबूत करके गीता को बेहतर समझेंगे। आप अपने अंदर थोड़े से मजबूत रक्त से कृष्ण की महान प्रतिभा और कृष्ण की ताकत को बेहतर समझ सकेंगे। आप उपनिषदों को बेहतर समझेंगे, जब आपका शरीर आपके पैरों पर दृढ़ होता है, और आप अपने आप को पुरुष के रूप में महसूस करते हैं। इस प्रकार हमें अपनी आवश्यकताओं के लिए इन्हें लागू करना होगा।”

@bharat7773


क्या स्वामी विवेकानंद ने गीता फेंक कर फुटबॉल खेलने की बात कही थी?
http://hindi.opindia.com/miscellaneous/indology/gita-football-heaven-swami-vivekananda/

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यतो धर्मस्ततो जयः।

💠 *भारतीय कोरोना वैक्सीन के बक्सों पर सनातन धर्म के वृहदारण्यक उपनिषद् का श्लोक लिखा गया है "सर्वे सन्तु निरामया" यानी सभी स्वस्थ रहें*

💠 *अब वह चाहे तो यह मांग कर सकते हैं कि हमारे भी मजहबी की किताब के वाक्य भी लिखे जाएं*

*जैसे*

💠 *औरतें जहन्नुम में जाएंगी*
*औरते तुम्हारी खेती है*
*काफिरों को मारो*
*इस धरती को इस्लाममय बना दो सभी मूर्तियों को तोड़ दो*
*अपने राज्य के अधीन रहने वालों से जजिया कर वसूलो*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

*⚜️उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी की पुलिस अपराध के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम करती है। यही बात पंजाब सरकार अच्छे से जानती है इसलिए मुख्तार को यूपी पुलिस को नहीं सौंप रही।*
*#मुख्तार_पर_मेहरबान_प्रियंका*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

👺 *एक छोटे से राज्य से 1-2 लाख की भीड़ को भृमित कर लाने वाले नक्सली/वामपंथी संगठनों जिनकी भारतीय किसान यूनियन है, बड़े आढ़तियों/बिचोलियों, खालिस्तानीयो और कांग्रेस जैसी पार्टियों करके*
*अन्य 28 राज्य का किसान क्यों भुगते? जो इस कानून से खुश थे, जिनकी आमदनी बढ़ती।*

👺 *कोर्ट को अब जल्द ही वास्तविकता समझ जानी चाहिए और सरकार को अब अपनी शक्ति दिखा इन्हें अब लाइन पर लाना चाहिए।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

👺 *जो पहले से ही 6 महीने का राशन लेकर चले है उनके मुखियाओं की मंशा क्या है ये आप समझ सकते है।*

👺 *26 जनवरी को अराजकता फैलाने की तैयारी चल रही है, जब राजपथ पर परेड होगी, तब ये अपनी ट्रैक्टर रैली निकालेंगे दिल्ली में।*

👺 *इस मामले में दिल्ली पुलिस ने याचिका डाली है कोर्ट में और कहा है कि आंदोलन के अधिकार का यह अर्थ है नही है कि विश्व के सामने भारत की छवि धूमिल करने का प्रयास करना।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

*🕉️वेदों जैसा कोई ग्रन्थ नहीं :-*
*वेदों के सामने अन्य मजहबी ग्रन्थ तुच्छ हैं।🕉️*

*⚜️ डार्विन नामक ईसाई ने कहा :- दूसरों के अनाज को खाकर जिओ।*

*⚜️हक्सले ने कहा :- जीओ और जीने दो।*

*♦️परंतु वैदिक साहित्य ने कहा :- सबको सुखी बनाने के लिए जीओ (सर्वे भवन्तु सुखिन)*

*⚜️बाइबिल ने कहा :- जिसका काम उसी के दाम।*

*⚜️कुरान ने कहा :- जहान खुदा का और जिहाद इंसान करे।*

*♦️किंतु वेदों ने कहा :- परिश्रम मनुष्य का संपत्ति भगवान की तेन त्येक्तेन भुञ्जीथाः*

*⚜️बाइबिल ने कहा :- इसाई बनो*

*⚜️कुरान ने कहा :- मुसलमान बनो*

*♦️किंतु वेदों ने कहा :- मनुष्य बन जाओ (मनुर्भव जनया दैव्यं जनम्)*

*⚜️ बाइबिल ने कहा :- पढाई नौकरी के लिए।*

*⚜️कुरान ने कहा :- पढ़ाई कुरान पढ़ने के लिए।*

*♦️किन्तु वेदों ने कहा :- पढ़ाई केवल नैतिकता, ज्ञान और नम्रता के लिए*

*⚜️अरस्तू ने कहा :- राजनीति शासन के लिए।*

*⚜️कुरान ने कहा :- शासन इस्लाम के प्रचार के लिए।*

*♦️किन्तु मेरे वेदों ने कहा :- राजनीति की अपेक्षा लोकनीति, शासन की अपेक्षा अनुशासन, तानाशाही की जगह संयम और अधिकार के स्थान पर कर्तव्य पालन करें।*

*⚜️मुस्लिम आतंकियों ने कहा :- परमाणु हथियार मिल जाएं तो काफिरो को मिटाने के लिए।*

*♦️किंतु वेदों ने कहा :- संपूर्ण विज्ञान ही जनकल्याण के लिए (यथेमां वाचं कल्याणीमदानी वा जनेभ्यः)*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

*सुंदरकांड में एक प्रसंग अवश्य पढ़ें !*

*“मैं न होता, तो क्या होता?”*

“अशोक वाटिका" में जिस समय रावण क्रोध में भरकर, तलवार लेकर, सीता माँ को मारने के लिए दौड़ पड़ा, तब हनुमान जी को लगा, कि इसकी तलवार छीन कर, इसका सर काट लेना चाहिये!

किन्तु, अगले ही क्षण, उन्हों ने देखा "मंदोदरी" ने रावण का हाथ पकड़ लिया !
यह देखकर वे गदगद हो गये! वे सोचने लगे, यदि मैं आगे बड़ता तो मुझे भ्रम हो जाता कि यदि मै न होता, तो सीता जी को कौन बचाता?

बहुधा हमको ऐसा ही भ्रम हो जाता है, मैं न होता, तो क्या होता ?
परन्तु ये क्या हुआ?
सीताजी को बचाने का कार्य प्रभु ने रावण की पत्नी को ही सौंप दिया! तब हनुमान जी समझ गये, कि प्रभु जिससे जो कार्य लेना चाहते हैं, वह उसी से लेते हैं!

आगे चलकर जब "त्रिजटा" ने कहा कि "लंका में बंदर आया हुआ है, और वह लंका जलायेगा!" तो हनुमान जी बड़ी चिंता मे पड़ गये, कि प्रभु ने तो लंका जलाने के लिए कहा ही नहीं है, और त्रिजटा कह रही है कि उन्होंने स्वप्न में देखा है, एक वानर ने लंका जलाई है! अब उन्हें क्या करना चाहिए? *जो प्रभु इच्छा!*

जब रावण के सैनिक तलवार लेकर हनुमान जी को मारने के लिये दौड़े, तो हनुमान ने अपने को बचाने के लिए तनिक भी चेष्टा नहीं की, और जब "विभीषण" ने आकर कहा कि दूत को मारना अनीति है, तो हनुमान जी समझ गये कि मुझे बचाने के लिये प्रभु ने यह उपाय कर दिया है!

आश्चर्य की पराकाष्ठा तो तब हुई, जब रावण ने कहा कि बंदर को मारा नहीं जायेगा, पर पूंछ मे कपड़ा लपेट कर, घी डालकर, आग लगाई जाये, तो हनुमान जी सोचने लगे कि लंका वाली त्रिजटा की बात सच थी, वरना लंका को जलाने के लिए मै कहां से घी, तेल, कपड़ा लाता, और कहां आग ढूंढता? पर वह प्रबन्ध भी आपने रावण से करा दिया! जब आप रावण से भी अपना काम करा लेते हैं, तो मुझसे करा लेने में आश्चर्य की क्या बात है !

इसलिये *सदैव याद रखें,* कि *संसार में जो हो रहा है, वह सब ईश्वरीय विधान* है!
हम और आप तो केवल निमित्त मात्र हैं!
इसीलिये *कभी भी ये भ्रम न पालें* कि...
*मै न होता, तो क्या होता ?

#ना_में_श्रेष्ठ_हूँ,
#ना_ही_में_ख़ास_हूँ,
#मैं_तो_बस_छोटा_सा,
#श्रीराम_जी_को_पूजने_वाला
#उनका_दास_हूँ॥

#जय_श्री_राम 🚩🙏

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यतो धर्मस्ततो जयः।

🛕 *#कानपुर के महोबा में #श्री_राम_मंदिर_निधि_समर्पण_अभियान के अंतर्गत जन जागरण रैली आयोजित हुई.*.🚩🚩🚩

🛕 *#भगवामय वातावरण देख कर सुकून और गर्व की अनुभूति हो रही है.. आने वाले दिनों में ऐसा उत्साह और उत्सव का माहौल सम्पूर्ण देश में देखने मिलेगा.. तैयार हो जाइये.*.😍💪
*जय श्री राम।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तृतीय सरसंघचालक श्री बालासाहब देवरस ने अपने स्वास्थ्य कारणों से सरसंघचालक पद का त्याग कर, सरसंघचालक का दायित्व प्रो. रज्जू भैया को सौंप दिया था. इसी बीच उस समय के कम्युनिष्ट पत्रकार बिल्टिज साप्ताहिक के संम्पादक "रूसी करंजिया" "रज्जू भैया" से मिलने नागपुर पहुंचे.

कुछ समय उनकी रज्जू भैया से चर्चा हुई. तभी भोजन की घंटी बज गई. रज्जू भैया ने रूसी करंजिया से कहा चलो पहले भोजन कर लेते हैं. भोजन कक्ष में बिछी हुई टाटपट्टी पर वे बैठ गए. कुछ अन्य लोग भी उनके साथ बैठ गए. अचानक "रूसी करंजिया" ने रज्जू भैया के बगल में बैठे व्यक्ति से उसका परिचय पूछ लिया. उस व्यक्ति ने बताया कि - मैं माननीय रज्जू भैया का कार चालक हूँ. यह सुनते ही "रूसी करंजिया" चौक गए कि- इतने बड़े संगठन का मुखिया और उनका ड्राइवर एक साथ जमीन पर बैठकर एक जैसा भोजन कर रहे हैं. भोजन के उपरान्त रज्जू भैया ने "रूसी करंजिया" से कहा- पूँछिये , आप हमारे संगठन के बारे में क्या जानना चाहते हैं.

तब "रूसी करंजिया" ने बहुत ही श्रद्धापूर्वक रज्जू भैया से कहा - मेरी सारी भ्रांतियां दूर हो गईं है , अब मुझे आपके संगठन के बिषय में अब कुछ नहीं पूंछना है. यही एक ऐसा संगठन है जहाँ सरसंघचालक और कारचालक एक साथ टाटपट्टी पर बैठ कर भोजन कर सकते हैं.

उसके बाद रूसी करंजिया संघ के समर्थक बन गए...
आज प्रत्येक हिंदूवादी संगठनों को एक हो कर संघ को और मजबूत करना ही होगा । क्योंकि यह सभी सन्गठन नदियां हैं तो संघ उन नदियों का बड़ा समुद्र ।
हमने आपसे वादा किया था कि हम प्रत्येक सप्ताह संघ के बारे में कुछ बौद्धिक ज्ञान से परिचित करवाता रहूँगा । उसी क्रम में यह भी एक लघु लेकिन उपयोगी वर्णन था । संघ को समझने के लिए । जो लोग संघ से जुड़े हैं वह जरूर शेयर करें और जो लोग संघ से नही जुड़े हैं वह तो जरूर शेयर करें ताकि आम लोगो तक भी संघ के बारे में पता चल सके ।

धन्यवाद




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