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Telegram-канал bharat7773 - यतो धर्मस्ततो जयः।

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षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता ! निद्रा तद्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रता !! किसी व्यक्ति के बर्बाद होने के 6 लक्षण होते है – नींद, गुस्सा, भय, तन्द्रा, आलस्य और काम को टालने की आदत . @bharat7773 @dharm7773 @geet7773

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यतो धर्मस्ततो जयः।

राहुल पंडित:
🚩🔱

*प्रेम किया है पण्डित , संग कैसे छोड़ दूँगी ?*
_______________
जितनी बार भी पढ़ो ,, वही आनंद मिलता है।

*"पण्डितराज"*
.
सत्रहवीं शताब्दी का पूर्वार्ध था,
दूर दक्षिण में गोदावरी तट के एक छोटे राज्य की राज्यसभा में एक विद्वान ब्राह्मण सम्मान पाता था,
*नाम था जगन्नाथ शास्त्री।*
साहित्य के प्रकांड विद्वान, दर्शन के अद्भुत ज्ञाता।
इस छोटे से राज्य के महाराज चन्द्रदेव के लिए जगन्नाथ शास्त्री सबसे बड़े गर्व थे।
कारण यह, कि
*जगन्नाथ शास्त्री कभी किसी से शास्त्रार्थ में पराजित नहीं होते थे।*

दूर दूर के विद्वान आये और पराजित हो कर जगन्नाथ शास्त्री की विद्वत्ता का ध्वज लिए चले गए।

पण्डित जगन्नाथ शास्त्री की चर्चा धीरे-धीरे सम्पूर्ण भारत में होने लगी थी।
उस समय दिल्ली पर मुगल शासक शाहजहाँ का शासन था।
शाहजहाँ मुगल था, सो भारत की प्रत्येक सुन्दर वस्तु पर अपना अधिकार समझना उसे जन्म से सिखाया गया था।

पण्डित जगन्नाथ की चर्चा जब शाहजहाँ के कानों तक पहुँची तो जैसे उसके घमण्ड को चोट लगी।
*"मुगलों के युग में एक तुच्छ ब्राह्मण अपराजेय हो, यह कैसे सम्भव है?"*

शाह ने अपने दरबार के सबसे बड़े मौलवियों को बुलवाया
और जगन्नाथ शास्त्री तैलंग को शास्त्रार्थ में पराजित करने के आदेश के साथ
महाराज चन्द्रदेव के राज्य में भेजा।
*" जगन्नाथ को पराजित कर उसकी शिखा काट कर मेरे कदमों में डालो...."*

शाहजहाँ का यह आदेश उन चालीस मौलवियों के कानों में स्थायी रूप से बस गया था।

सप्ताह भर पश्चात
मौलवियों का दल महाराज चन्द्रदेव की राजसभा में पण्डित जगन्नाथ को शास्त्रार्थ की चुनौती दे रहा था।

गोदावरी तट का ब्राह्मण और अरबी मौलवियों के साथ शास्त्रार्थ,
पण्डित जगन्नाथ नें मुस्कुरा कर सहमति दे दी।

मौलवी दल ने अब अपनी शर्त रखी,
*"पराजित होने पर शिखा देनी होगी..."।*

पण्डित की मुस्कराहट और बढ़ गयी,
*"स्वीकार है, पर अब मेरी भी शर्त है। आप सब पराजित हुए तो मैं आपकी दाढ़ी उतरवा लूंगा।"*

मुगल दरबार में
"जहाँ पेंड़ न खूंट वहाँ रेंड़ परधान"
की भांति विद्वान कहलाने वाले मौलवी विजय निश्चित समझ रहे थे,
सो उन्हें इस शर्त पर कोई आपत्ति नहीं हुई।

शास्त्रार्थ क्या था; खेल था।

अरबों के पास इतनी
आध्यात्मिक पूँजी कहाँ जो वे भारत के समक्ष खड़े भी हो सकें।

*पण्डित जगन्नाथ विजयी हुए,*
मौलवी दल अपनी दाढ़ी दे कर दिल्ली वापस चला गया...✔️

दो माह बाद
महाराज चन्द्रदेव की राजसभा में दिल्ली दरबार का प्रतिनिधिमंडल याचक बन कर खड़ा था,
*"महाराज से निवेदन है कि हम उनकी राज्य सभा के सबसे अनमोल रत्न पण्डित जगन्नाथ शास्त्री तैलंग को दिल्ली की राजसभा में सम्मानित करना चाहते हैं,*
*यदि वे दिल्ली पर यह कृपा करते हैं तो हम सदैव आभारी रहेंगे"।*

मुगल सल्तनत ने प्रथम बार किसी से याचना की थी।
महाराज चन्द्रदेव अस्वीकार न कर सके।
पण्डित जगन्नाथ शास्त्री दिल्ली के हुए,
*शाहजहाँ नें उन्हें नया नाम दिया "पण्डितराज"।*

दिल्ली में शाहजहाँ उनकी अद्भुत काव्यकला का दीवाना था,
तो युवराज दारा शिकोह उनके दर्शन ज्ञान का भक्त।

*दारा शिकोह के जीवन पर सबसे अधिक प्रभाव पण्डितराज का ही रहा,*
*और यही कारण था ... कि मुगल वंश का होने के बाद भी दारा मनुष्य बन गया।*

*मुगल दरबार में अब पण्डितराज के अलंकृत संस्कृत छंद गूंजने लगे थे।*

उनकी काव्यशक्ति विरोधियों के मुह से भी वाह-वाह की ध्वनि निकलवा लेती।

यूँ ही एक दिन पण्डितराज के एक छंद से प्रभावित हो कर शाहजहाँ ने कहा
*- अहा! आज तो कुछ मांग ही लीजिये पंडितजी, आज आपको कुछ भी दे सकता हूँ।*

पण्डितराज ने आँख उठा कर देखा,
दरबार के कोने में एक हाथ माथे पर और दूसरा हाथ कमर पर रखे खड़ी एक अद्भुत सुंदरी पण्डितराज को एकटक निहार रही थी।

अद्भुत सौंदर्य, जैसे कालिदास की समस्त उपमाएं स्त्री रूप में खड़ी हो गयी हों।
पण्डितराज ने एक क्षण को उस रूपसी की आँखों मे देखा,
मस्तक पर त्रिपुंड लगाए
शिव की तरह विशाल काया वाला पण्डितराज
उसकी आँख की पुतलियों में झलक रहा था।

पण्डित ने मौन के स्वरों से ही पूछा- चलोगी?
लवंगी की पुतलियों ने उत्तर दिया
*- अविश्वास न करो पण्डित! प्रेम किया है....*

पण्डितराज जानते थे ...
*यह एक नर्तकी के गर्व से जन्मी शाहजहाँ की पुत्री 'लवंगी' थी।*

एक क्षण को पण्डित ने कुछ सोचा,
फिर ठसक के साथ मुस्कुरा कर कहा-

*न याचे गजालीम् न वा वजीराजम्*
*न वित्तेषु चित्तम् मदीयम् कदाचित्।*
*इयं सुस्तनी मस्तकन्यस्तकुम्भा,*
*लवंगी कुरंगी दृगंगी करोतु।।*

शाहजहाँ मुस्कुरा उठा!
कहा
*- लवंगी तुम्हारी हुई पण्डितराज।*

*यह भारतीय इतिहास की विरल घटना है .... जब किसी मुगल ने किसी हिन्दू को बेटी दी थी।*

लवंगी अब पण्डित राज की पत्नी थी।✔️
युग बीत रहा था।

पण्डितराज दारा शिकोह के गुरु और परम् मित्र के रूप में ख्यात थे।
समय की अ

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यतो धर्मस्ततो जयः।

*💠भारत का भाग्य बदलने वाले सबसे महत्वपूर्ण पानीपत के तीसरे युद्ध मे सिंह की तरह लड़े उन सभी वीरों... श्रीमंत सदाशिवराव भाऊ पेशवा (भाऊसाहेब),श्रीमंत विश्वासराव पेशवा, जनकोजी सिंधिया,महादजी सिंधिया,मल्हार राव* *होल्कर,बलवंतराव मेहेंदळे,संताजी वाघ,विट्ठलराव विंचुरकर, दमाजी गायकवाड़,नाना पुरंदरे, गार्दी,अन्ताजी मानकेश्वर,यशवंत पवार,शमशेर बहादुर, को रक्त बूँद श्रद्धांजली|*

💠 *आज के इस पावन दिन पर उन सभी हमारे वीरों की वीरता को नमन करते है जिन्होंने आखिरी सांस तक धर्म व राष्ट्र के लिए युद्ध लड़ा एवं बलिदान हुए।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

*_🕉️यश्चेमां वसुधां कृत्स्नां प्रशासेदखिलां नृपः ।_* *_तुल्याश्मकाञ्चनो यश्च स कृतार्थो न पार्थिवः ॥_*
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*🕉️अर्थात: कोई राजा सारी पृथ्वी पर शासन करता हो, वह कृतार्थ नहीं होता । कोई साधु, पत्थर और स्वर्ण को समान समझता है, वह कृतार्थ (संतुष्ट) है।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

*_🪁मकर सक्रांति का महत्व🪁_*
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*⚜️58 दिन बाणों की शैया पर रहने के बाद मकर संक्राति को भीष्म पितामह ने त्यागे थे प्राण, इच्छा मृत्यु का वरदान था प्राप्त उन्हें*

*⚔️18 दिनों तक चले महाभारत के युद्ध में 10 दिन तक लगातार भीष्म पितामह लड़े थे।*

*📜महर्षि वेदव्यास की महान रचना महाभारत ग्रंथ के प्रमुख पात्र भीष्म पितामह हैं जिनके बारे में कहा जाता है कि वे एकमात्र ऐसे पात्र है जो महाभारत में शुरूआत से अंत तक बने रहे। 18 दिनों तक चले महाभारत के युद्ध में 10 दिन तक लगातार भीष्म पितामह लड़े थे। पितामह भीष्म के युद्ध कौशल से व्याकुल पाण्डवों को स्वयं पितामह ने अपनी मृत्यु का उपाय बताया। भीष्म पितामह 58 दिनों तक बाणों की शैया पर रहे लेकिन अपना शरीर नहीं त्यागा क्योंकि वे चाहते थे कि जिस दिन सूर्य उत्तरायण होगा तभी वे अपने प्राणों का त्याग करेंगे।*

*⚜️1.भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान प्राप्त था इसलिए उन्होने स्वंय ही अपने प्राणों का सूर्य उत्तरायण यानी कि मकर संक्राति के दिन त्याग किया।*

*⚜️2.जिस समय महाभारत का युद्ध चला कहते हैं उस समय अर्जुन की उम्र 55 वर्ष, भगवान कृष्ण की उम्र 83 वर्ष और भीष्म पितामह की उम्र 150 वर्ष के लगभग थी।*

*⚜️3.भीष्म पितामह को इच्छा मृत्यु का वरदान स्वयं उनके पिता राजा शांतनु द्वारा दिया गया था क्योंकि अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए भीष्म पितामह ने अखंड ब्रह्मचार्य की प्रतिज्ञा ली थी।*

*⚜️4.कहते हैं कि भीष्म पितामह के पिता राजा शांतनु एक कन्या से विवाह करना चाहते थे जिसका नाम सत्यवती था। लेकिन सत्यवती के पिता ने राजा शांतनु से अपनी पुत्री का विवाह तभी करने की शर्त रखी जब सत्यवती के गर्भ से उत्पन्न शिशु को ही वे अपने राज्य का उत्तराधिकारी घोषित करेंगे।*

*⚜️5.राजा शांतनु इस बात को स्वीकार नही कर सकते थे क्योंकी कि उन्होंने तो पहले ही भीष्म पितामह को उत्तराधिकारी घोषत कर दिया था।*

*⚜️6.सत्यवती के पिता की बात अस्वीकार करने के बाद राजा शांतनु सत्यवती के वियोग में रहने लगे। भीष्म पितामह को अपने पिता की चिंता की जानकारी हुई तो उन्होने तुरंत अजीवन अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा ली।*

*⚜️7.भीष्म पितामह ने सत्यवती के पिता से उनका हाथ राजा शांतनु को देने को कहा और स्वयं के आजीवन अविवहित रहने का बात कही जिससे उनकी कोई संतान राज्य पर अपना हक ना जता सके।*

*⚜️8.इसके बाद भीष्म पितामह ने सत्यवती को अपने पिता राजा शांतनु को सौंपा। राजा शांतनु अपने पुत्र की पितृभक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हे इच्छा मृत्यु का वरदान दिया।*

*⚜️9.धार्मिक मान्यताओं के हिसाब से कहा जाता है कि भीष्म पितामह ने सूर्य उत्तरायण यानी कि मकर संक्राति के दिन 58 दिनों तक बाणों की शैया पर रहने के बाद अपने वरदान स्वरूप इच्छा मृत्यु प्राप्त की ।*

*⚜️10.सूर्य उत्तरायण के दिन मृत्यु को प्राप्त होने से व्यक्ति को मोक्ष की प्राप्ति होती है और इस दिन भगवान की पूजा का विशेष महत्व है।*

*♦️इस दिन गंगा स्नान का विशेष महत्व है, भीष्म पितामह भी गंगा पुत्र थे।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

*🚩मकर संक्रांति क्यों मनाई जाती है ? हमें क्या करना चाहिए उस दिन?*

*🚩हिन्दू संस्कृति अति प्राचीन संस्कृति है, उसमें अपने जीवन पर प्रभाव पड़ने वाले ग्रह, नक्षत्र के अनुसार ही वार, तिथि त्यौहार बनाये गये हैं । इसमें से एक है मकर संक्रांति..!! इस साल 15 जनवरी को मकर संक्रांति मनाई जायेगी ।*

*🚩सनातन हिंदू धर्म ने माह को दो भागों में बाँटा है- कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष । इसी तरह वर्ष को भी दो भागों में बाँट रखा है। पहला उत्तरायण और दूसरा दक्षिणायन। उक्त दो अयन को मिलाकर एक वर्ष होता है ।*

*🚩सूर्य के धनु से मकर राशि में प्रवेश को उत्तरायण माना जाता है । इस राशि परिवर्तन के समय को ही मकर संक्रांति कहते हैं । यही एकमात्र पर्व है जिसे समूचे भारत में मनाया जाता है, चाहें इसका नाम प्रत्येक प्रांत में अलग-अलग हो और इसे मनाने के तरीके भी भिन्न हो, किंतु यह बहुत ही महत्व का पर्व है ।*

*🚩इसी दिन से अलग-अलग राज्यों में गंगा नदी के किनारे माघ मेला या गंगा स्नान का आयोजन किया जाता है । कुंभ के पहले स्नान की शुरुआत भी इसी दिन से होती है ।*

*🚩सूर्य पर आधारित हिंदू धर्म में मकर संक्रांति का बहुत अधिक महत्व माना गया है । वेद और पुराणों में भी इस दिन का विशेष उल्लेख मिलता है । होली, दीपावली, दुर्गोत्सव, शिवरात्रि और अन्य कई त्यौहार जहाँ विशेष कथा पर आधारित हैं, वहीं मकर संक्रांति खगोलीय घटना है, जिससे जड़ और चेतन की दशा और दिशा तय होती है । मकर संक्रांति का महत्व हिंदू धर्मावलंबियों के लिए वैसा ही है जैसे वृक्षों में पीपल, हाथियों में ऐरावत और पहाड़ों में हिमालय ।*

*🌍विभिन्न राज्यों में अलग-अलग नाम से मनाया जाता है:-*

*🚩उत्तर प्रदेश :* मकर संक्रांति को *खिचड़ी पर्व* कहा जाता है ।*
*🚩गुजरात और राजस्थान :* उत्तरायण पर्व के रूप में मनाया जाता है। *पतंग उत्सव* का आयोजन किया जाता है ।*
*🚩आंध्रप्रदेश :* संक्रांति के नाम से तीन दिन का पर्व मनाया जाता है ।
*🚩तमिलनाडु :* किसानों का ये प्रमुख पर्व *पोंगल* के नाम से मनाया जाता है ।
*🚩महाराष्ट्र :* लोग *गजक और तिल के लड्डू खाते हैं* और एक दूसरे को भेंट देकर शुभकामनाएं देते हैं ।
*🚩पश्चिम बंगाल :* हुगली नदी पर *गंगा सागर मेले का आयोजन* किया जाता है ।
*🚩असम* : *भोगली बिहू* के नाम से इस पर्व को मनाया जाता है ।
*🚩पंजाब*: एक दिन पूर्व *लोहड़ी(इस बार १४ जनवरी* पर्व के रूप में मनाया जाता है ।

*🚩मकर संक्रांति के दिन ही पवित्र गंगा नदी का धरती पर अवतरण हुआ था। महाभारत में पितामह भीष्म ने सूर्य के उत्तरायण होने पर ही स्वेच्छा से शरीर का परित्याग किया था, कारण कि उत्तरायण में देह छोड़ने वाली आत्माएँ या तो कुछ काल के लिए देवलोक में चली जाती हैं या पुनर्जन्म के चक्र से उन्हें छुटकारा मिल जाता है।*

*🚩दक्षिणायन में देह छोड़ने पर बहुत काल तक आत्मा को अंधकार का सामना करना पड़ सकता है । सब कुछ प्रकृति के नियम के तहत है, इसलिए सभी कुछ प्रकृति से बद्ध है । पौधा प्रकाश में अच्छे से खिलता है, अंधकार में सिकुड़ भी सकता है । इसीलिए मृत्यु हो तो प्रकाश में हो ताकि साफ-साफ दिखाई दे कि हमारी गति और स्थिति क्या है ।*

*🚩क्या करें मकर संक्रांति को..???*

*🌞मकर संक्रांति या उत्तरायण दान-पुण्य का पर्व है । इस दिन किया गया दान-पुण्य, जप-तप अनंतगुना फल देता है । इस दिन गरीब को अन्नदान, जैसे तिल व गुड़ का दान देना चाहिए। इसमें तिल या तिल के लड्डू या तिल से बने खाद्य पदार्थों को दान देना चाहिए । कई लोग रुपया-पैसा भी दान करते हैं।*

*🚩मकर संक्रांति के दिन साल का पहला पुष्य नक्षत्र है मतलब खरीदारी के लिए बेहद शुभ दिन ।*

*🚩उत्तरायण के दिन भगवान सूर्यनारायण के इन नामों का जप विशेष हितकारी है ।*

*ॐ मित्राय नमः । ॐ रवये नमः ।*
*ॐ सूर्याय नमः । ॐ भानवे नमः ।*
*ॐ खगाय नमः । ॐ पूष्णे नमः ।*
*ॐ हिरण्यगर्भाय नमः । ॐ मरीचये नमः ।*
*ॐ आदित्याय नमः । ॐ सवित्रे नमः ।*
*ॐ अर्काय नमः । ॐ भास्कराय नमः ।*
*ॐ सवितृ सूर्यनारायणाय नमः ।*

*🚩ॐ ह्रां ह्रीं सः सूर्याय नम:। इस मंत्र से सूर्यनारायण की वंदना करनी चाहिए। उनका चिंतन करके प्रणाम करना चाहिए। इससे सूर्यनारायण प्रसन्न होंगे, निरोगता देंगे और अनिष्ट से भी रक्षा करेंगे।*

*🚩यदि इस दिन नदी तट पर जाना संभव नहीं है, तो अपने घर के स्नानघर में पूर्वाभिमुख होकर जल पात्र में तिल मिश्रित जल से स्नान करें । साथ ही समस्त पवित्र नदियों व तीर्थ का स्मरण करते हुए ब्रह्मा, विष्णु, रूद्र और भगवान भास्कर का ध्यान करें । साथ ही इस जन्म के पूर्व जन्म के ज्ञात अज्ञात मन, वचन, शब्द, काया आदि से उत्पन्न दोषों की निवृत्ति हेतु क्षमा याचना करते हुए सत्य धर्म के लिए निष्ठावान होकर सकारात्मक कर्म करने का संकल्प लें । जो संक्रांति के दिन स्नान नहीं करता....

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यतो धर्मस्ततो जयः।

NCERT has no evidence about its own content in history books!

Mughal repaired temples that were destroyed during wars! But No Proof/Evidence/information. But they are printing History books.

@bharat7773

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यतो धर्मस्ततो जयः।

🛕 *राममंदिर निधि समपर्ण अभियान*
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🛕 *अयोध्या में चल रहे प्रभु श्री राम जी के मंदिर निर्माण हेतु आज मकर सक्रांति से आरंभ हुआ विश्व का सबसे बड़ा जनसंपर्क व धन संग्रह महाअभियान। मकर सक्रांति से आरंभ हो कर 27 फरवरी यानी माघ पूर्णिमा तक चलेगा यह अभियान, जिसके अंतर्गत विश्व हिंदू परिषद के लाखों कार्यकर्ता करोड़ो परिवारो से संपर्क करेंगे।*

🚩 *जय श्री राम।*🚩

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यतो धर्मस्ततो जयः।

*♦️उत्तरायण होते सूर्य की कृतज्ञ वंदना का पर्व मकर संक्रांति की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएँ।*

*♦️आज के दिन का उत्सव देश भर में अलग-अलग नामों से मनाया जाता है। मकर संक्रांति, उत्तरायण, खिचड़ी, पोंगल, तिल संक्रांति, टुसू, माघ बिहु, सकट पर्व या कोई और नाम हो, उत्सवधर्मिता, प्रकृति की उपासना और सौहार्द का भाव इन सब में समान रूप से निहित है। आप सब में भी सूर्य की सात्विकता, ऊर्जा और तेज का संचार हो। 🙏🏻🧡☀️*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

शिवालय और शिवालय में स्वयम जागृत देवी देवता ऋषि मुनियों के विषय मे संक्षिप्त में :-
आदिनाथ शिव
सर्वप्रथम शिव ने ही धरती पर जीवन के प्रचार-प्रसार का प्रयास किया इसलिए उन्हें 'आदिदेव' भी कहा जाता है। 'आदि' का अर्थ प्रारंभ। आदिनाथ होने के कारण उनका एक नाम 'आदिश' भी है।
शिव के अस्त्र-शस्त्र
शिव का धनुष पिनाक, चक्र भवरेंदु और सुदर्शन, अस्त्र पाशुपतास्त्र और शस्त्र त्रिशूल है। उक्त सभी का उन्होंने ही निर्माण किया था।

शिव का नाग
शिव के गले में जो नाग लिपटा रहता है उसका नाम वासुकि है। वासुकि के बड़े भाई का नाम शेषनाग है।
शिव की अर्द्धांगिनी
शिव की पहली पत्नी सती ने ही अगले जन्म में पार्वती के रूप में जन्म लिया और वही उमा, उर्मि, काली कही गई हैं।
शिव के पुत्र
शिव के प्रमुख 6 पुत्र हैं- गणेश, कार्तिकेय, सुकेश, जलंधर, अयप्पा और भूमा। सभी के जन्म की कथा रोचक है।
शिव के शिष्य
शिव के 7 शिष्य हैं जिन्हें प्रारंभिक सप्तऋषि माना गया है। इन ऋषियों ने ही शिव के ज्ञान को संपूर्ण धरती पर प्रचारित किया जिसके चलते भिन्न-भिन्न धर्म और संस्कृतियों की उत्पत्ति हुई। शिव ने ही गुरु और शिष्य परंपरा की शुरुआत की थी। शिव के शिष्य हैं- बृहस्पति,विशालाक्ष,शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र,प्राचेतस मनु,भरद्वाज इसके अलावा 8वें गौरशिरस मुनि भी थे।
शिव के गण
शिव के गणों में भैरव, वीरभद्र, मणिभद्र, चंदिस, नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, जय और विजय प्रमुख हैं। इसके अलावा, पिशाच, दैत्य और नाग-नागिन, पशुओं को भी शिव का गण माना जाता है। शिवगण नंदी ने ही 'कामशास्त्र' की रचना की थी। 'कामशास्त्र' के आधार पर ही 'कामसूत्र' लिखा गया।
शिव पंचायत
भगवान सूर्य, गणपति, देवी, रुद्र और विष्णु ये शिव पंचायत कहलाते हैं।
शिव के द्वारपाल
नंदी, स्कंद, रिटी, वृषभ, भृंगी, गणेश, उमा-महेश्वर और महाकाल।
शिव पार्षद
जिस तरह जय और विजय विष्णु के पार्षद हैं उसी तरह बाण, रावण, चंड, नंदी, भृंगी आदि शिव के पार्षद हैं।
सभी धर्मों का केंद्र शिव
शिव की वेशभूषा ऐसी है कि प्रत्येक धर्म के लोग उनमें अपने प्रतीक ढूंढ सकते हैं। मुशरिक, यजीदी, साबिईन, सुबी, इब्राहीमी धर्मों में शिव के होने की छाप स्पष्ट रूप से देखी जा सकती है। शिव के शिष्यों से एक ऐसी परंपरा की शुरुआत हुई, जो आगे चल कर शैव, सिद्ध, नाथ, दिगंबर और सूफी संप्रदाय में वि‍भक्त हो गई।
देवता और असुर दोनों के प्रिय शिव
भगवान शिव को देवों के साथ असुर, दानव, राक्षस, पिशाच, गंधर्व, यक्ष आदि सभी पूजते हैं। वे रावण को भी वरदान देते हैं और राम को भी। उन्होंने भस्मासुर, शुक्राचार्य आदि कई असुरों को वरदान दिया था। शिव, सभी आदिवासी, वनवासी जाति, वर्ण, धर्म और समाज के सर्वोच्च देवता हैं।
शिव चिह्न
वनवासी से लेकर सभी साधारण व्‍यक्ति जिस चिह्न की पूजा कर सकें,उस पत्‍थर के ढेले,बटिया को शिव का चिह्न माना जाता है। इसके अलावा रुद्राक्ष और त्रिशूल को भी शिव का चिह्न माना गया है। कुछ लोग डमरू और अर्द्ध चन्द्र को भी शिव का चिह्न मानते हैं, हालांकि ज्यादातर लोग शिवलिंग अर्थात शिव की ज्योति का पूजन करते हैं।
शिव के अंश अवतार
वीरभद्र, पिप्पलाद, नंदी, भैरव, महेश, अश्वत्थामा, शरभावतार, गृहपति, दुर्वासा, हनुमान, वृषभ, यतिनाथ, कृष्णदर्शन, अवधूत, भिक्षुवर्य, सुरेश्वर, किरात, सुनटनर्तक, ब्रह्मचारी, यक्ष, वैश्यानाथ, द्विजेश्वर, हंसरूप, द्विज, नतेश्वर आदि हुए हैं। वेदों में रुद्रों का जिक्र है। रुद्र 11 बताए जाते हैं- कपाली, पिंगल, भीम, विरुपाक्ष, विलोहित, शास्ता, अजपाद, आपिर्बुध्य, शंभू, चण्ड तथा भव
ति‍ब्बत स्थित कैलाश पर्वत पर उनका निवास है। जहां पर शिव विराजमान हैं उस पर्वत के ठीक नीचे पाताल लोक है जो भगवान विष्णु का स्थान है। शिव के आसन के ऊपर वायुमंडल के पार क्रमश: स्वर्ग लोक और फिर ब्रह्माजी का स्थान है।
शिव भक्त :- ब्रह्मा, विष्णु और सभी देवी-देवताओं सहित भगवान राम और कृष्ण भी शिव भक्त है। हरिवंश पुराण के अनुसार, कैलास पर्वत पर कृष्ण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए तपस्या की थी। भगवान राम ने रामेश्वरम में शिवलिंग स्थापित कर उनकी पूजा-अर्चना की थी।
शिव ध्यान :- शिव की भक्ति हेतु शिव का ध्यान-पूजन किया जाता है। शिवलिंग को बिल्वपत्र चढ़ाकर शिवलिंग के समीप मंत्र जाप या ध्यान करने से मोक्ष का मार्ग पुष्ट होता है।
शिव मंत्र : - दो ही शिव के मंत्र हैं पहला- ॐ नम: शिवाय। दूसरा महामृत्युंजय मंत्र- ॐ ह्रौं जू सः। ॐ भूः भुवः स्वः। ॐ त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनम्‌। उर्वारुकमिव बन्धनान्मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात्‌। स्वः भुवः भूः ॐ। सः जू ह्रौं ॐ ॥ है।

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यतो धर्मस्ततो जयः।

*शिवालय - ब्रह्मयंत्र*
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3000 साल पहले पृथ्वीलोक पर एक मात्र सनातन धर्म ही था तब वैदिक परंपरा से मात्र शिवमंदिर का ही निर्माण किया जाता था । अन्य देवी देवताओं के प्राकट्य या कार्य स्थान पर पिण्डिका या कोई प्रतीक चिन्ह होते थे पर मंदिर निर्माण शिवालय का ही किया जाता था । वैदिक परंपरा के ऋषिमुनि निराकार ब्रह्म शिवलिग में ही समग्र सृष्टि है इनसे ज्ञात थे।25 , 26 सो साल पहले अलग सम्प्रदायों बने और मूर्ति पूजा प्रथा शुरू हुई । शिवालय का निर्माण सर्वोत्तम कर्म क्यों है उनके कुछ विज्ञान सम्मत कारण भी है ।
आकाशगंगा में रही चुम्बकीय शक्ति और कॉस्मेटिक एनर्जी का अभ्यास कर रहे वैज्ञानिकों ने पाया कि पुरातन शिवलिंग , ज्योतिर्लिगों के आसपास अतिभारी कॉस्मेटिक ऊर्जा पाई जाती है।कही जगहों पर तो भग्न हुवे या जमीन में गर्भस्त हुए मंदिर या पहाड़ों और जंगल में भी ये प्रचंड ऊर्जा पाई गई और उत्खनन के बाद या ऐतिहासिक घटनाओ के अभ्यास के बाद वहां शिवालय था ऐसे दस्तावेजी प्रमाण मिले।तो ये बात स्पष्ट हो गई कि ऐसी कॉस्मेटिक एनर्जी अन्य किसी मंदिरों, गिरजा घरों या अन्य धर्म स्थान में नहीं पाई गई । जो निर्माण के हज़ारो साल बाद (आज मंदिर नहीं है या कोई धरतीकम्प या जलप्रपात जैसी घटनाओं के बाद अब वहां कुछ भी नहीं है ) भी आज ऊर्जा के केंद्र है ।
प्रजापिता ब्रह्मा के पुत्र भगवान विश्वकर्मा और उनकी परंपरा से चली मंदिर शिल्पशास्त्र की परंपरा जो पूर्ण यंत्र है।इस पूर्ण शिल्पकला वास्तु शास्त्र के नियमाधीन बने शिवालय आज भी पूर्ण ऊर्जा के केंद्र है ।इसलिए वेद पुराणोंमें ये कहा गया कि शिवालय का निर्माण करना या निर्माणाधीन शिवालय कार्य में सहयोग करना जीव की दिव्य गति प्राप्त करने का दिव्य कर्म है ।
यहां जो प्राण-प्रतिष्ठा कर्म को जाननेवाले विद्वान होंगे उनको पता होगा कि प्रतिष्ठा के समय यजमान द्वारा उनके प्राण (उनकी आराधना के इष्ट ) की ही मूर्ति में प्रतिष्ठा की जाती है, तो शिवालय का निर्माण या सहयोग कर रहा हरेक जीव सदैव इस ऊर्जा केंद्र से जुड़ा रहता है । "यावत चंद्र दिवाकर " जहां तक ये ब्रह्मांड है वो जीव शिवमय रहता है , उनका मतलब है मोक्ष ।
शिवालय का निर्माण
हजारों जन्मों के पुण्यफल हो तब शिवालय निर्माण का सौभाग्य प्राप्त होता है। कोटि कोटि राजसूय यज्ञ के फल स्वरूप है शिवमंदिर का निर्माण पूजा,पाठ,अनुष्ठान, पुरुश्चरण, यंत्र ,मंत्र ,तंत्र पूजा और अन्य देवी देवताओं के मंदिर निर्माण से कहीं अधिक फलदायी पुण्यक कहा गया शिव मंदिर निर्माण को। क्योंकि बाकी सभी कार्य एकबार फलदायी है या अन्य देवी देवता के मंदिर सिर्फ उनके आवरण देवताओं की पंचायत तक सीमित है जबकि शिव मंदिर में स्वयं ही 2882 ( श्री यंत्र )देवी देवताओं का स्थान होता है और यावत चंद्र दिवाकरों जहां तक ये ब्रह्मांड का अस्तित्व होता है तब तक वो फलदायी रहता है।
शिवमंदिर एक यंत्र है , विधि विधान पूर्वक निर्माण किये गए शिवालय कॉस्मेटिक ऊर्जा आकर्षण करता है ये विश्व के वैज्ञानिकों ने सिद्ध किया।निराकार ब्रह्म शिव जो ऊर्जा प्रकाश पुंज स्वरूप है उनकी ऊर्जा शिवालय के साथ स्वयं ही जुड़ जाती है।इस प्रकार का ये यंत्र निर्माण हमारे ऋषि-मुनियों की विश्व को भेट है।
विद्वान सोमपुरा ओर ज्ञाता पंडितो के मार्गदर्शन से पूर्ण विधि विधान पूर्वक बने हमारे सभी ज्योतिर्लिग धाम इसलिए ही प्रचंड ऊर्जा के केंद्र हैं।प्रकृति और तत्व के उपासक सनातन धर्म की ऋषि परंपरा सतयुग में सिर्फ शिवालय ही निर्माण करते थे ,क्योंकि तमाम देवी देवता,वीर गण, भैरव जति,सती, ग्रह,नक्षत्र ये सभी की स्थापना शिवालय में स्वयम ही हो जाती है ये रहस्य उन्हें पता था।
शिवालय की चौरस निम्ब को ताम्र पट्टी से ऊर्जा वाहक बनाने के साथ शिवलिंग के स्थान के नीचे दश गज ऊर्जा स्तम्भ स्थापित किया जाता है,शिवलिंग का पूर्वमुख(तत्पुरुष - सूर्यदेव ) पश्चिम मुख ( सद्योजात - महागणपति ) उत्तरमुख ( वामदेव - नारायण ) दक्षिणमुख ( अघोरेश्वर - भगवती ) ओर उर्ध्व मुख ( ईशान - महादेव रुद्र ) है।शिवलिंग की चोमेर गोलाई में 64 योगिनी ओर क्षेत्रपाल है।शिवमंदिर गर्भ गृह की निम्ब में नवग्रह की स्थापना है।पार्वती के स्वरूप में महालक्ष्मी महासरस्वती महाकाली तीनों स्वरूप है दिशा देवों के साथ गुम्बज में देवो ,यक्षों, किन्नरों,गंधर्वो की स्थापना है।
चारो प्रहर राजसी पूजन किया जाता है।शिवालय में चतुर्थी को महागणपति की विशेष पूजा,षष्ठी की सूर्यपूजा,एकादशी की नारायण पूजा,पूर्णिमा की शक्ति पूजा और अमावास्या की रुद्र पूजा की जाती है।पूर्ण विधान से जहां राजसी पूजन होता हो उस मंदिर की ओरा में प्रवेश करने से ही तमाम आधी व्याधि उपाधि का अंत होता है।

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यतो धर्मस्ततो जयः।

👉 श्रीमदभागवद के एक अध्याय का पाठ करें,या गीता का पाठ करें
👉 मनोकामना संकल्प कर नए अन्न,कम्बल और घी का दान करें
👉 लाल फूल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें
👉 सूर्य के बीज मंत्र का जाप करें
मंत्र "ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं सः सूर्याय नमः"
👉 संध्या काल में अन्न का सेवन न करें
👉 तिल और अक्षत डाल कर सूर्य को अर्घ्य दें
👉 शनि देव के मंत्र का जाप करें
👉 मंत्र "ॐ प्रां प्री प्रौं सः शनैश्चराय नमः"
👉 घी,काला कम्बल और लोहे का दान करें।

मकर संक्रांति 14 या 15 जनवरी को, शंका समाधान
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मकर संक्रांति का त्योहार हर साल सूर्य के मकर राशि में प्रवेश के अवसर पर मनाया जाता है। बीते कुछ वर्षों से मकर संक्रांति की तिथि और पुण्यकाल को लेकर उलझन की स्थिति बनने लगी है। आइए देखें कि यह उलझन की स्थिति क्यों बनी हैं और मकर संक्रांति का पुण्यकाल और तिथि मुहूर्त क्या है। दरअसल इस उलझन के पीछे खगोलीय गणना है। गणना के अनुसार हर साल सूर्य के धनु से मकर राशि में आने का समय करीब 20 मिनट बढ़ जाता है। इसलिए करीब 72 साल के बाद एक दिन के अंतर पर सूर्य मकर राशि में आता है। ऐसा उल्लेख मिलता है कि मुगल काल में अकबर के शासन काल के दौरान मकर संक्रांति 10 जनवरी को मनाई जाती थी। अब सूर्य के मकर राशि में प्रवेश का समय 14 और 15 के बीच में होने लगा क्योंकि यह संक्रमण काल है।

साल 2012 में सूर्य का मकर राशि में प्रवेश 15 जनवरी को हुआ था इसलिए मकर संक्रांति इस दिन मनाई गई थी। पिछले कुछ वर्षों में मकर संक्रांति 15 जनवरी को ही मनाई गयी ऐसी गणना कहती है। इतना ही नहीं करीब पांच हजार साल बाद मकर संक्रांति फरवरी के अंतिम सप्ताह में मनाई जाने लगेगी

ज्योतिषीय गणना एवं मुहुर्त चिंतामणी के अनुसार सूर्य सक्रान्ति समय से 16 घटी पहले एवं 16 घटी बाद तक का पुण्य काल होता है निर्णय सिन्धु के अनुसार मकर सक्रान्ति का पुण्यकाल सक्रान्ति से 20 घटी बाद तक होता है किन्तु सूर्यास्त के बाद मकर सक्रान्ति प्रदोष काल रात्रि काल में हो तो पुण्यकाल दूसरे दिन माना जाता है। इस वर्ष भगवान सूर्य देव 14 जनवरी गुरुवार को प्रातः 08:13 बजे उतराषाढ़ा नक्षत्र के दूसरे चरण मकर राशि में प्रवेश करेगें। उस समय चन्द्र देव भी मकर राशि के श्रवण नक्षत्र वज्र योग एवं बव करण में विचरण कर रहे होंगे।

इस वर्ष संक्रांति 14 तारीख प्रातः 08:13 से आरंभ होकर पूरे दिन रहेगी इसलिये मकर संक्रांति का त्योहर 14 जनवरी गुरुवार को ही मनाया जाएगा।

मकर संक्रांति फल
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वेदों में सूर्य उपासना को सर्वोपरि माना गया है। जो आत्मा, जीव, सृष्टि का कारक एक मात्र देवता है जिनके हम साक्षात रूप से दर्शन करते है। सूर्य देव कर्क से धनु राशि में 6 माह भ्रमण कर दक्षिणयान होते है जो देवताओं की एक रात्रि होती है। सूर्य देव मकर से मिथुन राशि में 6 माह भ्रमण कर उत्तरायण होते है जो एक दिन होता है। जिसमें सिद्धि साधना पुण्यकाल के साथ-साथ मांगलिक कार्य विवाह, ग्रह प्रवेश, जनेउ, संस्कार,
देव प्राण, प्रतिष्ठा, मुंडन कार्य आदि सम्पन्न होते है। सूर्य देव मकर राशि में प्रवेश करते है इस सक्रमण को मकर सक्रान्ति कहा जाता है जिसमें स्वर्ग के द्वार खुलते है।

संक्रांति शुभ होगी या अशुभ इसका विचार उसके वाहन एवं उपवाहन से किया जाता है। फिर उसका नाम भी रखा जाता है और फिर देखा जाता है कि वह देश-दुनिया के लिए कैसी रहेगी। माना जाता है कि संक्रांति जो कुछ ग्रहण करती है, उसके मूल्य बढ़ जाते हैं या वह नष्ट हो जाता है। वह जिसे देखती है, वह नष्ट हो जाता है, जिस दिशा से वह जाती है, वहां के लोग सुखी होते हैं, जिस दिशा को वह चली जाती है, वहां के लोग दुखी हो जाते हैं।

इस वर्ष संक्रांति के प्रवेश समय मकर लग्न में पाँच ग्रहों की युति संसारभर में कही शुभ और कही अशुभ फल प्रदान करेगी। वाहन, दृष्टि सहित मकर संक्रांति के स्वरूप के अनुसार जमाखोर, चोर, लोभी, धूर्त और ठग के कार्यों से जनता त्रस्त रहेगी। अजा, अजजा, अल्पसंख्यक, निर्धन, असहाय, वरिष्ठ नागरिक, महिलाओं के लिए कल्याणकारी योजनाएं बनेंगी। संगीतकार, अभिनेता और निर्माताओं के लिए कष्टप्रद रहेगी, वहीं भवन निर्माण, फर्नीचर, लकड़ी, खनिज संपदा, धातु के दामों में बेतहाशा वृद्धि होगी। नेताओं में आरोप-प्रत्यारोप रहेगा और कई उग्र आंदोलन भी होंगे। उद्योगपतियों, व्यापारियों, आयात निर्यात करने वालो, शेयर कारोबारियों के लिये सुख फलदायक है। सक्रान्ति का पश्चिम दिशा की और गमन होगा। जिसके प्रभाव से देश के पश्चिमी प्रांतों के लिए कष्टकारक योग बनेगें। संक्रान्ति रात्रि अर्धभाग व्यापिनी होने से आतंकवादियों, हिसंक
प्रवृत्ति वालों, देश द्रोहियों के लिये कष्ट कारक रहेगी।

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यतो धर्मस्ततो जयः।

नये साल की हार्दिक शुभकामनाएँ 🙏🙏

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यतो धर्मस्ततो जयः।

⭕ *लव जिहाद राजस्थान के गांवों में भी पाँव पसार चुका है।*

⭕ *वहां भी लव जिहाद के बहुत केस सामने आ रहे है, हिंदू राजनीति और आपस मे लड़ने में अधिक व्यस्त है, तनिक ध्यान यहां भी दे दे। तमाम खाप पंचायतो को भी इस विषय पर आगे आना चाहिए।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

💎 *भारत मे जन्मे प्रत्येक नागरिक के लिए उसका राष्ट्र हर पार्टी और व्यक्ति से ऊपर होना चाहिए।*

💎 *दुर्भाग्य है इस देश का जहां मोदी विरोध के चक्कर में सेना और राष्ट्रहित में लिए निर्णयों का भी विरोध किया जाता है, चाहे वो एयर स्ट्राइक, सर्जिकल स्ट्राइक, राफेल डील और पुलवामा हमले पर संदेह करना हो या चाहे धारा 370 के हटने का विरोध करना हो।*

💎 *जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान और उसके मंत्रियों ने बर्फ बार स्वंय अपने बयानों से इन घटनाओं की पुष्टि, उस समय हर विषय पर राजनीति करने वालो स्वंय पर कुछ शर्म करना चाहिए था, यहां तो मोदी विरोध के चक्कर मे इमरान खान जैसे नकारा पीएम का भी समर्थन किया जाता है।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

*⚜️विकृत यौन अपराधी सोमनाथ भारती नें 48 घंटे में ही यूपी की जेल में रो दिया है और कहा कि इस बार मुझे छोड़ दो, अब दुबारा उत्तर प्रदेश नहीं आऊंगा।*

*योगी जी के भय से केजरीवाल के किसी भी दंगाई-नक्सली नेता की हिम्मत नहीं हो रही है कि वो यूपी आकर सोमनाथ भारती से जेल में मुलाकात करे।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

💠 *दशको से फ़र्ज़ी इतिहास हमारे बच्चो को पढ़ाया जा रहा है, बिना किसी प्रमाण के।*

💠 *मन्दिरो को तोड़ने वाले मुगलो को मन्दिरो का पुनर्निर्माण करने वाला बताया जा रहा है NCERT की किताबो में, RTI लगाई गई तो NCERT के पास प्रमाण नहीं।*

💠 *6 वर्ष से हमारे सोते हुए शिक्षा मंत्री क्या कर रहे है? कन्ग्रेस राज में वामपंथियो एवं इस्लामिको द्वारा लिखे गए फ़र्ज़ी इतिहास को क्यों बदल नही पाए, यही पढ़ पढ़ हमारी पीढ़िया फिर सिकुलर बन खोखली होती है।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

*_🪔आत्मदीपो भव।_*
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*🪔अर्थात: स्वयं अपने दीपक बनो।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

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👺 *CBSE की स्कूली NCERT की पुस्तकों (कक्षा-12, पन्ना 234) में दशकों से यह झूठ पढ़ाया जा रहा है कि मुगलों ने हिंदू मंदिरों का नवनिर्माण कराया।*
*सत्य तो ये है कि मुगलो द्वारा तोड़े गए एवं मस्जिद में परिवर्तित हजारो मंदिरो के अवशेष आज भी आपको देश भर में मिल जाएंगे।*
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👺 *जब RTI लगा कर यह पूछा गया कि इसका संदर्भ (प्रमाण) दीजिए तो NCERT ने कहा, इसके श्रोत का हमें भी पता नहीं है। यानी NCRT की पुस्तकों में तथ्य नहीं, लाल लंपटों की बकैती है, यह स्वयं NCERT मान रहा है।*

⭕ *आजादी के बाद से 'लाल टिड्डे व मुस्लिम इतिहासकारों' के लिखे इसी तरह के गलत इतिहास को पढ़ाया जा रहा है, और यही झूठ पढ़ा कर तथाकथित सेक्यूलर नौकरशाही तैयार की जा रही है। राम मंदिर पर भी कोर्ट में कम्युनिस्ट इतिहासकार अपने लिखे झूठ का संदर्भ नहीं दे पाए थे। अदालत ने इनके लिखे इतिहास को तथ्य नहीं, विचार कहा था।*

⭕ *दुख तो तब होता है जब छह साल से केंद्र में एक राष्ट्रवादी सरकार है, लेकिन वह भी NCERT की पुस्तकों को री-राइट नहीं करा पाई है।*

⭕ *जबकि 2004 में जब माईनो की सरकार आई थी, और जिसके पास मोदी सरकार से काम सीटें थी, आते ही उसके मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने तीस्ता सीतलवाड़, योगेन्द्र जैसों को बैठाकर NCERT की गलत पुस्तकें लिखवा भी दिया और कोर्स में लगवा भी दिया था।*

⭕ *मोदी सरकार के पिछले मानव संसाधन मंत्री ने तो गर्व से यह तक कह दिया था कि हमने इतिहास की पुस्तकों का एक पन्ना तक नहीं बदला है।*

⭕ *जनता भाजपा को सीट दे सकती है, लेकिन जनता भाजपा नेताओं अंदर इतिहास की अज्ञानता से उत्पन्न खोखलेपन और लाल लंपटों से उत्पन्न भय को दूर तो नहीं कर सकती है न?*

⭕ *पढते और पढ़ाते रहिए गलत इतिहास, क्योंकि झूठ की बुनियाद पर गढ़े गये सेक्यूलर अवधारणा को कोई चोट पहुंचाना नहीं चाहता!*

⭕ *पोलिटिकल करेक्ट होने की बीमारी ने इन देश और इस देश की न जाने कितनी पीढ़ियों का सर्वनाश कर डाला है!*

*जागो शिक्षा रमेश पोखरियाल*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

वह 7 जन्मों तक निर्धन और रोगी रहता है ।*

*🚩तिल का महत्व :-*

*विष्णु धर्मसूत्र में उल्लेख है कि मकर संक्रांति के दिन तिल का 6 प्रकार से उपयोग करने पर जातक के जीवन में सुख व समृद्धि आती है ।*

*★ तिल के तेल से स्नान करना ।*
*★ तिल का उबटन लगाना ।*
*★ पितरों को तिलयुक्त तेल अर्पण करना।*
*★ तिल की आहुति देना ।*
*★ तिल का दान करना ।*
*★ तिल का सेवन करना।*

*🚩ब्रह्मचर्य बढ़ाने के लिए :-*

*ब्रह्मचर्य रखना हो, संयमी जीवन जीना हो, वे उत्तरायण के दिन भगवान सूर्यनारायण का सुमिरन करें, जिससे बुद्धि में बल बढ़े ।*

*ॐ सूर्याय नमः... ॐ शंकराय नमः...*
*ॐ गं गणपतये नमः... ॐ हनुमते नमः...*
*ॐ भीष्माय नमः... ॐ अर्यमायै नमः...*
*ॐ... ॐ...*

🙏🚩🇮🇳🔱🏹🐚🕉

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यतो धर्मस्ततो जयः।

*कुछ साल पहले एक मूवी OMG आयी थी, जिसमे हिन्दू धर्म को लेकर कई टिप्पणियां की गयी थी..उस फिल्म में जितने भी सवाल पूछे गए, उसके जवाब इस वीडियो में हेेेै।*
वीडियो पूरी देखना समझना

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यतो धर्मस्ततो जयः।

क्षत्रियो शूद्रों ब्राह्मणो वैश्यों में किसी भी जाति का अपमान करना, वेदों का अपमान करना है ।।

वह क्षत्रिय जिनकी 18 साल से ऊपर की नस्ल ही एक समय जिंदा रहनी बन्द हो गयी ।। देश के लिए इतने सिर कटाएँ । कहावते तक बन गयी ..
" बारह बरस कुकुर जियें, तेरह लो जियें सियार
बरस अठारह क्षत्रिय जीवें, ज़्यादा जीवें तो धिक्कार "

अर्थात देश के लिए सिर कटाने को जो अपनी शान समझते हो, उस जाति का अपमान करना, क्या वेदों और मानवता का अपमान करना नही है ??

काशी में जब सल्तनत काल शुरू हो गया था । तो ब्राह्मणो में अपने घर मे ही गुरुकुल खोल लिए थे । चोरी छुपे बच्चो को पढ़ाया करते थे । वेदों जो जब जलाया गया, तो ब्राह्मणो ने वेदों को कण्ठस्थ कर लिया ।। एक बार तो घर मे गुरुकुल चलाने के आरोप में एक ब्राह्मण को दिल्ली के सुल्तान ने उनकी लकड़ी की मूर्ति के साथ ही जलाकर मार डाला । ब्राह्मण के सामने शर्त रखी गयी, की इस्लाम स्वीकार कर, या इस्लाम की पशुता में जलने को तैयार हो जा । ब्राह्मण ने कहा, भस्म होना स्वीकार है, मेरी राख भी मुस्लमान नही हो सकती । ऐसे धर्मभक्त जाति का अपमान करना, वेदों तथा मानवता का अपमान करना नही है ??ब्राह्मणो के कारण ही आज वेद सुरक्षित है ।

वैश्यों ओर राजाओ की अनबन किस बात पर होती थी, क्या आप जानते है ..?? मंदिर बनाने को लेकर, दान करने को लेकर, राजा कहता था, मंदिर का खर्च मेरा, सेठ राजा से नाराज होता था, की आप राजा है तो क्या अपनी मनमर्जी करेंगे ? इस मंदिर में तो धन वैश्यों का लगेगा, यही बात दान दक्षिणा के समय लागू होती थी ।। यह एक शतरंज के खेल की तरह था, जिसमे कभी राजा जीतता, तो कभी बनिया । बणियो की बनाई लाखो धर्मशालायें करोड़ो हिंदुओ को सुख दे रही है ?? क्या ऐसे धर्मभक्तो का अपमान करना, राष्ट्र वेद मानवता का अपमान करना नही है ??


आज हम जितने भी प्राचीन मंदिर आदि देखते है, यह किसने बनवाये ? कौन था इंजीनियर ? अगर वह इंजीनियर/ मजदूर/कारीगर देश से प्यार नही करता, तो क्या इतने सुंदर मंदिर बन पाते, इन्ही मंदिरो , कलाकृतियों के कारण ही तो हम सीना चौड़ा करके घूमते है । याद रहे, शुद्र सनातन धर्म की नींव है, अगर नींव ढह गई, तो कुछ शेष नही बचेगा । शुद्र रक्षा ही सनातन धर्म की रक्षा है ।।

ऐसे शूद्रों का अपमान करना, क्या वेदों का अपमान करना नही है ??

पुराना जो हुआ, सो हुआ, आज से मैं शपथ लेता हूँ, आज से में किसी भी जाति उर्फ वेदों का अपमान नही करूँगा । आप सभी भी इसे कॉपी पेस्ट कर सकते है ।

@bharat7773

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यतो धर्मस्ततो जयः।

🔳धरती_माता_कभी_बीज_नहीं_गवांती🔳

जैसलमेर में 1966 के बाद सामने नही आया कोई भी लव जेहाद का मामला ....??
जैसलमेर में एक ब्राह्मण ने लव जिहादियों की ऐसे गर्दन उतरवाई की तब से आज तक वहां कोई लव जिहाद का मामला नहीं आया ...!!

जैसलमेर जिले के मुगलों का गाँव सनावाडा में 1966 में हुई एक घटना जिक्र रहा हूँ...
मुगल बाहुल्य गाँव था सनावाड़ा ..जहाँ का सरपंच एक मुगल था.. सरपंच का पुत्र जोधपुर में पढाई कर रहा था... गर्मी के अवकाश में लड़का अपने गाँव आया हुआ था...!!

पास के गाँव के एकमात्र श्रीमाली ब्राह्मण परिवार की कन्या सरपंच के पुत्र को भा गई... पहले तो पिता ने पुत्र को समझाया....धर्म और मजहब में अंतर बताया... किन्तु जब पुत्र जिद्द पर अड़ गया.. तो सरपंच 10-,15 मुगलों को साथ लेकर ब्राह्मण के घर गया और कन्या का हाथ (बलपूर्वक) अपने पुत्र के लिए माँगा....!!

ब्राह्मण परिवार पर तो मानो ब्रजपात हो गया हो.....
किन्तु कुछ सोचकर ब्राह्मणदेव ने दो माह का समय माँगा....
दुसरे दिन हताश ब्राह्मणदेव पास के राजपूत गाँव में वहां के ठाकुर के निवास पर गये .... और निवास के मुख्य द्वार के सामने फावड़े से मिटटी खोदने लगे...!!

बड़े ठाकुर साहब उस समय घर पर नहीं थे ...मगर 17 वर्षीय कुंवर और उनकी माताजी जी घर पर थे... जब ब्राह्मण द्वारा मिटटी खोदने की सुचना उन्हें मिली ...तो कुंवर ब्राम्हणदेव के पास गए और आदरपूर्वक मिट्टी खोदने का कारण पूछा...!!

ब्राह्मणदेव ने उत्तर दिया :- कुंवर जी... मैने सुना है ..धरती माता कभी बीज नहीं गंवाती... खोद कर देख रहा हूँ ..कि हमारे रक्षक क्षत्रिय समाज का बीज आज भी है या नष्ट हो चुका है ....??

कुंवर पूरे 17 वर्ष के थे.. बात को समझ गए ...उन्होंने ब्राह्मणदेव को वचन दिया कि आप निश्चिन्त रहें विप्रवर..
मैं राजपूत आपको वचन देता हूँ ...कि आपके सम्मान हेतु प्राण दे दूँगा ...किन्तु पीछे नहीं हटूँगा..…. आप अतिथि घर में पधारें.. स्नान आदि करके भोजन करिए... तब तक पिताश्री भी आ जायेंगे...आपको निराश नहीं करेंगे...!!

जब ठाकुर साहब वापिस आये तो कुंवर ने पूरी बात बताई और वचन देने वाली बात भी बताई...
ठाकुर साहब ने ब्राह्मणदेव से कहा कि :- गुरूदेव ..मैं आपको धन देता हूँ... आप कोई योग्य ब्राह्मण लड़का देख कर अपनी कन्या का रिश्ता तय कर लें... साथ ही मुगल सरपंच को उसी तिथी पर दो माह बाद बारात लेकर आपके घर आमंत्रित करें... बाकी का कार्य हम पूरा करेंगे...!!

दो माह बीते और बताये समय पर मुगल सरपंच भारी दलबल के साथ ब्राह्मण के घर बारात लेकर पहुँच गया...
तिलक के समय ठाकुर के कुंवर ने अपने दो चाचा के साथ मिल कर पहले वर का सर काटा और कटे सिर को लहराते हुए उसी विवाह मंडप में भयंकर रक्तपात मचाया...!!

वो मंजर कुछ ऐसा था.. जैसे शेर पूरी ताकत से शिकार कर रहा हो... उसके बाद कार्बाइन से गोली चला कर सभी बारातियों सहित सरपंच तमाम मुगलों को जहन्नुम पहुंचा दिया...
उस दिन का दिन और आज का दिन जैसलमेर में आज तक कोई लव जिहाद जेसी घटना नहीं हुई...कुंवर आज भी जीवित हैं.. और मुगल उनको देख कर आज भी भय से कापते है...!!
🚩🚩🚩जय भवानी🚩🚩🚩

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यतो धर्मस्ततो जयः।

शिव व्रत और त्योहार :- सोमवार, प्रदोष और श्रावण मास में शिव व्रत रखे जाते हैं। शिवरात्रि और महाशिवरात्रि शिव का प्रमुख पर्व त्योहार है।
शिव प्रचारक :- भगवान शंकर की परंपरा को उनके शिष्यों बृहस्पति, विशालाक्ष (शिव), शुक्र, सहस्राक्ष, महेन्द्र, प्राचेतस मनु, भरद्वाज, अगस्त्य मुनि, गौरशिरस मुनि, नंदी, कार्तिकेय, भैरवनाथ आदि ने आगे बढ़ाया।इसके अलावा वीरभद्र,चंदिस, मणिभद्र,नंदी, श्रृंगी, भृगिरिटी, शैल, गोकर्ण, घंटाकर्ण, बाण, रावण, जय और विजय ने भी शैवपंथ का प्रचार किया। इस परंपरा में सबसे बड़ा नाम आदिगुरु भगवान दत्तात्रेय का आता है। दत्तात्रेय के बाद आदि शंकराचार्य, मत्स्येन्द्रनाथ और गुरु गुरुगोरखनाथ का नाम प्रमुखता से लिया जाता है।
शैव परम्परा :- दसनामी, शाक्त, सिद्ध, दिगंबर,नाथ, लिंगायत, तमिल शैव,कालमुख शैव,कश्मीरी शैव,वीरशैव,नाग,पाशुपत, लकुलीश,कापालिक, कालदमन और महेश्वर सभी शैव परंपरा से हैं। चंद्रवंशी, सूर्यवंशी,अग्निवंशी और नागवंशी भी शिव की परंपरा से ही माने जाते हैं।भारत कीअसुर,रक्ष और आदिवासी जाति के आराध्य देव शिव ही हैं।शैव धर्म भारत के आदिवासियों हित सभी शैवों का धर्म है।
शिव के प्रमुख नाम :- शिव के वैसे तो अनेक नाम हैं जिनमें 108 नामों का उल्लेख पुराणों में मिलता है लेकिन यहां प्रचलित नाम जानें- महेश, नीलकंठ,महादेव,महाकाल, शंकर, पशुपतिनाथ, गंगाधर, नटराज, त्रिनेत्र, भोलेनाथ, आदिदेव, आदिनाथ, त्रियंबक, त्रिलोकेश, जटाशंकर, जगदीश, प्रलयंकर, विश्वनाथ, विश्वेश्वर, हर, शिवशंभु, भूतनाथ और रुद्र।
अमरनाथ के अमृत वचन :- शिव ने अपनी अर्धांगिनी पार्वती को मोक्ष हेतु अमरनाथ की गुफा में जो ज्ञान दिया उस ज्ञान की आज अनेकानेक शाखाएं हो चली हैं। वह ज्ञानयोग और तंत्र के मूल सूत्रों में शामिल है। 'विज्ञान भैरव तंत्र' एक ऐसा ग्रंथ है, जिसमें भगवान शिव द्वारा पार्वती को बताए गए 112 ध्यान सूत्रों का संकलन है।
शिव ग्रंथ :- वेद और उपनिषद सहित विज्ञान भैरव तंत्र, शिव पुराण और शिव संहिता में शिव की संपूर्ण शिक्षा और दीक्षा समाई हुई है। तंत्र के अनेक ग्रंथों में उनकी शिक्षा का विस्तार हुआ है।
शिवलिंग :- वायु पुराण के अनुसार प्रलयकाल में समस्त सृष्टि जिसमें लीन हो जाती है और पुन: सृष्टिकाल में जिससे प्रकट होती है, उसे लिंग कहते हैं। इस प्रकार विश्व की संपूर्ण ऊर्जा ही लिंग की प्रतीक है। वस्तुत: यह संपूर्ण सृष्टि बिंदु-नाद स्वरूप है। बिंदु शक्ति है और नाद शिव। बिंदु अर्थात ऊर्जा और नाद अर्थात ध्वनि। यही दो संपूर्ण ब्रह्मांड का आधार है। इसी कारण प्रतीक स्वरूप शिवलिंग की पूजा-अर्चना है।
बारह ज्योतिर्लिंग :- सोमनाथ,मल्लिकार्जुन,महाकालेश्वर, ॐकारेश्वर, वैद्यनाथ,भीमशंकर,रामेश्वर, नागेश्वर, विश्वनाथजी, त्र्यम्बकेश्वर, केदारनाथ, घृष्णेश्वर।ज्योतिर्लिंग उत्पत्ति के संबंध में अनेकों मान्यताएं प्रचलित है।ज्योतिर्लिंग यानी 'व्यापक ब्रह्मात्मलिंग' जिसका अर्थ है 'व्यापक प्रकाश'।जो शिवलिंग के बारह खंड हैं।शिवपुराण के अनुसार ब्रह्म, माया, जीव, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी को ज्योतिर्लिंग या ज्योति पिंड कहा गया है।दूसरी मान्यता अनुसार शिव पुराण के अनुसार प्राचीन काल में आकाश से ज्‍योति पिंड पृथ्‍वी पर गिरे और उनसे थोड़ी देर के लिए प्रकाश फैल गया। इस तरह के अनेकों उल्का पिंड आकाश से धरती पर गिरे थे। भारत में गिरे अनेकों पिंडों में से प्रमुख बारह पिंड को ही ज्‍योतिर्लिंग में शामिल किया गया।
शिव का दर्शन :- शिव के जीवन और दर्शन को जो लोग यथार्थ दृष्टि से देखते हैं वे सही बुद्धि वाले और यथार्थ को पकड़ने वाले शिवभक्त हैं, क्योंकि शिव का दर्शन कहता है कि यथार्थ में जियो, वर्तमान में जियो, अपनी चित्तवृत्तियों से लड़ो मत, उन्हें अजनबी बनकर देखो और कल्पना का भी यथार्थ के लिए उपयोग करो। आइंस्टीन से पूर्व शिव ने ही कहा था कि कल्पना ज्ञान से ज्यादा महत्वपूर्ण है।
शिव और शंकर :- शिव का नाम शंकर के साथ जोड़ा जाता है।लोग कहते हैं शिव, शंकर, भोलेनाथ। इस तरह अनजाने ही कई लोग शिव और शंकर को एक ही सत्ता के दो नाम बताते हैं। असल में, दोनों की प्रतिमाएं अलग-अलग आकृति की हैं। ब्रह्मा , विष्णु , महेश ये तीनो निराकार ब्रह्म शिव के साकार स्वरूप है उनके ही अंश है । शंकर को हमेशा तपस्वी रूप में दिखाया जाता है। कई जगह तो शंकर को शिवलिंग का ध्यान करते हुए दिखाया गया है। अत: शिव और शंकर दो अलग अलग सत्ताएं है। हालांकि शंकर को भी शिवरूप माना गया है। माना जाता है कि महेष (नंदी) और महाकाल भगवान शंकर के द्वारपाल हैं।

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यतो धर्मस्ततो जयः।

वर्णित किये गए ये सभी देवी,देवता,ऋषि-मुनि शिव-मन्दिर में स्वयं ही वास करते है इसलिए लिखा कि हजारो जन्मों के संचित पूण्य कर्म हो तो शिवालय का निर्माण का सौभाग्य प्राप्त होता है।अगर ईश्वर कृपा से साधन सम्पन हो तो शिव-मंदिर यथाशक्ति अनुसार बनाना चाहिए या किसी निर्माणाधीन शिव-मंदिर में सहयोग करना बड़ा ही पूण्य कार्य है।
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यतो धर्मस्ततो जयः।

मकर संक्रांति के वाहनादि परिचय
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नाम👉 मन्द
वार मुख👉 उत्तर
दृष्टि👉 ईशान
गमन👉 दक्षिण
वाहन👉 सिंह
उपवाहन👉 गज
वस्त्र👉 श्वेत
आयुध👉 भुशुण्डी
भक्ष्य पदार्थ👉 अन्न
गन्ध द्रव्य👉 कस्तूरी
वर्ण👉 देवता
पुष्प👉 नाग्केश्वर
वय👉 शिशु
अवस्था👉 पन्थ्
करण👉 मुख पूर्व
स्थिति👉 बैठी
भोजन पात्र👉 सुवर्ण
आभूषण👉 नुपुर
कन्चुकी👉 विचित्र

मकर संक्रान्ति का पुण्यकाल
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सूर्य 14 जनवरी को सुबह 8.13 बजे धनु राशि से निकलकर मकर राशि में प्रवेश करेगा। इस दिन पुण्य काल सवा चार घंटे तक यानी सुबह 8.13 बजे से दोपहर 12.30 बजे तक रहेगा। इसी बीच 14 मिनट तक अर्थात 8.13 बजे से 8.27 बजे तक महापुण्य काल रहेगा। इस काल में तिल, गुड़, वस्त्र का दान करना और तर्पण करना पुण्य फलदायी होगा।

मकर-संक्रांति का राशि अनुसार फल
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मेष-ईष्ट सिद्धि
वृषभ- धर्म लाभ
मिथुन- शारीरिक कष्ट
कर्क- सम्मान में वृद्धि
सिंह- भय व चिन्ता
कन्या- धन वृद्धि
तुला- कलह व मानसिक चिंता
वृश्चिक- धनागम व सुख-शांति
धनु- धन लाभ
मकर- स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति
कुंभ- लाभ
मीन- प्रतिष्ठा में वृद्धि


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यतो धर्मस्ततो जयः।

मकर संक्रांति विशेष
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मकर संक्रांति का पौराणिक महत्व
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शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है। इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है। ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है। इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है।

मकर संक्रांति से अग्नि तत्त्व की शुरुआत होती है और कर्क संक्रांति से जल तत्त्व की. इस समय सूर्य उत्तरायण होता है अतः इस समय किये गए जप और दान का फल अनंत गुना होता है मकर संक्रान्ति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है। इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है। सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है। यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है। भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है। मकर संक्रान्ति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है। इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है। किन्तु मकर संक्रान्ति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है। अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है। दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा। अत: मकर संक्रान्ति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है। प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी।

मकर संक्रांं‍ति पूजा व‍िध‍ि
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भविष्यपुराण के अनुसार सूर्य के उत्तरायण के दिन संक्रांति व्रत करना चाहिए। पानी में तिल मिलाकार स्नान करना चाहिए। अगर संभव हो तो गंगा स्नान करना चाहिए। इस द‍िन तीर्थ स्थान या पवित्र नदियों में स्नान करने का महत्व अधिक है।इसके बाद भगवान सूर्यदेव की पंचोपचार विधि से पूजा-अर्चना करनी चाहिए इसके बाद यथा सामर्थ्य गंगा घाट अथवा घर मे ही पूर्वाभिमुख होकर यथा सामर्थ्य गायत्री मन्त्र अथवा सूर्य के इन मंत्रों का अधिक से अधिक जाप करना चाहिये।

मन्त्र 👉 १- ऊं सूर्याय नम: ऊं आदित्याय नम: ऊं सप्तार्चिषे नम:

२- ऋड्मण्डलाय नम: , ऊं सवित्रे नम: , ऊं वरुणाय नम: , ऊं सप्तसप्त्ये नम: , ऊं मार्तण्डाय नम: , ऊं विष्णवे नम:

पूजा-अर्चना में भगवान को भी तिल और गुड़ से बने सामग्रियों का भोग लगाएं। तदोपरान्त ज्यादा से ज्यादा भोग प्रसाद बांटे।

इसके घर में बनाए या बाजार में उपलब्ध तिल के बनाए सामग्रियों का सेवन करें। इस पुण्य कार्य के दौरान किसी से भी कड़वे बोलना अच्छा नहीं माना गया है।

मकर संक्रांति पर अपने पितरों का ध्यान और उन्हें तर्पण जरूर देना चाहिए।

राशि के अनुसार दान योग्य वस्तु
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मेष🐐 गुड़, मूंगफली दाने एवं तिल का दान करें।
वृषभ🐂 सफेद कपड़ा, दही एवं तिल का दान करें।
मिथुन👫 मूंग दाल, चावल एवं कंबल का दान करें।
कर्क🦀 चावल, चांदी एवं सफेद तिल का दान करें।
सिंह🦁 तांबा, गेहूं एवं सोने के मोती का दान करें।
कन्या👩 खिचड़ी, कंबल एवं हरे कपड़े का दान करें।
तुला⚖️ सफेद डायमंड, शकर एवं कंबल का दान करें।
वृश्चिक🦂 मूंगा, लाल कपड़ा एवं तिल का दान करें।
धनु🏹 पीला कपड़ा, खड़ी हल्दी एवं सोने का मोती दान करें।
मकर🐊 काला कंबल, तेल एवं काली तिल दान करें।
कुंभ🍯 काला कपड़ा, काली उड़द, खिचड़ी एवं तिल दान करें।
मीन🐳 रेशमी कपड़ा, चने की दाल, चावल एवं तिल दान करें।

कुछ अन्य उपाय
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सूर्य और शनि का सम्बन्ध इस पर्व से होने के कारण यह काफी महत्वपूर्ण है
👉 कहते हैं इसी त्यौहार पर सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने के लिए आते हैं
👉 आम तौर पर शुक्र का उदय भी लगभग इसी समय होता है इसलिए यहाँ से शुभ कार्यों की शुरुआत होती है
👉 अगर कुंडली में सूर्य या शनि की स्थिति ख़राब हो तो इस पर्व पर विशेष तरह की पूजा से उसको ठीक कर सकते हैं
👉 जहाँ पर परिवार में रोग कलह तथा अशांति हो वहां पर रसोई घर में ग्रहों के विशेष नवान्न से पूजा करके लाभ लिया जा सकता है
👉 पहली होरा में स्नान करें,सूर्य को अर्घ्य दें

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यतो धर्मस्ततो जयः।

⛵ *चीन से तनाव के बीच केंद्र सरकार अत्याधुनिक बोट्स खरीदने जा रही है जिससे लद्दाख के LAC के निकट पैगोंग झील पर अच्छे से निगरानी की जा सकेगी।*

⛔ *साथ ही सरकार ने भारत निर्मित 83 फाइटर जेट तेजस के लिए 48 हजार करोड़ रुपये की डील को भी अनुमति दे दी है।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

📣 *जैसे जैसे समय बीत रहा है पूरी पिक्चर साफ होती जा रही है।*

📣 *विदेशो में सक्रिय अलगाववादी खालिस्तानी संगठन सिख फ़ॉर जस्टिस ने एक नोट जारी किया, जिसमे लाल किले पर खालिस्तानी झंडा फहराने, धरने में शामिल होने और 26 को दिल्ली में ट्रैक्टर रैली निकालने वालो को पैसे देने की घोषणा की है।*

📣 *यह तथाकथित आंदोलन कबका हाईजैक हो चुका था, जिसका आरंभ ही नक्सली/वामपंथी एवं लाल झंडे वालो और बड़े बिचोलियों ने किया था। अब तो इन्हे कोर्ट पर भी भरोसा नही, आगे कुछ बुरा न देखने मिले उससे पहले केंद्र सरकार को अपनी शक्ति दिखाते हुए इन तत्वों पर कड़ा एक्शन लेना चाहिए।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

*_🕉️कस्यात्यन्तं सुखमुपनतं दुःखमेकान्ततो वा नीचैर्गच्छत्युपरिच दशा चक्रनेमिक्रमेण।_*
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*🕉️भावार्थः किसी को भी सदा सुख और सदा दुख नहीं मिलता। पहियों के घेरे की तरह (जीवन में सुख दुख) उपर नीचे होते ही रहते है।*

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यतो धर्मस्ततो जयः।

‘खेती के योग्य भूमि को नापना पड़ता है क्योंकि उस पर लगान लगता है, इसीलिए अंग्रेजी में भी कृषि योग्य भूमि Arable Land कहलाती है।
गोपालन करने वाला दूध नापता है क्योंकि उस पर उसकी आजीविका निर्भर है व्यापारी के नाप-तौल का तो प्रश्न ही नहीं उठता वहां तो सारा काम ही नाप तौल का है। वैश्य हलवाई से कहिये लालाजी लड्डू खाने है तुरन्त आपका स्वागत करके आपको आसन पर बैठाएगा और अति मधुरता पूर्वक पूछेगा कितने तौलू यह कितने वैश्य कर्म का आधार है, इसलिए स्वामी और वैश्य दोनों आर्य कहलाते हैं। स्वामियों का स्वामी परमेश्वर हैं, आर्य का अर्थ है ईश्वर का पुत्र अर्थात् स्वामी का पुत्र अर्थात् परमेश्वर का पुत्र। परमेश्वर का गुण है न्यायपूर्वक नियमानुसार नाप-तौल कर कर्मों का फल देना।
जो मनुष्य इसी प्रकार सबके साथ प्रीति पूर्वक धर्मानुसार यथायोग्य व्यवहार करता है वही भगवान के गुणों को धारण करने के कारण उसका सच्चा सपूत है । परमात्मा का एकलौता बेटा कोई नहीं । सृष्टि के आदि से आज तक जिन्होंने नाप-तौल युक्त व्यवहार किया वे आर्य कहलाए और जो करेंगे वे कहलाएगे चाहे किसी देश जाति अथवा सम्प्रदाय में उत्पन्न हुये हैं । यह है आर्य शब्द का अर्थ । जिनका जीवन सत्य रक्षा, न्याय-रक्षा अथवा धनहीन रक्षा के व्रतों से नपा -तुला हो वे आर्य वर्ग के लोग कहलायेंगे और उनका चुनाव किया हुआ व्रत आर्य वर्ण कहलाएगा ।
अब बताइए कि इसमें गोरा रंग लम्बी नाक अथवा भारत के बाहर के किसी देश से आना किस प्रकार आ घुसा, जिन धूर्त शिरोमणि लोगों ने इस राष्ट्र की एकता के विध्वंस के लिये इस पवित्र शब्द की यह दुर्दशा की है उनसे पग-पग पर प्रतिक्षण लड़ना और तब तक, दम न लेना जब तक यह अविद्यान्धकार धरती से विदा न हो हर सत्य-प्रेमी का परम कर्तव्य है और राष्ट्र हितैषियों के लिये तो यह जीवन-मरण का प्रश्न है । क्योंकि इसी पर राष्ट्र की एकता निर्भर है। (आर्य संसार १९६५)

✍🏻 लेखक - श्रीमत् स्वामी समर्पणानन्दजी सरस्वती
*प्रस्तुति - 🌺 ‘अवत्सार’*

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